Magazine - Year 2000 - Version 2
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Language: HINDI
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सृजन सैनिकों के प्रति भावभरी अभिव्यक्ति (kavita)
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नींव के पत्थरों! यह मिशन का भवन,
युग-युगों तक तुम्हारा रहेगा ऋणी।
मानते है कि तुम भूमि के गर्भ में,
कर सकोगे न अनुभव पवन की छुआन,
मंदिरों की मधुर घंटियों की गमक,
भोर की गोद में मुस्कराती किरन,
दिख सकेगी न तुमको बसंती छटा,
छू न पाएगी तुमको घट सावनी।
सत्य है, सामने भव्यता के कभी,
तम नहीं आ सकोगे किसी ध्यान में,
कोई उत्सव-समारोह अथवा सभा,
भी न होगी तुम्हारे सुसम्मान में,
गीत-स्तुति-प्रशंसा तुम्हारे लिए,
लिख सकेगी नहीं कोई भी लेखनी।
यह भवन अब भले ही गगन चूम ले,
किंतु उसको जनाधार तुमसे मिला,
खुद अपरिचित रहे, पर मिशन की प्रखर,
कीर्ति को विश्व-विस्तार तुमसे मिला,
छा गई छाँह बनकर मिशन के लिए,
साथियों! भाव-श्रद्धा तुम्हारी घनी।
नींव होती तुम्हारी सबल यदि नहीं,
तो मिशन भव्यता प्राप्त करता नहीं,
जुड़ न पाते जड़ों से करोड़ों विटप,
विश्व-उद्यान इतना सँवरता नहीं,
सुरसरी इस मिशन की न बनती कभी,
त्रस्त संसार के हित तरण-तारिणी।
नींव के पत्थरों! पात्रता का कहीं,
मिल सकेगा तुम्हारा न सानी कभी,
एक पल भी नहीं भूल पाएँगे हम,
त्याग-तप की तुम्हारी कहानी कभी,
स्वार्थ को त्यागकर, बीज से तुम गले,
दीप-से तुम जले, भावना के धनी!
कोई देखे-न-देखे, तुम्हारे लिए,
पूज्य गुरुदेव की दृष्टि से प्यार है,
अब तुम्हारे लिए दिव्य अनुदान से,
छलछलाती हुई गुरु-कृपाधार है,
कल नया युग प्रतिष्ठित करेगा तुम्हें,
हो मिशन के तुम्हीं वास्तविक अग्रणी।
*समाप्त*