Books - शरीर की अद्भुत क्षमताएँ एवं विशेषताएँ
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Language: HINDI
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महापुरुषों की स्वास्थ्य साधना
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इस सन्दर्भ में पश्चिम एवं भारत के वे कुछ महान पुरुष उल्लेखनीय हैं, जिनकी रचनात्मक शक्ति का ह्रास उनकी ढलती उम्र के कारण कतई नहीं हुआ था और जिन्होंने अपने बुढ़ापे में बड़े महत्वपूर्ण एवं उपयोगी काम करके मानवता की अपूर्व सेवा की।ऐसे महान पुरुषों में कुछ ये हैं—महान दर्शनिक सन्त सुकरात, प्लेटो, पाइथेगोरेस, होमर आगसृस, खगोल शास्त्री गेलीलियो, प्रसिद्ध कवि हेनरी वर्ड्सवर्थ, वैज्ञानिक थामस अलमा एडीशन, लेखक निकोलस कोपरनिकस विख्यात वैज्ञानिक न्यूटन, सिसरो, अलबर्ट आइनस्टीन, टेनसिन, बेंजामिन फ्रेंकविन महात्मा टालस्टाय, महात्मा गांधी तथा जवाहर लाल नेहरू।
महात्मा सुकरात सत्तर वर्ष की उम्र में अपने अत्यन्त महत्व पूर्ण तत्वदर्शन की विशद व्याख्या करने में जुटे हुए थे। वे अपनी अस्सी वर्ष की आयु तक बराबर कठोर परिश्रम करते रहे। इक्यासी वर्ष की अवस्था में हाथ में कलम पकड़े हुए उन्होंने मृत्यु का आलिंगन किया।
सिसरो ने अपनी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व तिरेसठ वर्ष की आयु में अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘‘ट्रीटजि आन ओल्ड एज’’ की रचना की। केरो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी। कवि गोथे ने अपने जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि के रूप में अपनी महान रचना फास्ट के लिखने का कार्य तिरासी वर्ष की उम्र में मृत्यु के कुछ समय पहले ही पूरा किया था।
अलबर्ट आइलस्टीन की तरह ही जो कि अन्तिम दिन तक बराबर काम करते रहे, सेमुयल मोर्स ने टेलीग्राफ आविष्कार की अपनी प्रसिद्धि के बाद अपने को व्यस्त रखने के लिए अनेक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान—कार्यों में लगाये रखा। बर्नार्डशा अपनी अन्तिम बीमारी तक लेखक के रूप में बहुत सक्रिय बने रहे। महात्मा टालस्टाय अस्सी वर्ष की अवस्था के बाद भी इतनी चुस्ती, गहराई, और प्रभावशाली ढंग से लिखते रहे कि उसकी बराबरी आधुनिक यूरोप के किसी लेखक द्वारा नहीं हो सकती। जेम्स माररिनिमू नब्बे वर्ष की आयु के बाद भी साहित्य रचना का कार्य करते हुए अपनी बड़ी पुस्तकों की भेंट दुनिया को दें गये।
व्हिटर ह्यूगो तिरासी वर्ष की अवस्था में अपनी मृत्यु तक बराबर लिखते रहे। वृद्धावस्था उनकी अद्भुत शक्ति तथा ताजगी में कोई फर्क नहीं कर सकी।
टेनासिन ने अस्सी वर्ष की परिपक्व अवस्था में अपनी सुन्दर रचना ‘‘क्रासिंग दी वार’’ दुनिया को प्रदान की। राबर्ट ब्राउनिंक अपने जीवन के संध्याकाल में बहुत सक्रिय बने रहे। उन्होंने सतहत्तर साल की उम्र में मृत्यु के कुछ पहले ही दो सर्वसुन्दर कविताएं ‘रेभरी’ और ‘‘एपीलाग टु आसलेन्डो’’ लिखी।
एज.जी. वेल्स ने सत्तर वर्ष की अपनी वर्षगांठ के उपरान्त भी पूरे चुस्त और कर्मठ रहते हुए एक दर्जन से ऊपर पुस्तकों की रचना की।
