Books - गायत्री की परम कल्याणकारी सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि
Language: HINDI
मनोनिग्रह और ब्रह्मप्राप्ति के लिए
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विधवा बहिनें आत्म- संयम, सदाचार, विवेक, ब्रह्मचर्य- पालन, इन्द्रिय- निग्रह एवं मन को वश में करने के लिए गायत्री- साधना को ब्रह्मशक्ति के रूप में प्रयोग कर सकती हैं। जिस दिन से यह साधना आरम्भ की जाती है, उसी दिन से मन में शान्ति, स्थिरता, सद्बुद्धि और आत्म- संयम की भावना पैदा होती है। मन पर अपना अधिकार होता है, चित्त की चंचलता नष्ट होती है, विचारों में सतोगुण बढ़ जाता है। इच्छाएँ, रूचियाँ क्रियाएँ, भावनाएँ सभी सतोगुणी, शुद्ध और और पवित्र रहने लगती हैं। ईश्वर- प्राप्ति, धर्मरक्षा, तपश्चर्या, आत्म- कल्याण और ईश्वर आराधना में मन विशेष रूप से लगता है। धीरे- धीरे उसकी साध्वी, तपस्विनी, ईश्वर- परायण एवं ब्रह्मवादिनी जैसी स्थिति हो जाती है। गायत्री के वेश में भगवान् का उसे साक्षात्कार होन लगता है और ऐसी आत्म- शांति मिलती है, जिसकी तुलना में सधवा रहने का सुख उसे नितान्त तुच्छ दिखाई पड़ता है।
प्रातःकाल वैसे जल से स्नान करें जो शरीर को सह्य हो। अति शीतल या अति उष्ण जल स्नान के लिए अनुपयुक्त है। वैसे तो सभी के लिए, पर स्त्रियों के लिए विशेष रूप से असह्य तापमान का जल स्नान के लिए हानिकारक है। स्नान के उपरान्त गायत्री साधन के लिए बैठना चाहिए। पास में जल का भरा हुआ पात्र रहे। जप के लिए तुलसी कर माला और बिछाने के लिए कुशासन ठीक है। वृषभरूढ़, श्वेत वस्त्रधारी, चतुर्भुजी, प्रत्येक हाथ में माला, कमण्डल, पुस्तक और कमल पुष्प लिए हुए प्रसन्न मुख प्रौढ़ावस्था गायत्री का ध्यान करना चाहिए। ध्यान सतोगुणी की वृद्धि के लिए, मनोनिग्रह के लिए बड़ा लाभदायक है। मन को बार- बार इस ध्यान में लगाना चाहिए और मुख से जप इस प्रकार करते जाना चाहिए कि कंठ से कुछ ध्यान हो, होठ हिलते रहें परन्तु मन्त्र को निकट बैठा हुआ मनुष्य भी भली प्रकार न सुन सके। प्रातः और सायं दोनों समय इस प्रकार का जप किया जा सकता है। एका माला तो कम से कम जप होना ही चाहिए। सुविधानुसार अधिक संख्या में भी जप करना चाहिए। तपश्चर्या प्रकरण में लिखी हुई तपश्चर्याएँ साथ में की जायें तो और भी उत्तम हैं। किस प्रकार के स्वास्थ्य और वातावरण में कौन सी तपश्चर्या ठीक रहेगी, इस सम्बन्ध में इस पुस्तक के लेखक से जवाबी पत्र द्वारा सलाह ली जा सकती है।
कुमारियों के लिए आशाप्रद भविष्य की साधना-
कुमारी कन्यायें अपने अविवाहित जीवन में सब प्रकार की सुख- शान्ति की प्राप्ति के लिए भगवती गायत्री की उपासना कर सकती हैं। पार्वतीजी ने मनचाहा वर पाने के लिए नारदजी के आदेशानुसार तप किया था और वे अन्त में सफल मनोरथ हुई थीं। सीताजी ने मानेवांछित पति पाने के लिए गौरी (पार्वती )) की उपासना की थी। नवदुर्गाओं में आस्तिक घरानों की कन्यायें भगवती की आराधना करती हैं। गायत्री उपासना उनके लिए सब प्रकार मंगलमय है।
गायत्री का चित्र, प्रतिमा अथवा मूर्ति को किसी छोटे आसन या चौकी पर स्थापित करके उसकी पूजा वैसे ही करना चाहिए, जैसे अन्य देव प्रतिमाओं की की जाती है। प्रतिमा के आगे एक छोटी तस्तरी रख लेनी चाहिए और उसी में चन्दन, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, पुष्प, जल, भोग आदि पूजा- सामग्री चढ़ानी चाहिए, आरती करनी चाहिए, मूर्ति के मस्तक पर चन्दन लगाया जा सकता है पर यदि चित्र है तो उसके चन्दन आदि नहीं लगाना चाहिए, जिससे उसमें मैलापन न आवे। नेत्र बन्द कर ध्यान करना चाहिए और मन ही मन कम से कम २४ मंत्र गायत्री के जपने चाहिये। गायत्री का चित्र या मूर्ति अपने यहां प्राप्त न हो सके तो इसके लिए अखंड ज्योति मथुरा को लिखना चाहिए। इस प्रकार की गायत्री- साधना कन्याओं को उनके अनुकूल वर, अच्छा घर यथा अचल सौभाग्य प्रदान कराने में सहायक होती है।
