Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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वस्तु विकृ न हो पात्र (kavita)
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वस्तु विकृ न हो पात्र में, इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन।
दिव्य-अनुदान को साधने के लिये, मित्र! अनिवार्य है व्यक्ति-परिमार्जन॥
वस्तु को क्यों प्रभावित करेगी नहीं, पात्र में जो समाई हुई गंदगी।
श्रेष्ठ-अनुदान भी वह कलंकित करे, जी रहा जो पतन, पाप की जिन्दगी॥
हर जगह पात्र का मूल्य होता रखे! इसलिए पात्रता का करें हम वरण।
वस्तु विकृत न हो पात्र में इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन।2॥
व्यक्ति के पात्र में लोभ की, मोह की गंदगी कंठ तक यह यदि समाई हुई।
क्रूर छाया कलुष-कल्मषों की अगर व्यक्ति के अन्रंग बीच छाई हुई॥
फिर अनुग्रह किसी संत का क्यों करे, विष भरे पात्र का क्या करे रस-झिरन।
दिव्य-अनुदान को साधने के लिये, मित्र! अनिवार्य है व्यक्ति-परिमार्जन॥3॥
दिव्य-अनुदान की वाँछा है अगर, तो चलो मित्र! विकसित करें पात्रता।
स्वाति-नक्षत्र का लाभ देने हमें, चाहिये सीपसी रिक्तता, आर्द्रता॥
स्वातिवत् संत फिर कर सकेंगे सहज व्यक्ति की सीप में मोतियों का सृजन।
वस्तु विकृ न हो पात्र में, इसलिये है जरूरी बहुत पात्र का मार्जन॥
-मंगल विजय