Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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परोक्ष से उठता क्रूरता का उन्माद
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परीक्षा जगत में कई बार ज्वार भाटे की तरह महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव आते हैं, जिसका स्थूल प्रभाव प्रत्यक्ष जगत में उथल-पुथल, विनाश, नरसंहार, ठगी, अपराध आदि के रूप में सामने आता है। इन कृत्यों में संलग्न व्यक्ति स्वयं तो कोई लाभ उठा नहीं पाते है। जिन क्षेत्रों में उनका प्रभाव होता है। वहाँ सर्वग्राही विभीषिका का दृश्य उपस्थिति किये रहकर विनाशलीला अवश्य रचते रहते हैं। इसे आसुरी प्रवाह-प्रचलन कहा जा सकता है। इससे सूक्ष्म असुर सत्ताएँ विनाशकारी कुचक्र रचतीं और जिस-तिस के सिर चढ़ कर अपने मनोरथ पूरे करने का प्रयास करती हैं।
गुह्य विज्ञान के निष्णातों के अनुसार इस नदीं के दो महायुद्धों की पीछे मुख्य भूमिका दानवी सत्ताओं काी ही रही थी। प्रथम विश्वयुद्ध का सूत्रपात आस्ट्रिया एवं हंगरी की दुहरी शासन सत्ता का एक मात्र उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फर्डिनेग्ड एवं उसके राजकर्मियों की रहस्यमय मौत के कारण हुआ। कहा जाता है कि आर्कड्यूक के साथ सदा एक सूक्ष्म असुर रहता था। इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि जिस “केसल्स ऑफ मिराभर’ नामक महल में वह रहता था वहाँ, एवं उसकी कार तक में साथ-साथ वह सफर करता था। एक दिन कार में इसी सत्ता रहस्यमय ढंग से उसकी हत्या कर दी। इसके उपरान्त इटली ने आस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया और यहीं से युद्ध की शुरुआत हुई, जिसमें लाखों की जाने गई और कितनी ही सम्पत्ति नष्ट हो गई।
तैमूर लंग के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह जिस प्रकार स्वयं लंगड़ा और काना था, वैसा ही दूसरों को भी बनाने में उसे मजा आता था। बलख गछ्दी पर बैठते ही उसने लोभहर्षक आतंक मचाना आरंभ कर दिया शत्रुओं के रक्त और हड्डियों का गारा बना कर उसने कितनी ही मीनारें चिनवायी। दिल्ली लूटी और वहां खून की नदियाँ बहा दीं। इस प्रकार न जाने उसने कितने नगर उजाड़ दिये फसलों और बस्तियों में आग लगा दी। रोते और बिलखते लोगों की आवाजों उसे बहुत प्रिय थीं। प्रायः इसीलिए वह इस प्रकार की विनाशलीलाएँ रचना और आनन्दित होता था। उसे स्वयं कोढ़ हुआ व उसी नियति को वही प्राप्त हुआ जैसे उसने कृत्य किये।
बारहवीं सदी का मंगोल शासक चंगेज खाँ तो नृशंसता का पर्याय बन गया था। वह जहाँ भी जाता, उसका पहला काम कत्लेआम मचाना होता। लूटी गई सम्पदा से उसे जितना आनन्द मिलता उससे कई गुनी अधिक खुशी उसे नर-नारियों को भाले भौंकने और सिर काटने में होती थी। रूस के एक नगर में तो उसने ऐसी प्रलयलीला मचायी, कि वह वीरान हो गया। लाशों की सड़न से जब वहाँ बीमारी फैली, तो उसे स्वयं भी वहाँ से जान बचा कर भागना पड़ा।
चंगेज खाँ का बेटा हलाकू खाँ तो बाप को पीछे छोड़ गया। वह उससे भी खूँखार निकला ईरान पर चढ़ाई करके वहाँ के लोगों को गाजर-मूली की तरह काट डाला और रक्त से वहाँ की धरती को रंग दिया।
लिपजिंग (जर्मनी) के सेशन कोर्ट में सन् 1620 में बनेडिक्ट कार्पजे नामक एक न्यायाधीश था। क्रूरता में वह ड्रैक्युला का सहोदर जान पड़ता था। उसने अपने 46 वर्षीय कार्यकाल में कुल 52 हजार स्त्री-पुरुषों को फाँसी के फँदे पर चढ़ाया। वह इतना कठोर था कि छोटे से छोटे अपराध तक के लिए फाँसी की सजा सुना देता। औसतन पाँच व्यक्ति प्रतिदिन उसके इस अन्याय का शिकार होते थे। प्रायः वह कहा करता था कि जानवरों द्वारा फाँसी प्राप्त व्यक्तियों की लाश खाये जाने का दृश्य देखन में उसे एक अजीब आनन्द की अनुभूति होती थी, अतः ऐसे मौके पर वह अवश्य उपस्थित रहता था।
इन सभी उदाहरणों में सि एक बात की समानता वह है इन क्रूरकर्मियों की मौत। उपरोक्त सभी आततायियों की मृत्यु लगभग वैसी ही, उन्हीं परिस्थितियों में हुई, जिनमें वे दूसरों को मारना पसंद करते थे। इससे एक बात अवश्य सिद्ध होती है कि सूक्ष्म जगत की दानवी शक्तियाँ को वाहन बना कर उत्पात मचाती है, अन्त में स्वयं उन्हें भी नहीं छोड़ती। परोक्ष जगत की अनुशासित व्यवस्था का शिकंजा आसुरी सत्ता के प्रति कसता ही जाता है जब वे अपनी सीमा को लाँघ जाती है।