Magazine - Year 1997 - Version 2
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Language: HINDI
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हँसना-हंसाना सीखें, ताकि नीरोग रह सकें
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खिलखिलाहटों की खनकती गूँज इन दिनों कहीं खो-सी गयी है। कृत्रिम सभ्यता की भागदौड़ व चकाचौंध भरे जीवन ने मनुष्य की नींद व चैन हराम करके रख दिया है। अपनी अस्तव्यस्तता में उसे किसी चीज के लिए फुरसत नहीं है। अगर फुरसत मिलती भी है तो सिर्फ तनाव, चिन्ता एवं उद्विग्नता के लिए। इसकी परिणति यह है कि शरीर भाँति-भाँति के रोगों से ग्रसित और मन तरह-तरह के विकारों से व्यथित है। इनसान शारीरिक आरोग्य, मानसिक सन्तुलन व जीवन में सुख-शान्ति के लिए तरह-तरह के उपचार जुटा रहा हैं। इस सबके लिए पर्याप्त समय, श्रम एवं धन लुटा रहा है, लेकिन राहत के नाम पर उसे असफलताजन्य असन्तोष ही पल्ले पड़ता है।
मानव प्रकृति के मर्मज्ञों का मानना है कि समस्या का शाश्वत निदान तभी सम्भव है, जबकि मनुष्य तनावमुक्त हो सके और यह किसी औषधि से नहीं हँसी की गूँज से सम्भव है। ठहाकों भरी हँसी-खिलखिलाहटों की मधुर गूँज और आनन्द बिखेरती मुसकान, इन सभी समस्याओं की अचूक औषधि है। इसके बहुआयामी प्रभावों व उपयोगिताओं पर वैज्ञानिकों ने भी पर्याप्त शोध की है। उनका भी पर्याप्त शोध की हैं उनका भी यही निष्कर्ष है कि इससे बढ़िया और प्रभावी दवा दूसरी कोई नहीं।
यही वजह है कि प्रायः हँसमुख व्यक्ति अधिक स्वस्थ व नीरोग रहते हैं। उनके चेहरे पर एक विशेष चमक व आकर्षण होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हँसने से उत्पन्न उत्तेजना से हारमोन ग्रन्थियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इनसे निकलने वाले जैव रसायन जहाँ एक ओर शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन को अधिक स्वस्थ व नीरोगी बनाते हैं।
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क के ‘साइकोन्यूरल इम्यूनोलाजी’ विभाग के प्राध्यापक आर्थर स्टोन ने 72 लोगों पर हँसी के प्रभाव को 12 सप्ताह तक देखा। परीक्षण के दौरान इन लोगों में ‘इम्यूनाग्लोब्यूलिन ए’ नामक प्रतिरोधक की मात्रा में वृद्धि देखी गयी। यह बैक्टीरिया व वायरस को सफेद कणिकाओं पर आक्रमण से रोकने में सहायक है। इसके कारण ये लोग सर्दी व संक्रमण के विरुद्ध अधिक प्रतिरोधी पाए गए। ‘रायल कालेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर्स’ में हुए अनुसंधान के अनुसार हँसने से हृदय गति कम हो जाती है, भूख बढ़ती हैं। इसके प्रभाव से इडोर्फिन नामक दर्दनिवारक रसायन का स्राव होता है। जो माँसपेशियों की जकड़न को कम कर देता है। इससे मानसिक तनाव से होने वाले सिरदर्द से भी राहत मिलती है।