राजनीति के क्षेत्र में बिन्सटन चर्चिल, बेंजामिन फ्रेंकलिन, डिजरैली, ग्लेडस्टोन, आदि ऐतिहासिक पुरुष अपनी वृद्धावस्था की चुनौतियों के बावजूद बहुत सक्रिय बने हुए अपने देश की अमूल्य सेवा में अनवरत रूप से लगे रहे।
अभी हाल के इतिहास में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ऐसे महान पुरुष भारतवर्ष में हो गये हैं, जो अपनी वृद्धावस्था में अन्तिम समय तक देश और पीड़ित मानवता की अटूट सेवा पूरी चुस्ती एवं शक्ति के साथ बराबर करते रहे।
ढलती उम्र की विशिष्ट उपलब्धियों एवं रचनात्मक कार्यों का श्रेय केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं है। महिलाओं का भी इसमें अपना पूरा हक है।
महारानी विक्टोरिया ने अपनी बहुत बड़ी जिम्मेदारियों को व्यासी वर्ष की अवस्था तक कुशलता के साथ निभाया। मेरीसमरभिले ने ब्यासी साल की आयु में परमाणु (मालेक्यूलर) तथा अणुवीक्षण यन्त्र सम्बन्धी (माइक्रासकोपिकल) विज्ञान पर अपनी उपयोगी एवं बहुमूल्य रचना प्रकाशित की। मिसेज लूक्रेरिया मार सत्तासी वर्ष की उम्र तक महिलाओं को ऊपर उठाने तथा विश्वशान्ति के लिये अथक रूप में निस्वार्थ सेवा कार्यों में जुटी रहीं।
भारतवर्ष में श्रीमती सरोजिनी नायडू एवं मिसेज एनीबिसेन्ट ने अपनी वृद्धावस्था तक देश तथा मानवता की अमूल्य सेवायें कीं, जो कि चिरस्मरणी रहेंगी।
इस तरह के सैकड़ों अन्य उदाहरण दुनिया के इतिहास से दिये जा सकते हैं, जिनसे यह विचार बिलकुल ही खोखला एवं तथ्य हीन साबित होता है कि उनसठ-साठ वर्ष की आयु तक में जीवन के काम समाप्त हो जाते हैं और उसके बाद का समय अपने तथा समाज के हित में कोई उपयोगी, एवं महत्वपूर्ण काम करने के लिये सक्षम नहीं होता है।
पैरिस की 80 वर्षीय महिला सान्द्रेवच्की पिछले दिनों सारवोन विश्वविद्यालय की विशिष्ठ छात्रा थीं। उन्होंने 60 वर्ष पूर्व छोड़ी हुई अपनी कक्षा की पढ़ाई फिर आरम्भ की। इस महिला के तीन पुत्र और सात नाती, नातिन और एक परनाती था। इस प्रकार वह परदादी बन गई थी तो भी उसने जर्मन और अंग्रेजी भाषा पढ़ने के लिये उत्साह प्रदर्शित किया और विश्वविद्यालय में भर्ती हो गईं। प्राचार्य को उसने भर्ती का कारण बताते हुए कहा—लम्बे जीवन के अनुभवों के आधार पर मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि आदमी की मशीन लगातार चलते रहने पर ही वह काम करने लायक रह सकती है। उपयोगी काम में लगे रहने पर ही सामान्य स्वास्थ्य को स्थिर रखा जा सकता है। अध्ययन से मेरा मस्तिष्क और शरीर दोनों ही निरोग एवं उत्साह की स्थिति में रह सकेंगे।
बड़ी उम्र हो जाने पर भी मनुष्य के अरमान यदि मरे न हों तो वह बहुत कुछ कर गुजर सकता है। डारलिंगटन आइजक ब्रुक 74 साल की उम्र में फौज में भर्ती हुआ और कई लड़ाइयां लड़ने पर भी सकुशल बचा रहा। अन्ततः वह 112 वर्ष की उम्र में मरा।
अमेरिकन मेडीकल ऐसोसिएशन के अध्यक्ष डा. फ्रेडरिक श्वार्टश ने एक शोध प्रबन्ध प्रकाशित करते हुए कहा है—मनुष्य आयु या परिश्रम के कारण बूढ़े नहीं होते वरन् अपनी अन्यमनस्क, असामाजिक एवं एकाकी मनोवृत्ति के कारण टूटते और मरते हैं। आमतौर से लोग जब तक काम धन्धे से लगे रहते हैं तब तक स्वस्थ रहते हैं किन्तु जैसे ही वे ठाली हो जाते हैं और निष्प्रयोजन दिन काटना आरम्भ करते हैं वैसे ही उन्हें सौ बीमारियां धर दबोचती हैं।
