Books - अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2
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Language: HINDI
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एक भयानक घटना टली
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दिसम्बर २००८ की बात है। उन दिनों मैं नए वर्ष के लिए ‘अखण्ड ज्योति’ एवं ‘युग निर्माण योजना’ के सदस्य बनाने में व्यस्त थी। उसी समय मेरे साथ एक भयानक किन्तु आश्चर्यजनक घटना घटी। मैं नया सिलेण्डर भरवाकर बाजार से लाई थी, शायद वह कहीं से लीकेज था। पास में रखे लैम्प से उसमें आग लग गई। मैंने बुझाने का बहुत प्रयास किया परन्तु लपटें बढ़ती ही गईं। किसी तरह रसोई से घसीट कर सिलेण्डर को मैं बरामदे तक ले आयी। आगे खुले स्थान पर ले जाना संभव न था, क्योंकि लपटें अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थीं। मैंने अपनी माँ को घर से बाहर ले जाकर बैठा दिया।
बाहर निकलकर पड़ोसियों से सहायता के लिए चिल्लाई। सारे पड़ोसी एकत्र होकर अपनी- अपनी राय देने लगे और अपनी तरह से आग बुझाने का प्रयास करने लगे, पर किसी को कोई भी कामयाबी नहीं मिली। किसी ने फायर ब्रिगेड को सूचना भी दे दी, लेकिन स्टेशन पास न होने के कारण शीघ्र सहायता न मिल सकी। मेरे सामने विषम परिस्थिति थी। सामने साक्षात् तबाही का दृश्य था। देखने वालों की भीड़ लगी थी। सभी त्राहि- त्राहि कर रहे थे। परन्तु सहानुभूति के अलावा किसी के पास कोई उपाय न था। मैं बहुत घबराई हुई थी। जाड़े की शाम जल्दी ही गहरा जाती है। सायं पाँच बजे का समय था, अँधेरा छाने लगा था। लपटें अपना उग्र रूप धारण करती जा रही थीं। सिलेण्डर पूरा भरा होने के कारण देर तक जलता रहा। मैंने भीड़ की ओर एक बार फिर देखा कि शायद कोई कुछ उपाय कर सके, परन्तु इस भौतिक संसार में इतनी सामर्थ्य कहाँ जो किसी का कष्ट हर ले।
कुछ ही पलों में एक भयानक दुर्घटना होने वाली थी, सभी विवश थे, उस भयानक स्थिति में सहसा मुझे गुरुदेव याद आये। मैं आर्त स्वर में रो पड़ी, गुरुदेव मेरी रक्षा करो, आप ही इस तबाही से मेरी रक्षा कर सकते हैं। गुरुदेव! यदि कुछ अनिष्ट हुआ तो मन टूट जाएगा, मैं इस समय आपका कार्य कर रही हूँ। उसमें व्यवधान आ जाएगा। इतना परिपक्व नहीं हूँ जो इतनी बड़ी घटना को सह सकूँ। गुरुदेव! क्षति मेरी नहीं आपकी होगी। लोग कहेंगे कि लोगों को गायत्री उपासना की सलाह देती हैं और कहती हैं गायत्री मंत्र सबका कल्याण करने वाला अनिष्ट निवारक मंत्र है। अपना ही अनिष्ट नहीं रोक पाई। इस घटना से बहुत लोगों की आस्था टूट जाएगी। लोग कहेंगे कि गायत्री उपासना में कोई शक्ति नहीं है। ज्यों- ज्यों लपटें बढ़ रही थीं मेरी प्रार्थना और आर्त होती जा रही थी। परन्तु गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास था कि अब कुछ नहीं होगा। जब गुरुदेव याद आ गए तो निश्चित है कि परोक्ष में वे साथ दे रहे हैं। मन में विश्वास जागा कि गुरुदेव आ गए, अब कोई अनिष्ट नहीं होगा।
बहनों ने कहा- सिलेण्डर से तेज आवाज होने लगी है, घर से बाहर निकल आओ, बस फटने ही वाला है। घर की छत उड़ जाएगी, दरवाजे दीवारें गिर जाएँगी। बड़ा भयानक विस्फोट होगा। सामान का नुकसान हो जाएगा कोई बात नहीं, जान तो बच जाएगी। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे यह आभास हो रहा था कि मेरी करुण पुकार सुनकर मेरे गुरुदेव आ गए हैं अब कुछ नहीं होगा। मैंने उनसे यही बात कही भी। भीड़ से कुछ लोग व्यंग्यात्मक हँसी हँसकर बोले- यह विज्ञान का सत्य है कि सिलेण्डर फटेगा तो दीवार दरवाजे टूट जाएँगे, भयानक हादसा होगा। विज्ञान के नियमों में कच्ची श्रद्धा न रखो, इसमें तुम्हारे गुरु क्या कर पायेंगे। मेरा मन शांत था जैसे सब कुछ सामान्य हो। सहसा मेरे मन में विचार आया- जैसे किसी ने आदेश दिया हो कि तुम गायत्री मंत्र का जप शुरू करो। मैंने तुरंत आँखें बंद करके जप शुरू कर दिया। मेरे इस क्रिया- कलाप को सभी देख रहे थे और यह कह रहे थे कि मानती नहीं है। अंधी श्रद्धा भक्ति इसको ले डूबेगी।