लम्बे समय तक हँसने के प्रभाव पर शोध करने वाले फ्रेंच डॉक्टर पियरे वायर का कहना है कि हँसी के दौरान रक्तवाहिकाओं का विस्तार हो जाता है। इससे रक्तप्रवाह शरीर के सुदूर कोनों तक तीव्र हो जाता है। अतः जिन व्यक्तियों के हाथ व पैर ठण्डा पड़ने की शिकायत है उनको डाक्टर पार्चर का सुझाव है कि वे जुराव या ग्लब्ज (दस्ताने) पहनने के साथ खुलकर हँसने का प्रयोग भी आजमा सकते हैं।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के मेडिकल विभाग के प्रमुख डॉ0 विलियम्स के अनुसार हँसमुख व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। उनकी एण्डोक्राइन प्रक्रिया अधिक सक्रिय व सतेज रहती है। अपने अनुसंधान में डॉ0 विलियम्स एवं उनके सहयोगियों ने यह भी पाया कि हँसते समय मस्तिष्क में एक खास तरह का उत्तेजना होता है, जिससे एपीनेफ्रीन, नोरपाइनक्रीन व डापोमाइन जैसे दर्दनिवारक हारमोन के स्राव में प्रत्याशित बढ़ोत्तरी होती है। इससे गठिया, वात रोग व एलर्जी जैसे रोगों में भी राहत मिलती हैं।
हँसने के इन्हीं प्रभावों की वजह से आज इसे चिकित्सा-पद्धति के रूप में उपयोग किया जा रहा हैं। कई असाध्य रोगों में इससे उपचार का दावा किया जा रहा है। ‘पोलालिण्डा यूनिवर्सिटी कैलीफोर्निया’ के इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रो. एल. एम. वर्क का मानना है कि हास्य प्रक्रिया शरीर की प्रतिरोधी प्रणाली को इतना अधिक सशक्त करती है कि इससे कैंसर प्रतिरोधक खत्म हो जाता है। उनके अनुसार कैंसर का कारण डब्ल्यू. बी. सी. का निर्धारित मात्रा में अधिक बनना है। हँसी से उत्पन्न होने वाली प्रतिरोधक शक्ति कैंसर कोशिकाओं की बढ़ोत्तरी को कम करती है।
हँसी की गूँज श्रेष्ठतम निदान ही नहीं, श्रेष्ठतम विश्राम भी है। फ्रेंच न्यूरोलॉजिस्ट हेनरी रुपेनस्टैन ने अपनी शोध के आधार पर हँसने को सर्वश्रेष्ठ विश्रामदाता घोषित किया हैं। उनके अनुसार एक मिनट की उन्मुक्त हँसी 45 मिनट के चिकित्सकीय विश्राम जितनी फलदायी होती है। इसी तरह अमेरिकी हृदय विशेषज्ञ डॉ0 विलियम फरहे के अनुसार एक मिनट का हँसना 40 मिनट के विश्राम जितना लाभ देता है। यदि यह हँसी सौ बार हो तो- इससे इस मिनट के योगाभ्यास के परिणाम साकार हो उठते हैं। अपनी पुस्तक ‘मेक एम आफ’ में डॉ0 विलियम्स का कहना है कि हँसने से दर्द से छुटकारा मिलता है, दबाव कम होता है व रक्त-नलिकाएँ साफ हो जाती है।
खिलखिलाहटों भरा उन्मुक्त हास्य रोगों के मूल कारण पर ही प्रहार करता है। चिकित्साविज्ञानियों का मानना है कि अनिद्रा से उत्पन्न तनाव अनेकों रोगों को जन्म देता है, जबकि उन्मुक्त हँसी से अच्छी गहरी नींद आती है। ‘एनाटॉमी ऑफ इलनैस’ के विज्ञ लेखक काजिन्स कहते हैं कि 20 मिनट का उन्मुक्त हास्य उन्होंने बिना किसी पार्श्व प्रभाव के दो घण्टे की नींद देता है। नींद में खर्राटे लेने की समस्या को भी हँसने से ठीक किया जा सकता है। खर्राटों ने कई व्यक्तियों के वैवाहिक जीवन को नष्ट किया है। इनका भी समाधान खुलकर हँसना है। खर्राटे का कारण ढीला व मुलायम ‘पैलेट’ होता है। हँसने से प्रभावकारी माँसपेशियों पर दबाव पड़ता है, जो इन्हें शक्तिशाली बनाता है शक्तिशाली माँसपेशियों को ‘पैलेट’ प्रभावित नहीं कर सकता है। जिससे खर्राटे समाप्त हो जाते हैं।