डा. फेडरिक ने एक 84 वर्ष के व्यापारी का विवरण लिखा है कि वह अपने कारोबार में सदा व्यस्त रहा और यह पता भी न चला कि उसे कोई बीमारी है पर जब वह रिटायर हुआ तो डाक्टरों ने बताया कि उसके शरीर में मुद्दतों पुरानी दसियों बीमारियां घुसी पड़ी हैं। जिनकी तरफ कभी उनका ध्यान तक नहीं गया था।
संसार के सबसे अधिक दीर्घजीवी मनुष्यों के सम्बन्ध में अनुसंधान करने वाले इतालवी विशेषज्ञ कार्लोंसरतोरी का कथन है कि इस समय संसार में सबसे अधिक आयु वाली बोलोविया निवासी एक महिला है जिसकी उम्र 203 वर्ष है। इसके बाद एक सोवियत नागरिक का दूसरा नम्बर है वह 195 वर्ष का है। तीसरे नम्बर पर ईरान का एक बूढ़ा है जिसने 190 वर्ष पार कर लिये।
उपरोक्त विशेषज्ञ ने दीर्घ जीवन के अनेक कारणों में सबसे प्रमुख सन्तुलित और निरन्तर श्रम को बताया है। उसका कहना है कि लोग अधिक मेहनत के कारण उत्पन्न थकान से उतने नहीं मरते जितने की हराम खोरी और काम चोरी के कारण अल्प आयु में ही मौत के शिकार होते हैं।
कारनेल विश्वविद्यालय के प्राणि शात्री डा. एम मैकके ने कुछ चूहों को भर पेट भोजन दिया और निश्चिंत रहने की सुविधा दी। वे तीव्र गति से वयस्क और मोटे तगड़े तो हुए पर 730 दिन से अधिक न जी सके। इसके विपरीत उन्होंने कुछ चूहे ऐसे भी पाले जिन्हें मात्रा कम किन्तु पौष्टिक तत्वों की दृष्टि से उपयुक्त भोजन दिया जाता था। वे उतने तगड़े तो नहीं हुए पर फुर्तीले भी अधिक थे, और जीवित भी प्रायः ड्यौढ़े समय तक रहे। अपने प्रयोगों के आधार पर उनका निष्कर्ष मनुष्यों के सम्बंध में यह है कि कम कैलोरी का सादा और कम भोजन किया जाय तो मनुष्य आसानी से 250 वर्ष जीवित रह सकता है। इसी प्रकार विज्ञानी जार्ज टायसन का कथन है आहार-विहार सम्बन्धी आदतों को सुधार लिया जाय तो सहज ही चिरस्थाई यौवन का आनन्द लिया जा सकता है।
महात्मा सुकरात सत्तर वर्ष की उम्र में अपने अत्यन्त महत्व पूर्ण तत्वदर्शन की विशद व्याख्या करने में जुटे हुए थे। वे अपनी अस्सी वर्ष की आयु तक बराबर कठोर परिश्रम करते रहे। इक्यासी वर्ष की अवस्था में हाथ में कलम पकड़े हुए उन्होंने मृत्यु का आलिंगन किया।
सिसरो ने अपनी मृत्यु के एक वर्ष पूर्व तिरेसठ वर्ष की आयु में अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘‘ट्रीटजि आन ओल्ड एज’’ की रचना की। केरो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी। कवि गोथे ने अपने जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि के रूप में अपनी महान रचना फास्ट के लिखने का कार्य तिरासी वर्ष की उम्र में मृत्यु के कुछ समय पहले ही पूरा किया था।
