Magazine - Year 1997 - Version 2
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Language: HINDI
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महाकाल के कालदण्ड के रूप में उदित ये अंतरिक्षीय हलचलें
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अन्तरिक्ष की जो हलचलें मानव को उसके चिरअतीत से प्रभावित करती रही हैं, उनमें धूमकेतुओं का महत्व सर्वोपरि है। पिछले मई अंक में इसकी परिचयात्मक चर्चा की गयी थीं। हेल बाप्प की परिचर्चा हर किसी ने न केवल इन दिनों सुनी है, बल्कि अनन्त आकाश में उसके सौंदर्य के नजारे भी देखे हैं। धूमकेतुओं का यह इतिहास भी बड़ा ही अजीबोगरीब है। इनका उदय अनेक देशों में, अनेक रूपों में लिया जाता है। सभी मान्यताओं को भली-भाँति जाँचने-परखने पर यह स्पष्ट होता है कि यह प्राकृतिक उथल-पुथल का संकेत चिह्न है। उनके दिखाई देने की अवधि में अगणित शासकों का पतन हुआ और सभ्यता ने कष्टकारी वेदना झेली। अनेकों अनुभवों से जनमानस में यह मान्यता ही बन गयी कि धूमकेतुओं का उदय भूकम्प, बाढ़, अनावृष्टि, हिंसा, मार-काट का भूचाल लेकर आता है। सीजर की हत्या, चार्ल्स मैग्ने की मौत का सम्बन्ध इन्हीं से जोड़ा जाता है। लास ऐंजेलिस के साइकिक आई के रूप में विख्यात मैरीकाश का कहना है कि धूमकेतु का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर अवश्य पड़ता है।
विभिन्न देशों में अनेकों किम्वदंतियों एवं अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखे जाने वाले धूमकेतु का इतिहास बड़ा ही रहस्यमय एवं विचित्र है। इसके बारे में ‘मेसाचुशेट्स इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ के अन्तरिक्षविद तथा विश्वविख्यात उपन्यासकार एलेन लाइटमेन ने कहा है कि , इस दूरस्थ आकाशीय पिण्ड का सम्बन्ध हमारे अतीत से जुड़ा हुआ है। आज का यह चमकता परिदृश्य आने वाले कल के लिए अतीत बन जाएगा और अपने साथ अनेकों रहस्यमय घटनाओं को समेटे रहेगा। अन्तरिक्ष वेत्ताओं के अनुसार हेल-बाप्प का प्रथम दर्शन आज से 2213 बी.सी. वर्ष हुआ था।पुरातत्ववेत्ता हेनरिक स्कलीमेन ने हेल बाप्प के साथ ग्रीक शासकों के पतन-पराभव लम्बा-चौड़ा आँकड़ा पेश किया है। 1594 ई. में डोमेनीको कोन्टाना पर भी इस धूमकेतु का कष्टकारी प्रभाव पड़ा, ऐसा इतिहास विशेषज्ञ मानते हैं। उल्लेखनीय यह है कि विश्व घटनाचक्र का विश्लेषण करने वालों के अनुसार धूमकेतु का प्रभाव सिर्फ अपशकुनात्मक ही नहीं होता, महत्वपूर्ण घटनाएँ भी इसी अवधि में घटती हैं। ये विशेषज्ञ लोग इस काल में हेल बाप्प की सबसे बड़ी उपलब्धि गीजा के पिरामिड को मानते हैं। क्योंकि इसी दौरान ही इस पिरामिड का निर्माण सम्भव हुआ था।
