Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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बड़ी लकीर खींचदी (Kahani)
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एक अध्यापक बच्चों को पढ़ा रहे थे। उनने ब्लैकबोर्ड पर एक लम्बी लकीर खींची और कहा इसमें से कुछ बिना काटें मिटाये उसे छोटी कर दो।
लड़के वैसा कर न सके तब अध्यापक ने उसी के बराबर एक दूसरी बड़ी लकीर खींचदी और पूछा वह अब छोटी हो गई न।
निष्कर्ष बताते हुए अध्यापक ने कहा किसी से अपने को बड़ा बनना हो तो उसे काटने घटाने की जरूरत नहीं है। अपने को उससे अधिक सुयोग्य, पुरुषार्थी और प्रामाणिक बनालें इतने भर से उसे गिराने की आवश्यकता न पड़ेगी।
एक साधु बहुत मस्त रहता था। उसकी प्रसन्नता को चोरों ने सम्पत्ति का कारण समझा सोचा इसके पास कोई बड़ी सम्पदा होनी चाहिए अन्यथा इतना उल्लास क्या रहता?
चोरों ने साधु से पूछा-सच-सच बताओ तुम्हारी दौलत कहाँ है।
साधु को मसखरी सूझी। उसने कहा मैंने उसे जहाँ तहाँ जमीन में गाड़ रखा है उसकी पहचान यह है कि चंद्रमा की रोशनी में देखना। खोपड़ी के नीचे देखना, खोदने पर मिल जायगा।
चोर इसी आधार पर जगह-जगह खोदते फिरे। तमाम रात इसी प्रकार बीत गई झुंझलाते हुये चोर आये और कहा वहाँ तो कहीं कुछ नहीं मिला।
साधु ने कहा भाई मेरे कथन का मतलब समझो। आप लोगों को बताया गया कि खोपड़ी के नीचे। खोपड़ी के नीचे मन मस्तिष्क है उसी में सम्पदा प्रसन्नता और प्रगति भरे रहते है अपने विचारों को सही करो। चिन्तन में आदर्श, उत्साह और संतोष का समावेश करो। तुम देखोगे कि कुछ ही दिन में मेरी तरह प्रसन्न रहने का स्वभाव बन जायगा।