Books - अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2
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Language: HINDI
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अनजानी बीमारी से बचाई गयी बालिका
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मेरी बेटी वंदना को अचानक बेहोशी का दौरा पड़ने लगा। इस बीमारी की शुरुआत तब हुई, जब वह ननिहाल में थी। वहीं पर इलाज शुरू हुआ। एक एक कर कई डॉक्टरों की दवाएँ चलीं, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
दो- तीन महीने बीतते- बीतते बीमारी बहुत बढ़ गई। अब बेहोशी के बाद पैरों में असहनीय दर्द की शिकायत भी रहने लगी और धीरे- धीरे चलना- फिरना भी कठिन हो गया। ऐसी हालत में वंदना को औरंगाबाद लाकर डॉ. गुंजन सिन्हा को दिखाया गया, लेकिन उनका इलाज भी कोई काम नहीं आया।
उन्हीं दिनों घर पर आए एक रिश्तेदार ने राँची के प्रसिद्ध डॉक्टर के.के. सिंह को दिखाने की सलाह दी। इन्हें एशिया के अन्य देशों से भी कन्सल्टेन्ट के रूप में बुलाया जाता है। डॉ. सिंह ने भी कई तरह की जाँच करवाई, लेकिन किसी भी जाँच की रिपोर्ट से बीमारी पकड़ में नहीं आई।
बेहोशी के दौरे अब और भी जल्दी- जल्दी आने लगे। इस लम्बी चिकित्सा प्रक्रिया से थककर मेरी बच्ची जीवन के प्रति कुछ निराश- सी हो चली थी। दिन भर गुम- सुम सी बैठी रहती थी। अकेले में ‘गायत्री माता- गायत्री माता’ बुदबुदाया करती थी। एक ही रट लगाए रहती- मुझे गायत्री मन्दिर ले चलो।
गायत्री मन्दिर के पास हमारी थोड़ी- सी जमीन थी। उसमें घर बनाने की तैयारी चल रही थी। हमने उसे दिलासा दे रखी थी कि भूमि पूजन के दिन गायत्री मन्दिर ले चलेंगे। निर्धारित तिथि को हम सब भूमि पूजन के लिए घर से चले। वंदना भी हमारे साथ थी। गायत्री मन्दिर जाने के नाम पर वह बहुत खुश थी। साइट पर पहुँचते ही उसने कहा- अब चलो गायत्री मंदिर। हमने कहा- पूजा हो जाने दो, हम सब साथ- साथ चलेंगे। लेकिन वह जिद करने लगी कि अभी चलो। भूमि पूजन में व्यवधान होते देखकर मैंने उसे जोर से डाँट दिया। वह रो- रोकर बेहोश हो गई।
हम सभी घबरा उठे। भूमिपूजन को बीच में ही रोककर उसे गायत्री मंदिर ले जाकर माँ गायत्री की मूर्ति के आगे लिटा दिया गया। कुछ मिनटों बाद ही उसे होश आ गया। वह आँखें मलते हुए उठ बैठी। स्वयं को मन्दिर में पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह एक ही झटके में गायत्री माता की मूर्ति के पास पहुँची और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी। थोड़ी देर बाद हम लोग भूमि पूजन के लिए वापस चल पड़े। वंदना तो उछलती- कूदती इस प्रकार आगे भागी जा रही थी मानो उसे पंख लग गए हों।
उसी दिन से उसका दौरा पड़ना हमेशा के लिए बन्द हो गया। माँ गायत्री की असीम अनुकम्पा से आज वह पूरी तरह से स्वस्थ है।
प्रस्तुतिः आशा देवी
औरंगाबाद (बिहार)
दो- तीन महीने बीतते- बीतते बीमारी बहुत बढ़ गई। अब बेहोशी के बाद पैरों में असहनीय दर्द की शिकायत भी रहने लगी और धीरे- धीरे चलना- फिरना भी कठिन हो गया। ऐसी हालत में वंदना को औरंगाबाद लाकर डॉ. गुंजन सिन्हा को दिखाया गया, लेकिन उनका इलाज भी कोई काम नहीं आया।
उन्हीं दिनों घर पर आए एक रिश्तेदार ने राँची के प्रसिद्ध डॉक्टर के.के. सिंह को दिखाने की सलाह दी। इन्हें एशिया के अन्य देशों से भी कन्सल्टेन्ट के रूप में बुलाया जाता है। डॉ. सिंह ने भी कई तरह की जाँच करवाई, लेकिन किसी भी जाँच की रिपोर्ट से बीमारी पकड़ में नहीं आई।
बेहोशी के दौरे अब और भी जल्दी- जल्दी आने लगे। इस लम्बी चिकित्सा प्रक्रिया से थककर मेरी बच्ची जीवन के प्रति कुछ निराश- सी हो चली थी। दिन भर गुम- सुम सी बैठी रहती थी। अकेले में ‘गायत्री माता- गायत्री माता’ बुदबुदाया करती थी। एक ही रट लगाए रहती- मुझे गायत्री मन्दिर ले चलो।
गायत्री मन्दिर के पास हमारी थोड़ी- सी जमीन थी। उसमें घर बनाने की तैयारी चल रही थी। हमने उसे दिलासा दे रखी थी कि भूमि पूजन के दिन गायत्री मन्दिर ले चलेंगे। निर्धारित तिथि को हम सब भूमि पूजन के लिए घर से चले। वंदना भी हमारे साथ थी। गायत्री मन्दिर जाने के नाम पर वह बहुत खुश थी। साइट पर पहुँचते ही उसने कहा- अब चलो गायत्री मंदिर। हमने कहा- पूजा हो जाने दो, हम सब साथ- साथ चलेंगे। लेकिन वह जिद करने लगी कि अभी चलो। भूमि पूजन में व्यवधान होते देखकर मैंने उसे जोर से डाँट दिया। वह रो- रोकर बेहोश हो गई।
हम सभी घबरा उठे। भूमिपूजन को बीच में ही रोककर उसे गायत्री मंदिर ले जाकर माँ गायत्री की मूर्ति के आगे लिटा दिया गया। कुछ मिनटों बाद ही उसे होश आ गया। वह आँखें मलते हुए उठ बैठी। स्वयं को मन्दिर में पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह एक ही झटके में गायत्री माता की मूर्ति के पास पहुँची और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी। थोड़ी देर बाद हम लोग भूमि पूजन के लिए वापस चल पड़े। वंदना तो उछलती- कूदती इस प्रकार आगे भागी जा रही थी मानो उसे पंख लग गए हों।
उसी दिन से उसका दौरा पड़ना हमेशा के लिए बन्द हो गया। माँ गायत्री की असीम अनुकम्पा से आज वह पूरी तरह से स्वस्थ है।
प्रस्तुतिः आशा देवी
औरंगाबाद (बिहार)