हेल बाप्प धूमकेतु का उदय धर्म, राजनीति, समाज तथा विज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न परिवर्तनों को लेकर हुआ। इससे समस्त पृथ्वी में हलचल मच गयी। कहीं परिवर्तन अच्छे हुए तो कहीं विनाश के बाद सृजन का स्वरूप बन पड़ा। 2213 बी.सी. में जब इसे पहले-पहल देखा गया था, तब इसके कुछ ही समय के पश्चात् रोम तथा एथेंस के साम्राज्यों की नींव पड़ी। इनके प्रतीक के रूप में मेयान. एनकान और एजटेक सभ्यता का अस्तित्व अभी तक देखा जा सकता है। उसी समय सम्पूर्ण यूरोप में कृषि का प्रचलन हुआ। इलिपियास घाटी का विकास, अलास्का की सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता तथा इजिप्ट व चीन तो इसे बेहद प्रभावित हुए।
2293 ईसा पूर्व राजनैतिक, आर्थिक व तकनीकी विभिन्नताओं का दौर था। जब भी धूमकेतुओं का उदय हुआ, उसी के आस-पास प्रकृति में भारी परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानी सी. सी. लैम्बर्ग कार्लोवस्की ने भी धूमकेतु को प्राकृतिक घटनाक्रमों में भारी उथल-पुथल का संकेत माना है। कार्लोवस्की के अनुसार जब भी इनसान धर्म के पथ का परित्याग करके अधर्म और अनर्थ का ताण्डव-नर्तन करने लगता है, तभी प्रकृति उन्हें सचेत करने के लिए धूमकेतुओं द्वारा संकेत देती है। कार्लोवस्की इसी वजह से इन धूमकेतुओं को प्रकृति एवं परमेश्वर के क्रोध का परिचायक भी मानते हैं। ये धूमकेतु युग-प्रत्यावर्तन करने, भगवान महाकाल के कालदण्ड बनकर उदित होते हैं।
सुविख्यात पुरातत्ववेत्ताओं का समुदाय 2213 ईसा पूर्व, यानि कि आज से लगभग 4230 वर्ष पहले हेल बाप्प के उदय होने के समय प्रकृति हेल बाप्प के उदय होने के समय प्रकृति में भीषणतम हलचलों की रेखाँकित करते हैं। ये शान्ति का स्वप्न इसके बाद देखते हैं। 2213 बी. सी. में चीन, इजिप्ट,/ मेसोपोटामिया उत्तरीपेरु, सिन्धु घाटी आदि की सभ्यताएँ अपने यौवन पर थीं। इसके बावजूद इनमें अपनी सभ्यताओं के गर्व की मदान्धता भी आ गयी थी। इसी के साथ इनके अवसान और पतन की शुरुआत हुई। इसे हेल बाप्प के आगमन के साथ इतिहासवेत्ता एवं पुरातत्वविद् जोड़ते हैं। उस समय के कुछ उच्च प्रतिष्ठित ज्ञानी लोग तो राजा या शासक के भाग्य को धूमकेतुओं पर लिखा हुआ मानते हैं। हालाँकि उस युग में भी इस विषय पर काफी मतभेद और मत-मतान्तर प्रचलित थे।
सभ्यता के विकास के साथ धूमकेतु का प्रभाव परिलक्षित होने को प्रायः सभी इतिहासवेत्ता एवं नृतत्वविज्ञानी एक स्वर से स्वीकार करते हैं। उन दिनों हेल बाप्प के दर्शन के समय इजिप्ट के छठवें साम्राज्य का पतन हुआ। उन दिनों इजिप्ट की राजधानी कैरो के पास मेम्फीस में स्थित थी। इसी अवधि में 2575 ईसा पूर्व के आस-पास खुफु ने गीजा के महान पिरामिड का निर्माण कराया था, जो अब भी तपते रेगिस्तान के बीच सैकड़ों सालों से सीधा खड़ा है। राजा एवं राज्यपरिवार के मृतक सदस्यों के गीजा, स्क्वैराह, मेडम, दसूर एवं अवुसीर में कब्रगाह बनाए गए। 14 साल राज्य शासन कर लेने के पश्चात् येदी द्वितीय ने अपने स्थान पर छह साल के राजकुमार को पदासीन किया। इसी के साथ 1252 ईसा पूर्व में भीषण भूकम्प ने तबाही मचा दी थी।
