Magazine - Year 1989 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मनःशक्ति बढ़ाये, तनाव से मुक्ति पायें।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
विचारणा एवं भावना का मनुष्य के शारीरिक मानसिक-स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है। मानसिक अवस्था के अनुरूप शारीरिक क्रिया-कलापों में परिवर्तन होता रहता है। यद्यपि यह विषय जलवायु की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म है, इसलिए बहुत कम लोग ही इसके महत्व को समझ पाते हैं, परन्तु इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि जिन लोगों का मन अशांत तथा विकारयुक्त अवस्था में रहेगा वे कभी वास्तविक स्वस्थ जीवन का सुख प्राप्त नहीं कर सकते।
आजकल लोगों का जीवन जैसा वासनामय हो गया है और पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता, ईर्ष्या आदि के कारण जो क्रोध, लोभ, शत्रुता, छल-कपट के भाव मन में उठते रहते हैं, उनके कारण मनुष्य की मानसिक शान्ति प्रायः नष्ट हो जाती है और उसके भीतर सदा दूषित विचारों की आँधी उठा करती है इन हानिकारक विचारों का प्रभाव हमारे भीतरी अंगों पर भी पड़ता है, सम्पूर्ण स्नायु प्रणाली-नर्वस् सिस्टम, तनाव की स्थिति में रहती है। फलतः मांसपेशियों में, पाचन संस्थान एवं श्वसन संस्थान आदि के कार्यों में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। अतः अंदरूनी तनाव चाहे वह स्थूल कारणों से अथवा सूक्ष्म करणों से हो रोग के रूप में फूट निकलता है।
चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान समय में 50 प्रतिशत से अधिक लोग तनाव की प्रतिक्रिया स्वरूप रोगग्रस्त पाये गये हैं। उनका कहना है कि लगातार सिरदर्द, चक्कर आना, आँखों में सुर्खी आना, काम में मन न लगना और लकवा आदि जैसे रोगों का आक्रमण हो जाना ये सभी अत्याधिक तनाव के ही दुष्परिणाम हैं। ऐसे लोग प्रायः रागों की उत्पत्ति के लिए कभी मौसम को, कभी आहार को, कभी दूसरों को तो कभी परिस्थितियों आदि को दोष देते हैं जबकि रोगों का मूलकारण मन में ही छिपा होता है। तनाव शरीर व मन दोनों के लिए हानिकारक है। सुप्रसिद्ध स्नायु विज्ञानी डा0 एडमण्ड जैकबसन के अनुसार-हृदय-रोग, रक्त-चाप की अधिकता, अल्सर, कोलाइटिस आदि असामान्य दिखाई देने वाली बीमारियाँ प्रकारान्तर से तनाव के ही कारण उत्पन्न होती हैं। स्नायुदौर्बल्य, अनिद्रा चिन्ता, खिन्नता आदि अनेक रोग तनाव के ही भिन्न भिन्न रूप हैं।
मेक्सिको के प्रख्यात मनःचिकित्सा शास्त्री डा0 अरनेस्टो कन्ट्रैरख के अनुसार विकसित कहलाने वाले पश्चिमी देशों के लोग हाइपर-टेंशन, कैंसर, कोरोनरी डिसीजेज, (सी.ए.डी.) जैसी घातक बीमारियों से अधिक त्रस्त हैं। मोटापा, मधुमेह, पेप्टिक अल्सर, कोलाइटिस, आर्थ्राइटिस, दमा आदि रोगों का मूलकारण उन्होंने मानव की विकृत मनःस्थिति और उसके स्वरूप-व्यवहार को माना है। उनका कहना है कि प्रायः विश्व के सभी प्रमुख चिकित्सा शास्त्री एवं मनोरोग विशेषज्ञ इस बात को मानने लगे हैं कि 75 प्रतिशत रोगों का मूलकारण उद्वेगजन्य मनःस्थिति ही है।
अमेरिका के “नार्थ-वेस्ट रिसर्च फाउंडेशन” के प्रमुख अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक बेर्नानरिले ने गहन शोध के पश्चात् निष्कर्ष निकाला है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी जीवन में भय, तनाव,अत्याधिक चिन्ता आदि के कारण होती है। अमेरिका के ही एक दूसरे रिसर्च केन्द्र “हीलिंग आर्ट्स सेन्टर” के चिकित्सा मनोविज्ञानियों ने कैंसर रोग का प्रमुख कारण मन को माना है।
अमेरिका के “नार्थ-वेस्ट रिसर्च फाउंडेशन” के प्रमुख अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक बेर्नानरिले ने गहन शोध के पश्चात् निष्कर्ष निकाला है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी जीवन में भय, तनाव,अत्याधिक चिन्ता आदि के कारण होती है। अमेरिका के ही एक दूसरे रिसर्च केन्द्र “हीलिंग आर्ट्स सेन्टर” के चिकित्सा मनोविज्ञानियों ने कैंसर रोग का प्रमुख कारण मन को माना है।