एक बुजुर्ग हितैषी बाहर ले जाने के लिए मेरा हाथ पकड़कर घसीटने लगे। मैंने कहा- मामा जी चिन्ता न करें मेरा मन शांत है। यहाँ पर अदृश्य में गुरुदेव उपस्थित हैं। अब मुझे चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। मैंने पुनः आँखें बंद कर गायत्री मंत्र का जप शुरू कर दिया। अभी ११ मंत्र ही हुए होंगे कि सिलेण्डर से साँय- साँय की तेज आवाज आने लगी। लोग चिल्लाने लगे कि अब सिलेण्डर फटने वाला है, ये बाहर निकल नहीं रही है। इसके बाद मैं भीड़ के कोलाहल से बेखबर, आँखें बंद किए, ध्यानावस्थित होकर मंत्र जप करती रही। एक भयानक धमाके के साथ सिलेण्डर फट गया। घर की दीवारें, छत व पृथ्वी हिल गई। साथ ही मैं भी डगमगा गई। मन मस्तिष्क को धमाके ने हिला दिया। सिलेण्डर फटने का दृश्य मैंने नहीं देखा, क्योंकि मैं आँखें बंद किए हुए थी। धमाके की आवाज सुनकर सभी रोने लगे। मेरी माँ का रोते- रोते बुरा हाल था, लोग समझ रहे थे कि मेरा अंत हो चुका है। धमाके से मेरी आँखें खुलीं तो देखा पूरा घर धूल से भर गया है। चारों तरफ धूल ही धूल थी। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने अपने शरीर को स्पर्श किया कि कहीं मुझे चोट वगैरह तो नहीं आई! अपने को सुरक्षित पा मैं जोर से चिल्लाई- परेशान मत होओ मुझे कुछ नहीं हुआ। जब मैं घर से बाहर निकली तो मुझे सुरक्षित देख मेरी माँ मुझसे लिपट गई। सबकी आँखों में आँसू आ गए।
मेरा मन गुरु के प्रति कृतज्ञ हो उठा। लगभग १ घंटे तक चर्चा चलती रही। धमाके की आवाज सुनकर दूर- दूर के लोग भी एकत्रित हो गए। एक घंटे बाद जब घर की धूल बैठ गई तो कुछ लोगों के साथ घर के अन्दर गई। देखा टमाटर, संतरे, अंगूर, कपड़े सभी धमाके से छत पर चिपक गए थे। अलमारी से बरतन नीचे गिर गए थे। इधर- उधर बिखर गए थे। सारे घर में धूल ही धूल थी, सभी कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाला था। सबसे अधिक आश्चर्य तो लोगों को तब हुआ जब उन्होंने देखा कि बरामदे में रखा सिलेण्डर धरती में १ फुट नीचे धँस गया, और उसके ऊपर का हिस्सा टूटकर मात्र १ से २ फुट की दूरी पर बिखरे हुए थे, जैसे किसी ने उन्हें जान बूझकर समेट दिया हो। सिलेण्डर के पास रखी चारपाई, दरवाजे बॉक्स, सब सुरक्षित थे और कहीं भी कुछ नुकसान नहीं हुआ। छत दीवार सब सही सलामत थे, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। रात्रि हो गई थी, घर को वैसी स्थिति में छोड़कर हम सब सो गए। दूसरे दिन जब सवेरा हुआ तो लोगों का जमावड़ा होने लगा। इस अद्भुत घटना को देखने के लिए जन समूह उमड़ पड़ा। लोगों ने कई सिलेण्डर फटते देखे, जिसमें छत दीवारें, दरवाजों के काफी नुकसान हुए, सिलेण्डर को जमीन में धँसते किसी ने नहीं देखा था। सभी लोग कह रहे थे कि यह अद्भुत लीला तो सर्वोच्च सत्ता की ही हो सकती है, जो असंभव को संभव कर दे। यह तो विज्ञान को अध्यात्म की जबरदस्त चुनौती है। गुरु पर श्रद्धा विश्वास का फल देखकर सभी परम पूज्य गुरुदेव और माँ गायत्री के चरणों में नतमस्तक हो गए।
प्रस्तुति:- ममता सिंह
रायबरेली (उ.प्र.)