2213 ईसा पूर्व में जबकि हेल बाप्प का स्पष्ट प्रभाव था, कतिपय विशिष्ट ख्यातिलब्ध इतिहासकारों एवं पुरातत्ववेत्ताओं ने विज्ञान, धर्म, राजनीति, समाज व आर्थिक स्थिति के तीव्र एवं व्यापक परिवर्तनों को चित्रित किया है। उन दिनों अल्काड सभ्यता में धतुविज्ञान, कृषि आदि का विकास हो चुका था। केन्द्रीय प्रशासन अनेक छोटे-छोटे राज्यों का नियंत्रण करता था। नगर देवता कृषिदेव आदि के रूप में बहुदेववाद तथा हेपौटोस्क्रोपी का प्रचलन था। व्यापार भी विकासशील अवस्था में पहुँच चुका था। चीन में वैज्ञानिक टेक्नोलॉजी, सिंचाई, धातुकर्मी, संगीत तथा ज्योतिर्विज्ञान की उन्नति इसी काल में हुई। शासन व्यवस्था का सुचारु रूप इन सभ्यताओं में इसी समय विकसित किया। शासन कृषकों पर विशेष रूप से ध्यान देने लगा था। ईश्वर में आस्था एवं विश्वास पैदा करने वाली दार्शनिक प्रणाली इन सभ्यताओं में इसी समय विकसित और प्रचलित हुई।
इसी काल में व्यापारिक प्रणाली एवं धनाढ्य कृषक वहाँ की विशेषता बन गए। इजिप्ट की शासन व्यवस्था उन दिनों धार्मिक लोगों पर आश्रित-अवलम्बित थी। फरोह को शक्तिशाली देवता तथा पैथिअथस को शासन व्यवस्था के देवता के रूप में पूजा जाता था। कृषक नौकरशाही को नियंत्रित करते थे और व्यापार राज्य के अन्दर ही होता था। सिन्धु घाटी की सभ्यता उस समय उच्चस्तरीय थी। मोहन जोदड़ो उन्हीं दिनों अपनी बहुमंजिली इमारत के लिए प्रसिद्ध हुआ। समुद्री यात्रा का प्रचलन उस काल की विशेषता मानी जा सकती है। म्यूनिसिपल प्रशासन खाद्य संग्रह, श्रम विभाजन तथा सार्वजनिक कार्यों का परिचालन करती थी। शिव जैसे देवताओं तथा अन्यान्य दैवी शक्तियों की उपासना के प्रचलन ने अपना विश्वव्यापी आधार बनाया।
इन तथा का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का मत है कि धूमकेतुओं का उदय महाकाल की संक्रमण लीला का द्योतक है। इस अवधि में विध्वंस एवं सृजन की घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं। एक तरफ खंडहर ढहाए जाते हैं तो दूसरी तरफ विशालकाय गगनचुम्बी अट्टालिकाओं के लिए नींव भरी जाती है। भीषणतम विनाश के साथ नव-निर्माण के सरंजाम जुटाए जाना इस समय की विशेषता होती है, जिसका संकेत देने के लिए धूमकेतु अन्तरिक्ष में उदय होते हैं। इस अवधि में प्राचीनता में पड़ती दरारें उभरती दरकनें किसी नवयुग के अभ्युदय की पूर्व सूचना देती है। जिसके संकेत बनकर ये धूमकेतु उभरते हैं।
‘न्यूयार्क मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट’ के इजिप्टोलाँजिस्ट जेम्स एलेन ने 2600 ईसा पूर्व पिरामिड में उल्लेख किए गए तथ्यों को स्पष्ट किया है। इनके अनुसार उस समय जब धूमकेतु का उदय हुआ तो एक राजा की मृत्यु हो गयी। एलेन ने इसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है कि राजा जब अपने अधिकार एवं शक्ति का दुरुपयोग करता है, तो उसके देवता धूमकेतु के रूप में चेतावनी देते हैं। धूमकेतु का प्रभाव यहाँ इसी तरह हुआ माना जाता है।
इस अवधि में किसानों को अधिकतम दरों का भुगतान करना पड़ता था। उन दिनों नील नदी में भीषण बाढ़ आयी थी, फिर भी पिरामिड के लिए विशालकाय प्रस्तर खण्डों को बाहर से लाना पड़ता था। किसानों एवं मजदूरों की स्थिति एकदम चिन्ताजनक थी। इन तमाम तथ्यों का उल्लेख पिरामिड में अंकित मिलता है। जिसमें धूमकेतु के प्रभाव का भी जिक्र है। इसके पश्चात् पेपी के राज्यावधि में अफ्रीका का अन्य देशों से व्यापारिक समझौता हुआ और स्थिति परिवर्तित हुई।