हास्य की प्रभावशीलता को आज के वैज्ञानिक ही नहीं प्राचीन युगीन ऋषिगण भी स्वीकारते रहे हैं। आयुर्वेद के प्रणेता महर्षियों ने हँसने को विशेष रूप से लाभकारी बताया है। उनके अनुसार, इससे रक्तवाहिनी धमनियों का विस्तार होता है, जिससे रक्तप्रवाह में तेजी आती है। इस क्रम में श्वासोच्छवास क्रिया से ताजगी भरती है, फेफड़े फैलते हैं, इसके प्रभाव से आँखों में चमक आती है। चेहरे की कान्ति बढ़ती है व शरीर सन्तुलन ठीक होता है, साथ ही पित्त का शमन होता है, जो कि एसिअडटी का प्रमुख कारण है। इस तरह ठहाकों भरी हँसी से अम्ल रोग का स्वयमेव खात्मा हो जाता है।
वर्जीनिया विश्वविद्यालय के डॉ0 एम. ए. मूडी ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘द हीलिंग पावर्स ऑफ हृमर’ में हास्य चिकित्सा के अपने एक अद्भुत अनुभव का उल्लेख किया है। एक मानसिक रोग से पीड़ित एक 12 वर्षीय बालिका को प्रयोग के रूप में जोकरों का एक खेल दिखाया गया। खेल देखने पर वह जोर-जोर से हँसने लगी। खुशी की एक लहर उसके पूरे शरीर-मन में व्याप्त हो गयी। साथ ही उसे जीवन का एक नया संदेश दे गयी। उसने जीवन नये सिरे से जीना शुरू किया व आश्चर्यजनक रूप से स्वस्थ हो गयी। इसी तरह एक कैंसर का रोगी हास्य चिकित्सा द्वारा पूरी तरह ठीक किया गया। मूडी के अनुसार खुलकर हँसना स्वस्थ व्यक्तित्व का प्रतीक है। जो खुलकर हँस नहीं सकते, वह जरूर कहीं न कहीं, किसी न किसी विकार से पीड़ित हैं।
ऐसे लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम देखी गयी है, जो लोग अधिक तनावग्रसित रहते हैं। देखा गया है कि हँसने से सतर्कता उत्पादक हार्मोन्स के कोरेलामिन्स स्रवित होता है जो आगे चलकर मस्तिष्क से एण्डोर्फिन के स्राव को प्रेरित करता है। जिसके प्रभाव से दर्द निवारण के साथ ही शिथिलता का अभाव भी मिलता है। इस तरह हँसती-हँसाती जिन्दगी तनाव रोगों की अचूक व सहज दवा है। आज 60 प्रतिशत रोगों का कारण तनाव है। उच्च रक्तचाप, सिरदर्द, पेष्टिक अल्सर, हृदय रोग आदि तनाव से जुड़े हुए रोग हैं। यही बात माइग्रेन के संदर्भ में भी है। इसका कारण मानसिक तनाव व पित्त का आधिक्य बताया जाता है, जबकि हँसने से तनाव अपने आप दूर होता है, पेट पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है व पित्त से राहत मिलती हैं।
‘कैलीफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी’ की नर्सिंग विभाग की दीरा राबिन्सन पिछले 20 वर्षों से हास्य चिकित्सा पर कार्यरत हैं। उन्होंने अपने अध्ययन-अनुसन्धान में यही पाया है कि मुक्त हँसी से तनाव, घबराहट, क्रोध, संकोच, अवसाद अपने आप भाग जाते हैं। जीवन जीने की एक नयी दृष्टि मिलती है। यहाँ तक कि आप्रेशन को लिए जाते हुए रोगियों के कष्ट में भी कमी आती हैं हँसने के इन्हीं लाभों को देखते हुए बेंगलोर स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तन्त्रिका विज्ञानी संस्थान ने भी हँसने को एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के रूप में लिया है।