बाहर निकलकर पड़ोसियों से सहायता के लिए चिल्लाई। सारे पड़ोसी एकत्र होकर अपनी- अपनी राय देने लगे और अपनी तरह से आग बुझाने का प्रयास करने लगे, पर किसी को कोई भी कामयाबी नहीं मिली। किसी ने फायर ब्रिगेड को सूचना भी दे दी, लेकिन स्टेशन पास न होने के कारण शीघ्र सहायता न मिल सकी। मेरे सामने विषम परिस्थिति थी। सामने साक्षात् तबाही का दृश्य था। देखने वालों की भीड़ लगी थी। सभी त्राहि- त्राहि कर रहे थे। परन्तु सहानुभूति के अलावा किसी के पास कोई उपाय न था। मैं बहुत घबराई हुई थी। जाड़े की शाम जल्दी ही गहरा जाती है। सायं पाँच बजे का समय था, अँधेरा छाने लगा था। लपटें अपना उग्र रूप धारण करती जा रही थीं। सिलेण्डर पूरा भरा होने के कारण देर तक जलता रहा। मैंने भीड़ की ओर एक बार फिर देखा कि शायद कोई कुछ उपाय कर सके, परन्तु इस भौतिक संसार में इतनी सामर्थ्य कहाँ जो किसी का कष्ट हर ले।
कुछ ही पलों में एक भयानक दुर्घटना होने वाली थी, सभी विवश थे, उस भयानक स्थिति में सहसा मुझे गुरुदेव याद आये। मैं आर्त स्वर में रो पड़ी, गुरुदेव मेरी रक्षा करो, आप ही इस तबाही से मेरी रक्षा कर सकते हैं। गुरुदेव! यदि कुछ अनिष्ट हुआ तो मन टूट जाएगा, मैं इस समय आपका कार्य कर रही हूँ। उसमें व्यवधान आ जाएगा। इतना परिपक्व नहीं हूँ जो इतनी बड़ी घटना को सह सकूँ। गुरुदेव! क्षति मेरी नहीं आपकी होगी। लोग कहेंगे कि लोगों को गायत्री उपासना की सलाह देती हैं और कहती हैं गायत्री मंत्र सबका कल्याण करने वाला अनिष्ट निवारक मंत्र है। अपना ही अनिष्ट नहीं रोक पाई। इस घटना से बहुत लोगों की आस्था टूट जाएगी। लोग कहेंगे कि गायत्री उपासना में कोई शक्ति नहीं है। ज्यों- ज्यों लपटें बढ़ रही थीं मेरी प्रार्थना और आर्त होती जा रही थी। परन्तु गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास था कि अब कुछ नहीं होगा। जब गुरुदेव याद आ गए तो निश्चित है कि परोक्ष में वे साथ दे रहे हैं। मन में विश्वास जागा कि गुरुदेव आ गए, अब कोई अनिष्ट नहीं होगा।
बहनों ने कहा- सिलेण्डर से तेज आवाज होने लगी है, घर से बाहर निकल आओ, बस फटने ही वाला है। घर की छत उड़ जाएगी, दरवाजे दीवारें गिर जाएँगी। बड़ा भयानक विस्फोट होगा। सामान का नुकसान हो जाएगा कोई बात नहीं, जान तो बच जाएगी। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे यह आभास हो रहा था कि मेरी करुण पुकार सुनकर मेरे गुरुदेव आ गए हैं अब कुछ नहीं होगा। मैंने उनसे यही बात कही भी। भीड़ से कुछ लोग व्यंग्यात्मक हँसी हँसकर बोले- यह विज्ञान का सत्य है कि सिलेण्डर फटेगा तो दीवार दरवाजे टूट जाएँगे, भयानक हादसा होगा। विज्ञान के नियमों में कच्ची श्रद्धा न रखो, इसमें तुम्हारे गुरु क्या कर पायेंगे। मेरा मन शांत था जैसे सब कुछ सामान्य हो। सहसा मेरे मन में विचार आया- जैसे किसी ने आदेश दिया हो कि तुम गायत्री मंत्र का जप शुरू करो। मैंने तुरंत आँखें बंद करके जप शुरू कर दिया। मेरे इस क्रिया- कलाप को सभी देख रहे थे और यह कह रहे थे कि मानती नहीं है। अंधी श्रद्धा भक्ति इसको ले डूबेगी।