ऐतिहासिक उल्लेख के अनुसार चीन में 2205 ईसा पूर्व झीया साम्राज्य के पतन के पीछे धूमकेतु को कारण माना जाता है। इसी दौरान चीन नीओलिथिक काल-प्रस्तर युग तथा प्रारम्भिक काँस्य युग के बीच झूल रहा था। छोटे-छोटे राज्य आपस में खूनी लड़ाई लड़ रहे थे। समाज हत्या और लूटपाट से त्रस्त था। चीन के लिए यह बड़ा कठिन व कष्टप्रद समय था। धूमकेतु के नाम पर चीन में अनेकों मान्यताएँ प्रचलित हैं। यहाँ के साठ वर्षीय कैलेण्डर साइकिल 2600 ईसा पूर्व धूमकेतुओं की गणना पर आधारित हैं। हार्वर्ड के पुरातत्ववेत्ता राबर्ट मुरोवचीक के मतानुसार धूमकेतु के उदय काल के आस-पास काँस्य युग में कई शासकों व साम्राज्य में तीव्र परिवर्तन हुए। धूमकेतु की ही भाँति ग्रहण को भी चीन में परिवर्तन एवं फेर-बदल का सूचक मानते हैं।
लेडीग विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डेवडि फेंकनीयर का कहना है कि ग्रहण के समय चीनी धरती के अन्दर संग्रहित सम्पदा की खोज में लग जाते हैं। वहाँ के जनमानस में धूमकेतु को काफी भयातुर ढंग से देखा जाता है। राजनैतिक परिदृश्य के परिवर्तन की आशंका तीव्रतम हो जाती है।
धूमकेतु के इस काल में वहाँ नगरीकरण की क्रान्ति सम्पन्न हुई। येल विश्वविद्यालय के विज्ञानी बेंजामिन फास्टर ने मेसोपोटामिया के अक्केडत्री की परंपराओं को प्रकाशित किया है। आजकल यह क्षेत्र दक्षिणी ईराक को माना जाता है। फास्टर के मुताबिक धूमकेतु जब उदय होता है तो भावी जीवन के बारे में जानने की लालसा लोगों में बढ़ जाती है। इस लालसा का कारण परिस्थितियों में व्यापक अस्थिरता का होना ही है। फास्टर ने इस क्रम में मेसोपोटामिया के लोगों का आगे वर्णन करते हुए लिखा है कि वहाँ के प्रशासक राजा नरम सूएन ने धूमकेतु सम्बन्धी परम्परा का उल्लंघन करने का अपूर्व साहस दिखाया। लेकिन जन विद्रोह के सामने उसे मुँह की खानी पड़ी और अपनी राजसत्ता से हाथ धोना पड़ा।
इतिहास विशेषज्ञों का कहना है कि हेल बाप्प के उदय के समय ही मेसोपोटामिया के अक्कड़ नगर का विकास हुआ। यह विश्व का सर्वप्रथम नगर था जहाँ धातु विज्ञान, पीतल के आभूषण, ताम्बे का उत्खनन व युद्ध सामग्रियों का अच्छा विकास हुआ था। एक सुमेरियन ने जब उस नगर का भ्रमण किया तो वहाँ के विकास से हतप्रभ रह गया। अक्कड़ के प्रशासक सेर-कली-शेरी ने जहाँ एक ओर बुचानेनाइट के साथ स्वतन्त्र व्यापार तथा केरेवान मार्ग पर डाकुओं के आतंक को समाप्त किया वहीं स्वयं भी कालचक्र के हाथों अपने को गँवा बैठा। उस समय का इतिहास इसे धूमकेतु का प्रकोप मानता है।
