Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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संतोष करना पड़ा (kahani)
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एक गाय बगीचे में घुस गई उसने नये पौधे चर लिये। मालिक को गुस्सा आया। उसने जोर की लाठियाँ जमाई। गाय मर गई।
पंचायत जमा हुई बगीचे के मालिक को गौहत्या का दोष लगाया गया।
मालिक चतुर था पढ़ा लिखा भी। उसने कहा-हाथों ने गाय मारी है। हाथ इन्द्र के संकेतों पर चलते हैं। इसलिए पाप इन्द्र को लगना चाहिए। पाप इन्द्र के दरबार में पहुँचा और दंड भुगतने के लिए कहने लगा।
इन्द्र ने पूरा विवरण सुना तो सारी चालाकी समझ गया। वह एक राहगीर का वेश बनाकर पाप के साथ उसी बगीचे में पहुँचा। राहगीर ने मालिक से सामने बगीचे को बड़ी प्रशंसा की और कहा यह किनने लगाया है? उनके दर्शन करना चाहता हूँ। मालिक ने श्रेय अपने जिम्मे लिया और हाथ ऊँचे करके कहा यह इन्हीं की करामात है। इन्द्र ने पास से कहा जब इसके हाथों की करनी का श्रेय इस बता रहा हूँ तो उनके किये पापों का दंड इसे क्यों न भुगतना पड़े?
पाप ने इन्द्र को छोड़ दिया और कुकृत्य करने वाले मालिक की गरदन पर सवार हो गया।
शंका का निवारण करने के कलए वे जनक के दरबार में पहुँचे और अपना अभिप्राय कहा।
जनक ने उन्हें दूसरे दिन प्रातः उत्तर पाने के लिए दरबार में आने के लिए कहा, यथा समय पहुँचे भी।
राजा ने एक बग्घी पर शुकदेव को बिठाया नगर की शोभा देखकर आने के लिए कहा। साथ ही उनके हाथ पर तेल का भरा एक कटोरा रख दिया। कहा तेल फैलने ने पाये फैल गया तो सभी बाजारों में, देखा कुछ नहीं।
जनक ने अपनी स्थिति भी वैसी ही बताई। धर्म कर्तव्यों के पालन का पूरा ध्यान रहता है तो शरीर के इर्द गिर्द घूमने वाले विलास साधन अपना कोई प्रभाव छोड़ नहीं पाते।
अभिमन्यु की चक्रव्यूह बेधते समय मृत्यु हो गई। सुभद्रा का वह इकलौता बेटा था। कृष्ण उसके भाई थे सुभद्रा ने कृष्ण को बुलाकर अनेक उलाहने दिये और कहा तुम्हें भगवान कहा जाता है। अर्जुन को सखा, मुझे बहन मानते हो और अभिमन्यु को अपना भानजा। इन रिश्तों का तो ध्यान करना चाहिए था। अभिमन्यु को तो बचा लेना चाहिए।
उसके उत्तर में कृष्ण ने सुविस्तृत तत्व-दर्शन महाभारत में वर्णन किया है और कहा है कि कर्मफल की मर्यादा में मनुष्यों से लेकर भगवान तक सभी बँधे हुए है। सभी को प्रारब्ध भोग भोगने पड़ते है और सभी को पुरुषार्थ के उपरान्त नियति की प्रधानता मानते हुए संतोष करना पड़ता है। सुभद्रा को भी संतोष करना पड़ा।