एक बुजुर्ग हितैषी बाहर ले जाने के लिए मेरा हाथ पकड़कर घसीटने लगे। मैंने कहा- मामा जी चिन्ता न करें मेरा मन शांत है। यहाँ पर अदृश्य में गुरुदेव उपस्थित हैं। अब मुझे चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। मैंने पुनः आँखें बंद कर गायत्री मंत्र का जप शुरू कर दिया। अभी ११ मंत्र ही हुए होंगे कि सिलेण्डर से साँय- साँय की तेज आवाज आने लगी। लोग चिल्लाने लगे कि अब सिलेण्डर फटने वाला है, ये बाहर निकल नहीं रही है। इसके बाद मैं भीड़ के कोलाहल से बेखबर, आँखें बंद किए, ध्यानावस्थित होकर मंत्र जप करती रही। एक भयानक धमाके के साथ सिलेण्डर फट गया। घर की दीवारें, छत व पृथ्वी हिल गई। साथ ही मैं भी डगमगा गई। मन मस्तिष्क को धमाके ने हिला दिया। सिलेण्डर फटने का दृश्य मैंने नहीं देखा, क्योंकि मैं आँखें बंद किए हुए थी। धमाके की आवाज सुनकर सभी रोने लगे। मेरी माँ का रोते- रोते बुरा हाल था, लोग समझ रहे थे कि मेरा अंत हो चुका है। धमाके से मेरी आँखें खुलीं तो देखा पूरा घर धूल से भर गया है। चारों तरफ धूल ही धूल थी। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने अपने शरीर को स्पर्श किया कि कहीं मुझे चोट वगैरह तो नहीं आई! अपने को सुरक्षित पा मैं जोर से चिल्लाई- परेशान मत होओ मुझे कुछ नहीं हुआ। जब मैं घर से बाहर निकली तो मुझे सुरक्षित देख मेरी माँ मुझसे लिपट गई। सबकी आँखों में आँसू आ गए।
मेरा मन गुरु के प्रति कृतज्ञ हो उठा। लगभग १ घंटे तक चर्चा चलती रही। धमाके की आवाज सुनकर दूर- दूर के लोग भी एकत्रित हो गए। एक घंटे बाद जब घर की धूल बैठ गई तो कुछ लोगों के साथ घर के अन्दर गई। देखा टमाटर, संतरे, अंगूर, कपड़े सभी धमाके से छत पर चिपक गए थे। अलमारी से बरतन नीचे गिर गए थे। इधर- उधर बिखर गए थे। सारे घर में धूल ही धूल थी, सभी कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाला था। सबसे अधिक आश्चर्य तो लोगों को तब हुआ जब उन्होंने देखा कि बरामदे में रखा सिलेण्डर धरती में १ फुट नीचे धँस गया, और उसके ऊपर का हिस्सा टूटकर मात्र १ से २ फुट की दूरी पर बिखरे हुए थे, जैसे किसी ने उन्हें जान बूझकर समेट दिया हो। सिलेण्डर के पास रखी चारपाई, दरवाजे बॉक्स, सब सुरक्षित थे और कहीं भी कुछ नुकसान नहीं हुआ। छत दीवार सब सही सलामत थे, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। रात्रि हो गई थी, घर को वैसी स्थिति में छोड़कर हम सब सो गए। दूसरे दिन जब सवेरा हुआ तो लोगों का जमावड़ा होने लगा। इस अद्भुत घटना को देखने के लिए जन समूह उमड़ पड़ा। लोगों ने कई सिलेण्डर फटते देखे, जिसमें छत दीवारें, दरवाजों के काफी नुकसान हुए, सिलेण्डर को जमीन में धँसते किसी ने नहीं देखा था। सभी लोग कह रहे थे कि यह अद्भुत लीला तो सर्वोच्च सत्ता की ही हो सकती है, जो असंभव को संभव कर दे। यह तो विज्ञान को अध्यात्म की जबरदस्त चुनौती है। गुरु पर श्रद्धा विश्वास का फल देखकर सभी परम पूज्य गुरुदेव और माँ गायत्री के चरणों में नतमस्तक हो गए।
प्रस्तुति:- ममता सिंह
रायबरेली (उ.प्र.)