Magazine - Year 1989 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
भयः एकः मानसिक दुर्बलता
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कुछ लोग बाहर से तो बड़े हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ निरोग दिखाई पड़ते है, क्रिया-कलाप भी उनके बहादुरों जैसे होते है, पर अन्दर से इतने कमजोर व डरपोक होते है जिसकी कल्पना भी नहीं की जाती। आश्चर्य तो तब होता है, जब इस परिकर में आज के बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग भी सम्मिलित होते है।
रीडर्स डायजेस्ट प्रकाशन की एक पुस्तक “ आँड वर्ल्ड एराउण्ड अस” में एक घटना की चर्चा है। फिलिप ल्योनार्ड एक जर्मन वैज्ञानिक थे, जिनका आयुष्य-काल सन् 1862 से 1974 के बीच था। कैथोड रे तथा परमाणु संरचना पर उनके विशिष्ट कार्य से सन् 1904 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, पर अपने से सौ वर्ष पूर्व हुए ब्रिटिश वैज्ञानिक सर आइजैक न्यूटन के नाम से उन्हें बड़ा डर लगता था। कोई यदि उनके समक्ष कक्षा में बोर्ड पर न्यूटन का नाम भर लिख दे, तो इतने मात्र से उन्हें साँप सूँघ जाता था, उनकी घिग्घी बँध जाती थी और जब तक उसे मिटा नहीं दिया जाता तब तक वे कुछ स्पष्ट बोल नहीं पाते थे, पढ़ाने की बात तो दूर रही।
लीवरपूल यूनिवर्सिटी इंग्लैण्ड में एक छात्रा अध्ययन करती थी-मेरी डायना। वह प्रायः कहा करती थी कि “मैं काँच की बनी हूँ यदि गिर गई, तो मर जाऊँगी”। इसलिए वह सँभल-सँभल कर जमीन पर पैर रखती और प्रायः अत्यन्त मन्द चलती। यदि उसे कहीं पैदल जाना होता, तो सामान्य चाल से गन्तव्य तक पहुँचने में जितना समय लगता उससे डेढ़-दो घंटे पूर्व ही वह घर से निकल पड़ती, और धीमी-धीमी चाल स चल कर वहाँ पहुँचती। वैसे, ऐसे अवसर उसके जीवन में कम ही आये, जब वह घर से पैदल चलकर कहीं गई हो। बाहर जाने के लिए प्रायः वह गाड़ी का प्रयोग करती, चाहे उसे कुछ ही दूर क्यों न जाना हो। दिन दुर्भाग्य से कक्षा के अन्दर प्रवेश करते समय वह फिसल कर गिर गई और सचमुच इतने में ही उसकी मृत्यु हो गई।
व्यक्ति यदि अनावश्यक भय से मुक्त हो जाय, तो वह कितने ही संकटों और परेशानियों से बच सकता है। किन्तु ऐसा होता कहाँ है? देखने में बड़े विलक्षण वर्णन आते है। रूस के तस्मानिया प्रान्त में एक बड़े ही हट्टे-कट्टे और छः फुट के पुलिस अफसर थे-एस॰ फेडेरोव। काम तो उनका था चोर, उचक्कों और बदमाशों को पकड़ना, उनका सामना करना, पर जब बाल कटाने अथवा सँवारने की बारी आती, तो उनका सारा साहस एक ओर धरा रहता और भय हावी होता जाता ऐसी बात नहीं, कि फेडेरोव को छुरे और कैंची से डर लगता था। वह अपनी ही शक्ल से भय खाते थे। अतः यदि कभी गलती से आईने में स्वयं की छवि से उनका सामना पड़ जाता तो वे चीख कर दूर खड़े हो जाते। इसी कारण से वे बाल कटाने अथवा सँवारने के समय सामने दर्पण नहीं रखते थे।
कहा जाता है कि हिटलर को बिल्ली से बड़ा डर लगता था। एक दिन जब वे भोजन करने जा रहे थे, तो कमरे में सिर्फ इस कारण न प्रवेश कर सके क्योंकि वहाँ पहले से ही एक बिल्ली मौजूद थी।
जब बिल्ली को भगाया गया तभी वे शांतिपूर्वक भोजन कर सके। इस नृशंस व्यक्ति ने कितने ही यहूदियों का सफाया कराया, कितने ही क्रूर कृत्य किये ऐसे कृत्य जिन्हें सुनकर ही दिल बैठने लगता है, किन्तु जब एक साधारण बिल्ली से पाला पड़ता, तो उनका दुस्साहस धरा का धरा रह जाता है।
इन सारी घटनाओं पर दृष्टिपात करने से एक ही बात सामने आती है कि यह व्यक्ति की एक मानसिक कमजोरी है। बड़े और भारी भरकम कार्यों के लिए शरीर बल तो अभीष्ट है ही, पर यदि मन कमजोर हो तो शारीरिक बल के बावजूद वह लक्ष्य सिद्धि नहीं कर पाता। इससे शंकाडायन-मनसाभूत की उक्ति ही चरितार्थ होती है।