Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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समष्टि से प्रभावित व्यष्टि के क्रिया कलाप
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मनुष्य का कलेवर लघु होते हुए भी संपर्क क्षेत्र एवं पारस्परिक संबंधों की दृष्टि से इस अति-विषल ही मानना होगा। संभवतः इसी विशालता का आकलन कर प्राचीन ऋषियों ने इसे लघु ब्रह्माँड की उपमा से गौरवान्वित किया है। जहाँ इसकी गति - विधियों से पर्यावरण का प्रभावित होना बताया जाता हैं, वहीं पर्यावरण की परिवर्तित परिस्थितियाँ इसे प्रभावित किये बिन नहीं रहतीं।
इन परिस्थितियों को स्थूल नेत्रों से भले न देखा जा सकें किन्तु अब यह मान्यता प्रयोग एवं परीक्षणों से सत्यापित की जा सकती है कि मौसम आदि के अदृश्य परिवर्तन मनुष्य को शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रभावित करते हैं। कैनैडियन क्लाइमेट सेंटर के एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि जिस दिन हवा तेज हो, आर्द्रता बढ़ रही हो वायुदाब घट रहा हो और तापमान में तेजी से उतार चढ़ाव आ रहा हो उस दिन तनाव - जन्य माइग्रेन जैसे रोग होने की बहुत अधिक संभावना रहती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ऐसे मौसम में आत्मघात करते देखे जाते हैं, साथ ही चिड़चिड़ेपन, पारस्परिक कलह के अवसरों भी बढ़ोत्तरी पाई गई है।
कोलम्बिया युनिवर्सिटी स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ की डा इन्जगोल्ड स्टीन ने अपने अध्ययन निष्कर्ष में बताया है कि उच्च वायु दाब से मौसम ठंडा रहता है तथा उस दौरान वर्षा नहीं होती। इससे दमे के मरीजों को कुछ राहत मिलती है। आर्द्रता बढ़ने के साथ दमे के रोग में भी बढ़ोत्तरी देखी गई इलिनाँय मेडिकल सेन्टर विश्वविद्यालय की डा अनीता बेकर ने बताया है कि दिल का दौरा भी बहुधा मौसम में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप ही उत्पन्न होता है। अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि दो दिन पूर्व हुई वर्षा के दौरान पुराने हृदयाघात से मरने वालों की संख्या सामान्य दिनों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक थी।
जार्मन वेदर ब्यूरो द्वारा मौसम विज्ञान पर आधारित दैनिक स्वास्थ्य बुलेटिन प्रकाशित किया जाता है जो मौसम के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों की पूर्व चेतावनी पहले से ही लोगों को देता रहता है। नित्य बनते बिगड़ते उच्च और न्यून दाब केंद्रों और गर्म-ठण्डी हवा के चाल के आधार पर यह मौसम पूर्वानुमान तन्त्र मौसम को छः चरणों में विभाजित करता है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार प्रत्येक चरण स्वास्थ्य की भिन्न भिन्न अवस्थाओं के बारे में स्पष्ट जानकारी देता है। सामान्यतया उच्च वायु दाब जन सामान्य में स्वास्थ्य की अच्छी स्थिति की ओर संकेत करता है, जबकि न्यून दाब और गर्मी की स्थिति स्वास्थ्य में आने वाली गिरावट की ओर इंगित करती है। तीरी दुनियाँ के कितने ही चिकित्सकों ने अब मौसम विज्ञान पर आधारित सेटेलाइट की गणना पर आधारित स्वास्थ्य बुलेटिनों का प्रयोग अपने मरीजों पर करना प्रारंभ भी कर दिया है। समय पूर्व चिकित्सक सारा सरंजाम जुटा लेते हैं ताकि वैसी विषम स्थिति आ धमकने पर उससे निबटा जा सकें।
ब्रिटिश खगोलज्ञ और सुप्रसिद्ध दूरबीन विशेषज्ञ-सर विलियम हर्षेल ने सूर्य की स्थिति का धरती पर पड़ने वाले प्रभावों का गहरा अध्ययन किया है और निष्कर्ष निकाला है कि वनस्पतियों के विकसित और फलित होने से लेकर प्राणियों के शरीर और मनुष्यों के मनःस्तर पर सूर्य परिवर्तन का असाधारण प्रभाव पड़ता है। उस देखते हुए यह प्रतीत होता है कि सूर्य से पृथ्वी के न केवल ऋतु परिवर्तन चक्र प्रभावित होते हैं, वरन् प्राणियों का शारीरिक और मानसिक स्तर भी उठता गिरता है। उजवेकिस्तान (सोवियत रूस) के विज्ञानी-एन. केनोसरिन ने सूर्य के धब्बों के साथ पृथ्वी पर दल दल बढ़ने घटने की संगति बिठाई है। मास्को के प्रो0 शिझेब्स्की ने पता लगाया है कि धरती के इतिहास में जब जब सूर्य में तीव्र प्रति क्रियाएँ हुई हैं, तब तब