हँसी की मस्ती और उससे होने वाले शरीर व मन के प्रभावों का विशेष अध्ययन डॉ0 बोबिन ने किया हैं डॉ0 राबर्ट मेरीलैण्ड बाल्टीमोर विश्वविद्यालय के न्यूरो बायोलॉजी एवं मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं एवं वे स्वयं को हास्य विशेषज्ञ कहलाने में गर्व अनुभव करते हैं। उनका कहना है कि हास्य चिकित्सा द्वारा रक्तचाप, हृदय रोग, ब्रान्काटिस, ब्राँकियल अस्थमा, मानसिक उत्तेजना, अनिद्रा, डिप्रेशन और हीन भावना जैसी बीमारियों को ठीक किया जाता है।
हास्य शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की चिकित्सा ही नहीं, दीर्घायु का सशक्त आधार भी है। मनोवैज्ञानिक थोरटन के अनुसार यदि चेहरे की झुर्रियाँ दूर करनी हैं व लम्बी आयु जीनी है तो हँसने को अपने दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बना लो। न्यूयार्क बेबी हास्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ0 स्टीव के अनुसार, रोगी की मृत्यु को नहीं टाल सकते, किन्तु हँसाते रहकर कुछ दिन बढ़ा सकते हैं। डॉ0 स्टीव जोकर बनकर बच्चों को खूब हँसाते हैं।
न्यूयार्क के डॉ0 वार्डेन ‘हंसता हुआ डॉक्टर’ के नाम से प्रसिद्ध थे। वे रोगी से हँसते हुए मिलते थे व उसे खूब हँसाते थे। वे दवा कम देते थे पर हँसाते अधिक थे। उनके अधिकाँश रोगी दवा से कम उनकी हँसी से ज्यादा ठीक होते थे।
डॉ0 वोकुल का कहना था कि यदि अस्पतालों में डाक्टर व नर्स के चेहरे खिलते रहें तो रोगियों के ठीक होने की तादाद में भारी वृद्धि होगी। अमेरिका के कई अस्पतालों में लाफिंग रूप खुले हैं। जहाँ चुटकुला की किताबें, हँसी वाली फिल्मों के वीडियो एवं दूसरी हँसाने वाली सामग्री रखी जाती है। हँसने को सार्वजनिक स्तर पर प्रचारित करने के लिए मुम्बई का ‘लाफर क्लब इंटरनेशनल’ अपनी तरह का पहला क्लब है। इसके सदस्यों की संख्या हजारों में है व निरन्तर तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
प्रत्यक्ष रूप से नहीं पर हँसना स्वयं को जानने के लिए भी लाभदायक है। तनावमुक्त व्यक्ति ही अपने अस्तित्व की गहराइयों में झाँक सकता है। तभी तो प्राचीन रोम में एक कहावत प्रचलित थी, कि ‘यदि अपने बारे में अधिक जानना चाहते हो तो हँसी को अपना लो।’ इस तरह मुस्कराना, हँसना, खिल-खिलाकर ठहाके लगाना, शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य एवं दीर्घायु जीवन का स्वर्णिम सूत्र है। हँसने का एक महत्वपूर्ण पक्ष है इसकी संक्रामकता। यदि हम हँसते हैं। तो सारा जग अपने साथ हँसने लगता है। एक साथ हँसने से सम्बन्धों की मलिनताएँ, दुर्भावनाएँ आदि घुल जाती हैं व आपसी सम्बन्ध अधिक सरस, विश्वसनीय व सुदृढ़ बनते हैं। जो कि सामाजिक जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। हँसने के लाभ अनेक हैं, अनगिनत हैं, लेकिन इनका यथार्थ परिचय तभी मिल सकता है, जब अपने जीवन का यही एक सूत्र हो-खूब हंसे औरों को भी हँसायेंगे। देखते-देखते तनाव कम होता दीख पड़ने लगेगा एवं दुनिया और रंगीन जीने योग्य नजर आएगी।