सधवाओं के लिए मंगलमयी साधना-
अपने पतियों को सुखी, समृद्ध, सम्पन्न, स्वस्थ, प्रसन्न, दीर्घजीवी बनाने के लिए सधवा स्त्रियों को गायत्री की शरण लेनी चाहिए। इससे पतियों के बिगड़े हुए स्वभाव ,, विचार और आचरण शुद्ध होकर उनमें ऐसी सात्विक बुद्धि आती है कि वे अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्य- धर्मों की तत्परता एवं प्रसन्नतापूर्वक पालन कर सकें। इस साधना में स्त्रियों के स्वास्थ्य तथा स्वभाव में एक ऐसा आकर्षण पैदा होता है जिससे वे सभी को परम प्रिय लगती है और उनका समुचित सत्कार होता है। अपना बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, आर्थिक तंगी, दरिद्रता, बढ़ा हुआ खर्च, आमदनी की कमी, पारिवारिक क्लेश, मनमुटाव, आपसी रागद्वेष एवं बुरे दिनों में गायत्री- उपासना करनी चाहिए। पिता के कुल एवं पतिकुल दोनों ही पक्षों के लिए यह साधना उपयोगी है, पर सधवाओं की उपासना विशेष रूप से पतिकुल के लिए ही लाभदायक होती है।
प्रातःकाल से लेकर मध्याह्नकाल तक उपासना कर लेनी चाहिए। जब तक साधन न किया जाय भोजन न करना चाहिए। हाँ, जल पिया जा सकता है। शुद्ध शरीर, शुद्ध मन और शुद्ध वस्त्र् से पूर्व की ओर मुँह करके बैठना चाहिए। तिलक छोटे से छोटा भी लगाया जा सकता है, गायत्री की मूर्ति या चित्र की स्थापना करके उसकी उसकी विधिवत् पूजा करे। पीले रंग का पूजा के सब कार्यों में प्रयोग करे। प्रतिमा का आवरण पीले वस्त्रों का रखे। पीले- पुष्प, पीले चावल, बेसनी लड्डू आदि पीले पदार्थों का भोग, केशर मिले चन्दन का तिलक, आरती के लिए पीला गौ घृत, गौ घृत न मिले तो उसमें केशर मिलाकर पीला कर लेना, चन्दन का चूरा, धूप इस प्रकार पूजा में पीले रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। नेत्र बन्द करके पीतवर्ण आकाश में पीले सिंह पर सवार, पीतवस्त्र पहने गायत्री का ध्यान करना चाहिए। पूजा के समय सब वस्त्र् पीले न हो सकें तो कम से कम एक वस्त्र् पीला अवश्य होना चाहिए। इस प्रकार पीत वस्त्र् गायत्री का ध्यान करते हुए कम से कम २४ मन्त्र गायत्री के जपने चाहिए। जब अवसर मिले तभी मन ही मन भगवती का ध्यान करती रहें। महीने की हर पूर्णमासी को व्रत रखना चाहिए। अपने नित्य आहार में एक बीज पीले रंग की अवश्य लेलें। शरीर पर कभी- कभी हल्दी का उबटन कर लेना अच्छा है। यह पीतवर्ण साधना दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए परम उत्तम है। इस साधना से घर में सुख शान्ति की वृद्धि होती है और रोग- कष्ट मिटते हैं।
सन्तान सुख देने वाली उपासना-
जिनकी सन्तान बीमार रहती है, अल्प आयु में ही मर जाती है, केवल पुत्र या केवल कन्याएँ ही होती हैं, गर्भपात हो जाते हैं, गर्भ स्थापित ही नहीं होता, बन्ध्यादोष लगा हुआ है अथवा सन्तान दीर्घसूत्री, आलसी मन्दबुद्धि, दुर्गुणी, आज्ञाउल्लंघनकारी, कटुभाषी या कुमार्गगामी है, वे वेदमाता गायत्री की शरण में जाकर इन कष्टों से छुटकारा पा सकती हैं। हमारे सामने ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिनमें स्त्रियों ने वेदमाता गायत्री के चरणों में अपने आंचल फैलाकर संतान सुख मांगा है और भगवती ने उन्हें वह प्रसन्नतापूर्वक दिया है। माता के भण्डार में किसी वस्तु की कमी नहीं है, उनकी कृपा को पाकर मनुष्य दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु प्राप्त कर सकता है। कोई वस्तु ऐसा नहीं जो माता की कृपा से प्राप्त न हो सकती हो फिर सन्तान सुख जैसी साधारण बात की उपलब्धि में कोई अड़चन नहीं हो सकती ।।