हैजा, प्लेग, टाइफाइड, आदि बीमारियों का संसार में भारी प्रकोप हुआ है उनके अनुसार सुर्य में होने वाले परिवर्तनों के कारण मनुष्य के स्वभाव में हेर-फेर होता रहता है। मानव स्वास्थ्य पर दूरवर्ती अन्यान्य ग्रह-नक्षत्रों से आने वाली अदृश्य बौछारों का भी प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में चलते रहे-विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधानों ने इस तथ्य को सत्य प्रमाणित किया है कि पूर्णिमा के चाँद का मनुष्य पर न केवल जैविक असर पड़ता है अपितु भावनात्मक प्रभाव भी पड़े बिना नहीं रहता है। इस संबंध में किये गये अध्ययनों में जो निष्कर्ष सामने आये हैं उनके अनुसार पूर्णिमा काल काया में बढ़ा देते हैं रक्तचाप, हृदय, धड़कन, उपापचय प्रक्रिया में भी इस समय तीव्रता अनुभव की गई है।
शिकागो के इलिवान्स युनिवर्सिटी के फार्मोकाँलोजी विभाग के प्रो0 डा राल्फ डब्लू. मोरिस ने अध्ययनोपरांत पाया कि रक्त-स्राव अन्य अवसरों की तुलना में इस दिन अधिक क्रियाशील रहता है। पूर्ण चन्द्रमा से निकलने वाली विशिष्ट ऊर्जा तरंगें रक्त बहाव को रोकने वाले ब्लैड प्लेटमेट्स के निर्माण में बाधा उत्पन्न करती हैं। फलस्वरूप अधिक मात्रा में रक्तसक्ति हो जाता है। पाया गया है कि मधुमेह के रोगियों में इन्हीं दिनों ब्लडशुगर चरम स्थिति में पहुँच जाती है।
अनुसंधानकर्ता चिकित्सा विज्ञानियों का कहना है कि चन्द्रमा की कलाओं का महिलाओं के मासिक चक्र पर विशेष प्रभाव पड़ता है। पूर्णिमा अवधि में उनमें अवसाद और तनाव जैसे मनोविकारों की बहुलता देखी गई है। कुछ महिलाएँ रक्तस्राव और हारमोनों के घट-बढ़ के कारण क्रमशः स्थायी रूप से मानसिक अवसाद का शिकार बनती चली जाती हैं। उनके द्वारा की जाने वाली हत्याओं व आत्म-हत्याओं की घटनाएँ प्रायः इसी अवधि में देखी गई हैं। वस्तुतः इस प्रकार के कृत्यों के पीछे मानसिक दुर्बलता ही प्रमुख करण होती है। सबल मनःस्थिति वाले व्यक्तियों पर इन परिवर्तनों का कोई विशेष प्रभाव परिलक्षित नहीं होता।
मनः चिकित्सकों तथा पुलिस विभाग के अध्ययनकर्ता विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्णिमा का मनोविकारों में बढ़ोतरी करता है। मनःशास्त्रियों के अनुसार इस दिन व्यक्ति की हठधर्मिता व आक्रामकता अन्य दिनों की अपेक्षा बढ़ जाती है। अपराधिक घटनाओं में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि इसी अवधि में पायी गई है। उस दिन सामान्यजनों के व्यवहार में परिवर्तन भी होते देखा गया है। न्यूयार्क के वैज्ञानिकों ने अपने खोजपूर्ण अध्ययन में बताया है कि इस काल में आगजनी एवं हिंसा की घटनाएँ अधिक होती हैं। साथ ही देश व्यापी हत्याओं में 50 प्रतिशत की अभिवृद्धि देखी गई है। डा मौरिस ने अपने तथ्यों के समर्थन में एक रोचक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि डेविड बरकोलिए नामक डाक तार विभाग के कर्मचारी ने “सैन आफ सैम” नामक कुख्यात हत्याकाँड आठ रातों में सम्पन्न किया इन आठ में से पाँच रातें पूर्णिमा की थीं।
डा मौरिस के अनुसार मनुष्य के व्यवहार चिन्तन में उन्माद लाने वाले चन्द्र प्रभावों की व्याख्या करना अत्यन्त जटिल है क्योंकि पूर्णिमा काल में पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा तीनों ही एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। उस वक्त उनके सम्मिलित विद्युत चुम्बकीय प्रभाव एवं गुरुत्वाकर्षण में जो परिवर्तन होता है-वह काया के सूक्ष्म विद्युतीय प्रवाहों पर सीधा प्रभाव डालता है और उसमें परिवर्तन लाकर स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करता है।
प्राचीन काल के ऋषि माने जाने वाले शोधकर्ताओं ने विभिन्न ग्रह उपग्रहों के इन अदृश्य प्रवाहों-इनके परिणामों की संभावनाओं को देखते हुए तदनुरूप विभिन्न व्रत-उपवासों आध्यात्मिक साधनाओं की पद्धति को प्रचलित किया था। जिसका अवलम्बन व्यक्ति को सदैव ही निषेधात्मक परिणामों से बचाने वाला सिद्ध होता है। आज भी इनकी वैज्ञानिकता यथावत् है। इसका पुनः निरीक्षण-परीक्षण व अवलम्बन व्यक्ति के शरीर-मन को स्वस्थ रूप से सुसंचालित करने में अब भी महती भूमिका निभा सकता है।