Books - अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2
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Language: HINDI
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पुत्रवत्सल गुरुदेव
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परम पूज्य गुरुदेव का सान्निध्य सन् १९५९ में ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका के माध्यम से मिला। गुरुदेव के व्यक्तिगत पत्राचार और मार्गदर्शन के अनुरूप मैं अपनी दिनचर्या विधिवत् चला रहा था। मेरे जीवन का अधिकांश समय गुरुकार्य में ही लगता था। इससे मुझे आंतरिक शांति भी मिलती थी। जब कभी शिथिलता आती तो मन बेचैन हो उठता। मेरी धर्मपत्नी का भी गुरु कार्य में बड़ा सहयोग रहता था। हमारे जीवन में बहुत सारे ऐसे क्षण आए जिसमें मैंने गुरु की कृपा और करुणा को अनुभव किया।
कहते हैं माँ भी शिशु को दूध पिलाने तभी दौड़ती है जब वह रोता है। मगर हम बच्चों पर गुरु देव का प्यार उस मातृप्रेम से भी निराला था। हम माँगें या न माँगें, उन्हें हमारी जरूरतों का ध्यान अवश्य रहता है। हमारे ज्येष्ठ पुत्र का विवाह हुए दो वर्ष से अधिक बीत चुके थे, मगर बहू को अब तक कोई सन्तान की प्राप्ति नहीं हुई थी। स्वाभाविक रूप से कुलदीपक के रूप में एक पौत्र की अभिलाषा हमारे मन में दबी हुई थी। विशेषकर मेरी धर्मपत्नी को इस बात का काफी कष्ट था।
१२ सितम्बर सन् २००० की बात है। अनन्त चतुर्दशी का दिन था। रात्रि के अन्तिम प्रहर- ब्रह्ममुहूर्त में मैंने एक स्वप्न देखा। स्वप्न में मैंने अपने- आपको शान्तिकुञ्ज में नौ दिवसीय शिविर में साधना करते हुए पाया। साधना के समापन पर गुरु देव का लिखा एक पत्र मुझे प्राप्त होता है, जिसमें उनका स्पष्ट आश्वासन था कि हमारी साधना के फलस्वरूप हमारे घर में एक शिशुपुत्र का आगमन होगा। आनन्द से हृदय इतना गदगद हो गया कि नींद खुलने और स्वप्न टूटने के बाद भी वह आनन्द बना रहा। मन बार- बार कहता गुरु देव का आश्वासन झूठा नहीं हो सकता। घर में किसी अन्य को तो इस स्वप्न की बात मैंने नहीं बताई, केवल धर्मपत्नी के साथ थोड़ी- सी चर्चा की और गुरुदेव के आश्वासन वाक्य को एक कागज पर लिखकर मैंने लिफाफे में बन्द कर बेटे के हाथ में दे दिया और हिदायत दी कि इसे सँभालकर रखना। भूलकर भी खोलकर नहीं देखना। समय आने पर मैं स्वयं लिफाफा खोलने को कहूँगा।
ब्रह्ममुहूर्त का स्वप्न निष्फल नहीं जाता- ऐसा मैंने सुन रखा था। करीब दो माह बाद बहू के संतान- संभावना की जानकारी मैंने अपनी धर्मपत्नी से पाई। मैंने कहा- अवश्य ही पोता होगा। गुरु देव का आशीर्वाद फलित होगा। उनके आश्वासन के करीब साल भर बाद गुरु देव का वह वरदान पौत्र रूप में हमारे घर आया। धन्य है गुरुदेव का वात्सल्य, प्यार, आशीर्वाद, जो बिना माँगे हमारे ऊपर बरसा।
प्रस्तुति :: नर्मदा प्रसाद ओझा,
मौर्यविहार, पटना (बिहार)
कहते हैं माँ भी शिशु को दूध पिलाने तभी दौड़ती है जब वह रोता है। मगर हम बच्चों पर गुरु देव का प्यार उस मातृप्रेम से भी निराला था। हम माँगें या न माँगें, उन्हें हमारी जरूरतों का ध्यान अवश्य रहता है। हमारे ज्येष्ठ पुत्र का विवाह हुए दो वर्ष से अधिक बीत चुके थे, मगर बहू को अब तक कोई सन्तान की प्राप्ति नहीं हुई थी। स्वाभाविक रूप से कुलदीपक के रूप में एक पौत्र की अभिलाषा हमारे मन में दबी हुई थी। विशेषकर मेरी धर्मपत्नी को इस बात का काफी कष्ट था।
१२ सितम्बर सन् २००० की बात है। अनन्त चतुर्दशी का दिन था। रात्रि के अन्तिम प्रहर- ब्रह्ममुहूर्त में मैंने एक स्वप्न देखा। स्वप्न में मैंने अपने- आपको शान्तिकुञ्ज में नौ दिवसीय शिविर में साधना करते हुए पाया। साधना के समापन पर गुरु देव का लिखा एक पत्र मुझे प्राप्त होता है, जिसमें उनका स्पष्ट आश्वासन था कि हमारी साधना के फलस्वरूप हमारे घर में एक शिशुपुत्र का आगमन होगा। आनन्द से हृदय इतना गदगद हो गया कि नींद खुलने और स्वप्न टूटने के बाद भी वह आनन्द बना रहा। मन बार- बार कहता गुरु देव का आश्वासन झूठा नहीं हो सकता। घर में किसी अन्य को तो इस स्वप्न की बात मैंने नहीं बताई, केवल धर्मपत्नी के साथ थोड़ी- सी चर्चा की और गुरुदेव के आश्वासन वाक्य को एक कागज पर लिखकर मैंने लिफाफे में बन्द कर बेटे के हाथ में दे दिया और हिदायत दी कि इसे सँभालकर रखना। भूलकर भी खोलकर नहीं देखना। समय आने पर मैं स्वयं लिफाफा खोलने को कहूँगा।
ब्रह्ममुहूर्त का स्वप्न निष्फल नहीं जाता- ऐसा मैंने सुन रखा था। करीब दो माह बाद बहू के संतान- संभावना की जानकारी मैंने अपनी धर्मपत्नी से पाई। मैंने कहा- अवश्य ही पोता होगा। गुरु देव का आशीर्वाद फलित होगा। उनके आश्वासन के करीब साल भर बाद गुरु देव का वह वरदान पौत्र रूप में हमारे घर आया। धन्य है गुरुदेव का वात्सल्य, प्यार, आशीर्वाद, जो बिना माँगे हमारे ऊपर बरसा।
प्रस्तुति :: नर्मदा प्रसाद ओझा,
मौर्यविहार, पटना (बिहार)