अलबर्ट आइलस्टीन की तरह ही जो कि अन्तिम दिन तक बराबर काम करते रहे, सेमुयल मोर्स ने टेलीग्राफ आविष्कार की अपनी प्रसिद्धि के बाद अपने को व्यस्त रखने के लिए अनेक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान—कार्यों में लगाये रखा। बर्नार्डशा अपनी अन्तिम बीमारी तक लेखक के रूप में बहुत सक्रिय बने रहे। महात्मा टालस्टाय अस्सी वर्ष की अवस्था के बाद भी इतनी चुस्ती, गहराई, और प्रभावशाली ढंग से लिखते रहे कि उसकी बराबरी आधुनिक यूरोप के किसी लेखक द्वारा नहीं हो सकती। जेम्स माररिनिमू नब्बे वर्ष की आयु के बाद भी साहित्य रचना का कार्य करते हुए अपनी बड़ी पुस्तकों की भेंट दुनिया को दें गये।
व्हिटर ह्यूगो तिरासी वर्ष की अवस्था में अपनी मृत्यु तक बराबर लिखते रहे। वृद्धावस्था उनकी अद्भुत शक्ति तथा ताजगी में कोई फर्क नहीं कर सकी।
टेनासिन ने अस्सी वर्ष की परिपक्व अवस्था में अपनी सुन्दर रचना ‘‘क्रासिंग दी वार’’ दुनिया को प्रदान की। राबर्ट ब्राउनिंक अपने जीवन के संध्याकाल में बहुत सक्रिय बने रहे। उन्होंने सतहत्तर साल की उम्र में मृत्यु के कुछ पहले ही दो सर्वसुन्दर कविताएं ‘रेभरी’ और ‘‘एपीलाग टु आसलेन्डो’’ लिखी।
एज.जी. वेल्स ने सत्तर वर्ष की अपनी वर्षगांठ के उपरान्त भी पूरे चुस्त और कर्मठ रहते हुए एक दर्जन से ऊपर पुस्तकों की रचना की।
राजनीति के क्षेत्र में बिन्सटन चर्चिल, बेंजामिन फ्रेंकलिन, डिजरैली, ग्लेडस्टोन, आदि ऐतिहासिक पुरुष अपनी वृद्धावस्था की चुनौतियों के बावजूद बहुत सक्रिय बने हुए अपने देश की अमूल्य सेवा में अनवरत रूप से लगे रहे।
अभी हाल के इतिहास में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ऐसे महान पुरुष भारतवर्ष में हो गये हैं, जो अपनी वृद्धावस्था में अन्तिम समय तक देश और पीड़ित मानवता की अटूट सेवा पूरी चुस्ती एवं शक्ति के साथ बराबर करते रहे।
ढलती उम्र की विशिष्ट उपलब्धियों एवं रचनात्मक कार्यों का श्रेय केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं है। महिलाओं का भी इसमें अपना पूरा हक है।
महारानी विक्टोरिया ने अपनी बहुत बड़ी जिम्मेदारियों को व्यासी वर्ष की अवस्था तक कुशलता के साथ निभाया। मेरीसमरभिले ने ब्यासी साल की आयु में परमाणु (मालेक्यूलर) तथा अणुवीक्षण यन्त्र सम्बन्धी (माइक्रासकोपिकल) विज्ञान पर अपनी उपयोगी एवं बहुमूल्य रचना प्रकाशित की। मिसेज लूक्रेरिया मार सत्तासी वर्ष की उम्र तक महिलाओं को ऊपर उठाने तथा विश्वशान्ति के लिये अथक रूप में निस्वार्थ सेवा कार्यों में जुटी रहीं।
भारतवर्ष में श्रीमती सरोजिनी नायडू एवं मिसेज एनीबिसेन्ट ने अपनी वृद्धावस्था तक देश तथा मानवता की अमूल्य सेवायें कीं, जो कि चिरस्मरणी रहेंगी।
इस तरह के सैकड़ों अन्य उदाहरण दुनिया के इतिहास से दिये जा सकते हैं, जिनसे यह विचार बिलकुल ही खोखला एवं तथ्य हीन साबित होता है कि उनसठ-साठ वर्ष की आयु तक में जीवन के काम समाप्त हो जाते हैं और उसके बाद का समय अपने तथा समाज के हित में कोई उपयोगी, एवं महत्वपूर्ण काम करने के लिये सक्षम नहीं होता है।