इन्हीं दिनों इण्डस वैली की हड़प्पा सभ्यता में भी नगरीय क्रान्ति हुई। वहाम् का प्रमुख शहर मोहनजोदड़ो था। इस नगर का बाढ़ के कारण नौ बार पुनर्निर्माण किया गया। इसकी विशेषता थी-इसे बहुमंजिला एवं योजनाबद्ध रीति-नीति से बसाया जाना। जहाँ पर सुरक्षा एवं साधन के तमाम सरंजाम मौजूद थे। बाजार उस समय की अत्याधुनिक सामग्रियों से भरा रहता था। वेतनभोगी सरकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाते थे। मोहनजोदड़ो में धूमकेतु का दिखना दैवी प्रकोप माना जाता था। जहाँ की सभ्यता में धार्मिक भाव प्रवलतर था। मन्दिर नहीं थे परन्तु घर-घर उपासना की पद्धति अपनायी जाती थी। यहाँ के लोग भगवान शिव की आराध्य देवता के रूप में पूजा करते थे। धूमकेतु के अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए इस उपासना को सर्वमान्य स्वीकृति थी। इस समय यहाँ 40 हजार आवास अवस्थित थे। धूमकेतु के उदय के समय से मोहनजोदड़ो को अपनी विकास की चरमसीमा प्राप्त करने के लिए तकरीबन सौ सालों का सफर तय करना पड़ा।
अतः इतिहासकारों एवं पुरातत्व वेत्ताओं के निष्कर्षों से स्पष्ट होता है कि हेल बाप्प ने इजिप्ट के शासन, एण्डस घाटी की स्थिति एवं चीन आदि देशों को बुरी तरह से झकझोर दिया था। मोहनजोदड़ो एवं मेसोपोटामिया का विकास भी इसी दौर में हुआ। इसका तात्पर्य यह है कि संक्रमण लीला के संदेशवाहक हेल बाप्प के उदय के साथ ही विनाश एवं सृजन की लीलाएँ चलती रहीं। एम. आई. टी. के लाइटमेन के अनुसार, हेल बाप्प एक आकाशीय पेण्डुलम के समान है जो सेकेंड-मिनट और घण्टों में नहीं वरन् मानवीय सभ्यता के उत्थान-पतन के टिक-टिक के साथ चलता है। उत्तरी कैलीफोर्निया के तकनीकी विशेषज्ञ पाल सैफोने सम्भवतः इसी वजह से इस धूमकेतु को एक चमत्कारिक पिण्ड के रूप में वर्णित किया है।
धूमकेतु के धरती पर पड़ने वाले प्रभावों का हार्वर्ड स्थिसोनियन सेण्टर के एस्ट्रोफिजिक्स विभाग ने हेल बाप्प की वर्तमान उपस्थिति पर गहन अनुसंधान किया है। उनके अनुसार इस बार भी 25 मील चौड़ा और लगभग 200 मील लम्बा यह हेल बाप्प मानवीय सभ्यता पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाएगा। इसका अतीत एवं इतिहास बड़ा ही भयंकर व विप्लवी है। 650 लाख वर्ष पूर्व ऐसे किसी पाँच मील चौड़े धूमकेतु ने युकाटान पेरीनसुला में गिरकर समस्त डायनोसौर जाति को समूल नष्ट कर डाला। सन् 1908 में 200 फुट की चट्टान साइबेरिया के तुगंस्कर में गिरने से हजारों मील का जंगल ध्वस्त हो गया। अन्तरिक्ष शास्त्रियों के अनुसार, आधा मील चौड़े एक उल्कापिण्ड ने सूर्य पर सतत् उत्पात मचाया, जिसकी वजह से सौरमण्डल में वर्षों प्रकाश की दर्शन नहीं हो सका। ऐसी घटना एक लाख साल बाद होती है। इसके दुबारा 2000 के आस-पास घटित होने की सम्भावना है। इस प्रकार स्वच्छन्द विचरण करने वाले आकाशीय पिण्डों से यदा-कदा तो धरती के अस्तित्व का ही प्रश्न उठ खड़ा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के पास में मंडराने वाले तथा तकरीबन आधे मील चौड़े उत्पाती पिण्डों की संख्या लगभग 300 आँकी गयी है। इसमें एक भी तबाही के लिए पर्याप्त हो सकता है।
