Books - युग गायन पद्धति
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गाये जा गाये जा
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आज मनुष्य के जीवन में तनाव बढ़ रहा है तनाव का मूल कारण है मोह, आसक्ति, एवं ईर्ष्या, द्वेष आदि मनोविकार संतो
ने इस तनाव से बचने के लिए अपने मन में जमने वाले इन
मनोविकार रूपी मैल को नियमित साफ करने के लिए एक ही उपाय बताया
है निश्छल मन से भाव पूर्वक भगवान का भजन जप- तप करें।
प्रस्तुत संकीर्तन में यही तत्व ज्ञान छुपा है, ध्यान पूर्वक श्रवण करें।
स्थाई- गाये जा गाये जा, भगवान के गुण गाये जा।
सुबह शाम इस मन मंदिर में झाडू रोज लगाये जा॥
सुख- दुख, हानि- लाभ, जय- पराजय, यश- अपयश यह सब दिन और रात की तरह आते- जाते रहते हैं। हमें इससे परेशान नही होना चाहिए। बल्कि अपने कर्त्तव्य पथ अडिग होकर चलना चाहिए इससे ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं ः- दुःखेषु अनुद्विग्न मनः सुखेषु विगत स्पृहः।
वीतराग भय क्रोधः स्थित धीर्मुनि रुच्च्यते॥
अर्थात्- दुःख आने पर जिनका मन उद्विग्न- विचलित नहीं होता, सुख आने पर जो इतराता नहीं जिसके अन्दर राग, भय, क्रोध समाप्त हो गये हैं- वही स्थिति प्रज्ञ का स्तर पाता है।
अ.1- तरह के खेल है इसमें, दुनियाँ एक तमाशा है।
कहीं पेगम है कहीं खुशी है, आशा कहीं निराशा है॥
दाता सुख- दुख कुछ भी दे तू, अपना फज़र् निभाये जा।
गाये जा गाये जा........॥
प्रस्तुत पक्ति में गीतकार ने चिंता को चिता से भी ज्यादा खतरनाक माना है, क्योंकि चिता तो मरे हुए व्यक्ति को जलाकर नष्ट करती है जबकि चिंता जीवित व्यक्ति को जलाकर नष्ट कर डालती है। आस्तिक व्यक्ति को परमात्मा के उपर दृढ़ विश्वास रखते हुए अपनी -अपनी सारी चिंता उनको अर्पित कर कर्त्तव्य पथ का अनुसरण करना चाहिए।
अ.2- चिन्ता और चिता इस जग में, दोनों एक कहाती है।
एक जिन्दे को एक मुर्दे को, दोनों सहज जलाती है॥
मालिक पर विश्वास अडिग रख, चिन्ता दूर भगाये जा।
गाये जा गाये जा........॥
यह जो मानव शरीर हमें मिला है यह नश्वर है। आज नहीं तो कल हर मनुष्य की मृत्यु सुनिश्चित है। अतः इससे पहले कि यमदूत का बुलावा आ जाये मिले हुए इस सुअवसर का लाभ उठा लें। सिर्फ मैं और मेरा का चक्कर में न पड़कर, देश धर्म एवं संस्कृति के उत्थान में भी अपना समय- साधन लगाकर जीवन को धन्य बना लें।
कबीरदास जी कहा है -
कबिरा जब हम पैदा हुए,जग हँसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलें,हम हँसे जग रोये॥
अ.3- कौन हमेंशा रहा जगत में, किसका यहाँ ठिकाना है।
बाँध ले अपने बिस्तर बंदे, यह तो देश बेगाना है॥
है यह जगत मुसाफिर खाना, पथिक यही समझाये जा।
गाये जा गाये जा........॥
स्थाई- गाये जा गाये जा, भगवान के गुण गाये जा।
सुबह शाम इस मन मंदिर में झाडू रोज लगाये जा॥
सुख- दुख, हानि- लाभ, जय- पराजय, यश- अपयश यह सब दिन और रात की तरह आते- जाते रहते हैं। हमें इससे परेशान नही होना चाहिए। बल्कि अपने कर्त्तव्य पथ अडिग होकर चलना चाहिए इससे ही जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं ः- दुःखेषु अनुद्विग्न मनः सुखेषु विगत स्पृहः।
वीतराग भय क्रोधः स्थित धीर्मुनि रुच्च्यते॥
अर्थात्- दुःख आने पर जिनका मन उद्विग्न- विचलित नहीं होता, सुख आने पर जो इतराता नहीं जिसके अन्दर राग, भय, क्रोध समाप्त हो गये हैं- वही स्थिति प्रज्ञ का स्तर पाता है।
अ.1- तरह के खेल है इसमें, दुनियाँ एक तमाशा है।
कहीं पेगम है कहीं खुशी है, आशा कहीं निराशा है॥
दाता सुख- दुख कुछ भी दे तू, अपना फज़र् निभाये जा।
गाये जा गाये जा........॥
प्रस्तुत पक्ति में गीतकार ने चिंता को चिता से भी ज्यादा खतरनाक माना है, क्योंकि चिता तो मरे हुए व्यक्ति को जलाकर नष्ट करती है जबकि चिंता जीवित व्यक्ति को जलाकर नष्ट कर डालती है। आस्तिक व्यक्ति को परमात्मा के उपर दृढ़ विश्वास रखते हुए अपनी -अपनी सारी चिंता उनको अर्पित कर कर्त्तव्य पथ का अनुसरण करना चाहिए।
अ.2- चिन्ता और चिता इस जग में, दोनों एक कहाती है।
एक जिन्दे को एक मुर्दे को, दोनों सहज जलाती है॥
मालिक पर विश्वास अडिग रख, चिन्ता दूर भगाये जा।
गाये जा गाये जा........॥
यह जो मानव शरीर हमें मिला है यह नश्वर है। आज नहीं तो कल हर मनुष्य की मृत्यु सुनिश्चित है। अतः इससे पहले कि यमदूत का बुलावा आ जाये मिले हुए इस सुअवसर का लाभ उठा लें। सिर्फ मैं और मेरा का चक्कर में न पड़कर, देश धर्म एवं संस्कृति के उत्थान में भी अपना समय- साधन लगाकर जीवन को धन्य बना लें।
कबीरदास जी कहा है -
कबिरा जब हम पैदा हुए,जग हँसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलें,हम हँसे जग रोये॥
अ.3- कौन हमेंशा रहा जगत में, किसका यहाँ ठिकाना है।
बाँध ले अपने बिस्तर बंदे, यह तो देश बेगाना है॥
है यह जगत मुसाफिर खाना, पथिक यही समझाये जा।
गाये जा गाये जा........॥