पैरिस की 80 वर्षीय महिला सान्द्रेवच्की पिछले दिनों सारवोन विश्वविद्यालय की विशिष्ठ छात्रा थीं। उन्होंने 60 वर्ष पूर्व छोड़ी हुई अपनी कक्षा की पढ़ाई फिर आरम्भ की। इस महिला के तीन पुत्र और सात नाती, नातिन और एक परनाती था। इस प्रकार वह परदादी बन गई थी तो भी उसने जर्मन और अंग्रेजी भाषा पढ़ने के लिये उत्साह प्रदर्शित किया और विश्वविद्यालय में भर्ती हो गईं। प्राचार्य को उसने भर्ती का कारण बताते हुए कहा—लम्बे जीवन के अनुभवों के आधार पर मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि आदमी की मशीन लगातार चलते रहने पर ही वह काम करने लायक रह सकती है। उपयोगी काम में लगे रहने पर ही सामान्य स्वास्थ्य को स्थिर रखा जा सकता है। अध्ययन से मेरा मस्तिष्क और शरीर दोनों ही निरोग एवं उत्साह की स्थिति में रह सकेंगे।
बड़ी उम्र हो जाने पर भी मनुष्य के अरमान यदि मरे न हों तो वह बहुत कुछ कर गुजर सकता है। डारलिंगटन आइजक ब्रुक 74 साल की उम्र में फौज में भर्ती हुआ और कई लड़ाइयां लड़ने पर भी सकुशल बचा रहा। अन्ततः वह 112 वर्ष की उम्र में मरा।
अमेरिकन मेडीकल ऐसोसिएशन के अध्यक्ष डा. फ्रेडरिक श्वार्टश ने एक शोध प्रबन्ध प्रकाशित करते हुए कहा है—मनुष्य आयु या परिश्रम के कारण बूढ़े नहीं होते वरन् अपनी अन्यमनस्क, असामाजिक एवं एकाकी मनोवृत्ति के कारण टूटते और मरते हैं। आमतौर से लोग जब तक काम धन्धे से लगे रहते हैं तब तक स्वस्थ रहते हैं किन्तु जैसे ही वे ठाली हो जाते हैं और निष्प्रयोजन दिन काटना आरम्भ करते हैं वैसे ही उन्हें सौ बीमारियां धर दबोचती हैं।
डा. फेडरिक ने एक 84 वर्ष के व्यापारी का विवरण लिखा है कि वह अपने कारोबार में सदा व्यस्त रहा और यह पता भी न चला कि उसे कोई बीमारी है पर जब वह रिटायर हुआ तो डाक्टरों ने बताया कि उसके शरीर में मुद्दतों पुरानी दसियों बीमारियां घुसी पड़ी हैं। जिनकी तरफ कभी उनका ध्यान तक नहीं गया था।
संसार के सबसे अधिक दीर्घजीवी मनुष्यों के सम्बन्ध में अनुसंधान करने वाले इतालवी विशेषज्ञ कार्लोंसरतोरी का कथन है कि इस समय संसार में सबसे अधिक आयु वाली बोलोविया निवासी एक महिला है जिसकी उम्र 203 वर्ष है। इसके बाद एक सोवियत नागरिक का दूसरा नम्बर है वह 195 वर्ष का है। तीसरे नम्बर पर ईरान का एक बूढ़ा है जिसने 190 वर्ष पार कर लिये।
उपरोक्त विशेषज्ञ ने दीर्घ जीवन के अनेक कारणों में सबसे प्रमुख सन्तुलित और निरन्तर श्रम को बताया है। उसका कहना है कि लोग अधिक मेहनत के कारण उत्पन्न थकान से उतने नहीं मरते जितने की हराम खोरी और काम चोरी के कारण अल्प आयु में ही मौत के शिकार होते हैं।
कारनेल विश्वविद्यालय के प्राणि शात्री डा. एम मैकके ने कुछ चूहों को भर पेट भोजन दिया और निश्चिंत रहने की सुविधा दी। वे तीव्र गति से वयस्क और मोटे तगड़े तो हुए पर 730 दिन से अधिक न जी सके। इसके विपरीत उन्होंने कुछ चूहे ऐसे भी पाले जिन्हें मात्रा कम किन्तु पौष्टिक तत्वों की दृष्टि से उपयुक्त भोजन दिया जाता था। वे उतने तगड़े तो नहीं हुए पर फुर्तीले भी अधिक थे, और जीवित भी प्रायः ड्यौढ़े समय तक रहे। अपने प्रयोगों के आधार पर उनका निष्कर्ष मनुष्यों के सम्बंध में यह है कि कम कैलोरी का सादा और कम भोजन किया जाय तो मनुष्य आसानी से 250 वर्ष जीवित रह सकता है। इसी प्रकार विज्ञानी जार्ज टायसन का कथन है आहार-विहार सम्बन्धी आदतों को सुधार लिया जाय तो सहज ही चिरस्थाई यौवन का आनन्द लिया जा सकता है।