अमेरिका में धूमकेतु एवं आकाशीय पिण्डों पर सतत् नजर रखने के लिए (एन.ई.ए.टी.) कार्यक्रम चलाया है। नासा के डेविड मौरिसन अन्तरिक्ष के दस फीसदी भाग का गहन अनुसंधान कर लेता है। इसके लिए दोनों गोलार्द्ध में तीन-तीन उच्चस्तरीय एवं बेहद संवेदनशील टेलिस्कोप तैनात किये गए है। इसमें एक दूरबीन पर प्रतिवर्ष 100 लाख डालर का खर्च आता है। लाल ऐलयानस नेशनल लैबोरेटरी के ग्रेन केनाबाइन ने कहा है कि उल्का पिण्ड खतरनाक होते है। इन्हें धरती से सुरक्षा हेतु बचाने के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। काइनेटिक प्लाण्ट द्वारा इन्हें पृथ्वी से दूर खदेड़ा जा सकता है। प्राकृतिक कारणों से भी ये अपना कुछ परिवर्तन कर डालते हैं। सौर तूफान भी इसकी दिशा को परिवर्तित कर देता है। पृथ्वी और चन्द्रमा का संयुक्त बल भी इन्हें हट जाने के लिए बाध्य करता है। इन्हें नाभिकीय विखण्डन द्वारा भी नष्ट किया जा सकता है। जो भी हो उल्कापिण्ड एवं धूमकेतु पृथ्वी के लिए हर-हमेशा भारी उथल-पुथल का संकेत लेकर आते हैं।
हेल बाप्प की उपस्थिति भी कुछ ऐसा ही संकेत कर रही है। इतिहास वेत्ताओं एवं पुरातत्त्वविदों एवं दार्शनिकों द्वारा प्रदत्त इन अन्वेषणों को एकदम झुठलाया नहीं जा सकता। यह ठीक है कि वैज्ञानिकों भी इसके बारे में अपनी परिकल्पना में व्यस्त है। उन्होंने भी इसके बारे में काफी कुछ आँकड़े इकट्ठे कर लिए हैं। उनके अनुसार हेल बाप्प में उपस्थित रासायनिक तत्व ग्रहों की उत्पत्ति का रहस्योद्घाटन कर सकते हैं। विज्ञानविदों ने इसे सौरमण्डल का नटखट बालक कहा है, क्योंकि यह सदा बालकों के समान भ्रमण करता रहता है। कुछ वैज्ञानिक हेल बाप्प की उपस्थिति सौर मण्डल से भी 4.6 अरब वर्ष पूर्व
मानते हैं। ग्रह विशेषज्ञों ने इसमें उपस्थित कुछ विशिष्ट अणुओं के कारण इसके वेवलेन्थ को विश्लेषित किया है। प्रयोगोपरान्त स्पष्ट हुआ है कि हेल बाप्प की यह विशिष्टता किसी अन्य धूमकेतु से काफी भिन्नता रखती है। इस निष्कर्ष से इस बात की भी खुलासा होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि हेल बाप्प कभी पृथ्वी से टकराया था। सम्भव है इसी अवधि में इसमें समुद्र के जलकण एवं कार्बनिक तत्व अवशेष के रूप में दिखाई दे रहे हैं।
वैसे अभी इस सम्बन्ध में किए गए वैज्ञानिकों के अन्वेषण-अनुसंधान कार्य की शुरुआत भर है। फिर भी ये सभी विज्ञानवेत्ता भी अपने इस क्रम में किसी विशेष रहस्योद्घाटन की आशा लगाए है। इतिहासकार एवं पुरातत्व विज्ञानी इस बारे में हेल बाप्प के अतीत से कुछ सीखने की प्रेरणा देते दिखते हैं। इस सम्बन्ध में दिव्यदर्शियों का स्पष्ट मत है कि हेल बाप्प की उपस्थिति प्राकृतिक एवं सामाजिक घटनाक्रमों में व्यापक उथल-पुथल के संकेत दे रही है। जीवन को सभी स्तरों में विनाश एवं सृजन का दौर साथ-साथ चलेगा। हेल बाप्प के उदय के समय से लेकर अब तक यदि राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में यदि राजनैतिक, सामाजिक, साँस्कृतिक उलटफेर का आकलन-विश्लेषण किया जाय तो कथन की प्रामाणिकता अपने आप ही समझ में आने लगेगी। ध्यान रहे क्रान्तियाँ माल-गाड़ी के डिब्बों की तरह एक के बाद एक आने वाली हैं। पुराने के टूटने-दरकने नष्ट होने के साथ ही नवयुग के अभ्युदय, अरुणोदय का संदेशवाहक बनकर हेल बाप्प अन्रिक्ष में आ टिका हुआ है। उसके संकेत को समय रहते हुए समझकर भवितव्यता के अनुरूप स्वयं को ढालने में ही समझदारी है।