जो महिलाएँ गर्भवती हैं वे प्रातः सूर्योदय से पूर्व या रात्रि को सूर्य अस्त के पश्चात् अपने गर्भ में गायत्री के सूर्य सदृश प्रचण्ड तेज का ध्यान किया करें और मन ही मन गायत्री मन्त्र जपें तो उनका बालक तेजस्वी, बुद्धिमान, चतुर, दीर्घजीवी तथा यशस्वी होता है।
प्रातःकाल कटि प्रदेश में भीगे वस्त्र् रखकर शांत चित्त से ध्यानावस्थित होना चाहिए और अपने योनिमार्ग में होकर गर्भाशय तक पहुँचता हुआ गायत्री का प्रकाश सूर्य- किरणों जैसा ध्यान करना चाहिए। नेत्र बन्द रहें। कटि प्रदेश में तेज पुंज भरा हुआ अनुभव हो। मन ही मन जप चलता रहे। यह साधना शीघ्र गर्भ स्थापित कराने वाली है। कुन्ती ने इसी साधना के बल से गायत्री के दक्षिण भाग (सूर्य भगवान) को आकर्षित करके कुमारी अवस्था में ही कर्ण को जन्म दिया था। यह साधना कुमारी कन्याओं को नहीं करनी चाहिए।
साधना से उठकर सूर्य का जल चढ़ाना चाहिए और अर्घ्य से बचा हुआ एक चुल्लू जल स्वयं पीना चाहिए। इस प्रयोग से बन्ध्यायें गर्भ धारण करती हैं, जिनके बच्चे मर जाते हैं या गर्भपात हो जाता है, उनका यह कष्ट मिटकर संतोषदायी संतान होती है।
रोगी, कुबुद्धि, आलसी, चिड़चिड़े बालकों को गोदी में लेकर माताएँ हंसवाहिनी, गुलाबी कमल पुष्पों से लदी हुई, शंख- चक्र हाथ में लिए गायत्री का ध्यान करें और मन ही मन जप करें। माता के जप का प्रभाव गोदी में लगे बालक पर होता है और उसके शरीर तथा मस्तिष्क में आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। छोटा बच्चा हो तो इस साधना के समय माता दूध पिलाती रहे। बड़ा बच्चा हो तो उसके सिर और शरीर पर हाथ फिराता रहे। बच्चों की शुभ कामना के लिए गुरूवार का व्रत उपयोगी है। साधना से उठकर जल का अर्घ सूर्य को चढ़ावें और पीछे से बचा हुआ थोड़ा- सा जल बच्चों पर मार्जन की तरह छिड़क दें।
किसी विशेष आवश्यकता के लिए-
अपने परिवार पर परिजनों पर, प्रियजनों पर आई हुई किसी आपत्ति के निवारण के लिए अथवा किसी आवश्यक कार्य में आई हुई किसी बड़ी रूकावट एवं कठिनाई को हटाने के लिए गायत्री- साधना के समान दैवी सहायता के माध्यम कठिनाई से मिलेंगे। कोई विशेष साधना मन में हो और उसके पूर्ण होने में भारी बाधाएँ दिखाई पड़ रही हों, तो सच्चे हृदय से वेदमाता गायत्री को पुकारना चाहिए। माता जैसे अपने प्रिय बालक की पुकार सुनकर दौड़ी आती है वैसे ही गायत्री की उपासिकाएँ भी माता की अमित करूणा का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त करती हैं।
नौ दिन का लघु अनुष्ठान, चालीस दिन का पूर्ण अनुष्ठान इसी पुस्तक में अन्यत्र वर्णित है। तात्कालिक आवश्यकता के लिए उनका उपयोग करना चाहिए। स्वयं न कर सकें तो किसी गायत्री विद्या के ज्ञाता से उन्हें कराना चाहिए। तपश्चर्या प्रकरण में लिखी हुई तपश्चर्याएँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए प्रायः सफल होती हैं। एक वर्ष का गायत्री- उद्यापन सब कामनाओं को पूर्ण करने के लिए प्रायः सफल होती हैं। एक वर्ष का गायत्री- उद्यापन सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला है, उसका उल्लेख आगे किया जायेगा। जैसे पुरूष के लिए गायत्री अनुष्ठान एक सर्व प्रधान साधन है, वैसे ही महिलाओं के लिए गायत्री- उद्यापन की विशेष महिमा है। उसे आरम्भ कर देने में विशेष कठिनाई भी नहीं है और विशेष प्रतिबन्ध भी नहीं है। सरलता की दृष्टि से यह स्त्रियों के लिए विशेष उपयोगी है। माता को प्रसन्न करने के लिए उद्यापन की पुष्पमाला उसका एक परमप्रिय उपहार है।
नित्य की साधना में गायत्री चालीसा का पाठ महिलाओं के लिए बड़ा हितकर है। जनेऊ की जगह पर कण्ठी गले में धारण करके महिलाएँ द्विजत्व प्राप्त कर लेती हैं और गायत्री अधिकारिणी बन जाती हैं।