Books - युग गायन पद्धति
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इतने रत्न दिये हैं कैसे
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टिप्पणी- सभी चाहते हैं कि हमारा समाज श्रेष्ठ बने- आदर्श बनें।
किन्तु यह भूल जाते हैं कि अच्छा समाज अच्छे व्यक्तियों से
मिलकर ही बनता है। अच्छे व्यक्ति बनाने की सबसे प्रभावशाली मिशाल है पारिवार।
हमारे संस्कृति में इसी परिवार को गृहस्थ आश्रम कहा गया है।
परिवार रूपी सीपियों के गर्भ में ही नर रत्न ढलते रहे हैं।
स्थाई- इतने रत्न दिये हैं कैसे, जिससे देश महान है।
भारत की परिवार व्यवस्था, ही रत्नों की खान है॥
भारत की आदर्श परिवार व्यवस्था इतनी प्रभावशाली रीत है कि हर व्यक्ति देवताओं के समान होता है। इसे देवताओं का देश, ऋषियों, संतो, शहीदों का देश कहा जा रहा है। पौराणिक काल से लेकर वर्तमान तक का इतिहास उनकी गाथाओं से भरा पड़ा है।
अ. 1- इसी खान के रत्नों के, इतिहास चाव से पढ़े गये।
अध्यायों की अँगूठियों में, यही नगीने जड़े गये॥
सजे हुए हैं यही रत्न तो, जन मंगल के थाल में।
दमक रहे हैं ये हीरे ही, मानवता के भाल में॥
इसी खान के रत्नों की तो, सदा निराली शान है॥
सौतेली माँ के दबाव में पिता के पक्षपात से पीड़ित न जाने कितने बच्चे कुण्ठित होते या बगावत करते देखे जाते हैं। किन्तु यदि उनकी तड़प को सही दिशा दी जा सके तो धु्रव- प्रहलाद जैसे रत्न निकलते है। बालकों की प्रवृत्तियों को सही दिशा देना ही उन्हें खरादना है। धु्रव को इसी प्रकार खरादा गया।
अ. 2- इसी खान में धु्रव निकले थे, माँ ने उन्हें सँवारा था।
इस हीरे को नारद जी ने, थोड़ा और निखारा था॥
तप की चमक लिए जा बैठा, परमपिता की गोद में।
कितनों का बचपन कट जाता, है आमोद- प्रमोद में॥
नभ में धु्रव परिवार कीर्ति का, शाश्वत अमर निशान है॥
परिवार में विसंगति भी आना स्वाभाविक है, किन्तु आदर्श प्रेमी, निखरे हुए व्यक्तित्व उन विसंगतियों को भी सौभाग्य का द्वार बना लेते हैं। भगवान राम के परिवार में मिलता है।सुमित्रा माता अपने पुत्र के मोह में नहीं पड़ी। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-
‘‘जो पै सीय राम वन जाही, अवध तुम्हार काज कछु नाही।’’
अन्य सौतेले भाई लड़ते- झगड़ते देखे जाते हैं..पर राम के लिए लक्ष्मण वन जाते है, हर सेवा में आगे रहते हैं। भरत राम के लिए अयोध्या रहकर भी तप करते हैं।
अ. 3- जाना था वनवास राम को, लक्ष्मण सीता साथ गये।
कीर्तिमान स्थापित सेवा, स्नेह त्याग के किये गये॥
सौतेली माँ का मुख उज्ज्वल किया सुमित्रा माता ने।
था सौहार्द्र सगे भाई से, ज्यादा भ्राता- भ्राता में॥
वह संस्कारित परिवारों का, ही अनुपम अनुदान है॥
आज हम पश्चिम की चकाचौध में अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। तमाम लोग पारिवारिक स्नेह आत्मीयता के स्थान पर व्यक्तिगत सुख और अहंकार को पोषण दे रहे है। यह भ्रम छोड़ें और अपने पारिवारिक आदर्शों की साधना करें प्यार और सहकार से भरा परिवार धरती का स्वर्ग होता है। स्वर्ग का एक- एक कण हम भी तैयार करें।
अ. 4- ऐसे ही परिवार चाहिए, फिर से नव निर्माण को।
जहाँ देव परिवार मिल सकें, धरती के इन्सान को॥
राम, भरत का स्नेह चाहिए, घर- घर कलह मिटाने को।
दशरथ जैसा त्याग चाहिए, राष्ट्र धर्म अपनाने को॥
हो परिवार जहाँ नन्दन वन, वह भू स्वर्ग समान है॥
स्थाई- इतने रत्न दिये हैं कैसे, जिससे देश महान है।
भारत की परिवार व्यवस्था, ही रत्नों की खान है॥
भारत की आदर्श परिवार व्यवस्था इतनी प्रभावशाली रीत है कि हर व्यक्ति देवताओं के समान होता है। इसे देवताओं का देश, ऋषियों, संतो, शहीदों का देश कहा जा रहा है। पौराणिक काल से लेकर वर्तमान तक का इतिहास उनकी गाथाओं से भरा पड़ा है।
अ. 1- इसी खान के रत्नों के, इतिहास चाव से पढ़े गये।
अध्यायों की अँगूठियों में, यही नगीने जड़े गये॥
सजे हुए हैं यही रत्न तो, जन मंगल के थाल में।
दमक रहे हैं ये हीरे ही, मानवता के भाल में॥
इसी खान के रत्नों की तो, सदा निराली शान है॥
सौतेली माँ के दबाव में पिता के पक्षपात से पीड़ित न जाने कितने बच्चे कुण्ठित होते या बगावत करते देखे जाते हैं। किन्तु यदि उनकी तड़प को सही दिशा दी जा सके तो धु्रव- प्रहलाद जैसे रत्न निकलते है। बालकों की प्रवृत्तियों को सही दिशा देना ही उन्हें खरादना है। धु्रव को इसी प्रकार खरादा गया।
अ. 2- इसी खान में धु्रव निकले थे, माँ ने उन्हें सँवारा था।
इस हीरे को नारद जी ने, थोड़ा और निखारा था॥
तप की चमक लिए जा बैठा, परमपिता की गोद में।
कितनों का बचपन कट जाता, है आमोद- प्रमोद में॥
नभ में धु्रव परिवार कीर्ति का, शाश्वत अमर निशान है॥
परिवार में विसंगति भी आना स्वाभाविक है, किन्तु आदर्श प्रेमी, निखरे हुए व्यक्तित्व उन विसंगतियों को भी सौभाग्य का द्वार बना लेते हैं। भगवान राम के परिवार में मिलता है।सुमित्रा माता अपने पुत्र के मोह में नहीं पड़ी। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-
‘‘जो पै सीय राम वन जाही, अवध तुम्हार काज कछु नाही।’’
अन्य सौतेले भाई लड़ते- झगड़ते देखे जाते हैं..पर राम के लिए लक्ष्मण वन जाते है, हर सेवा में आगे रहते हैं। भरत राम के लिए अयोध्या रहकर भी तप करते हैं।
अ. 3- जाना था वनवास राम को, लक्ष्मण सीता साथ गये।
कीर्तिमान स्थापित सेवा, स्नेह त्याग के किये गये॥
सौतेली माँ का मुख उज्ज्वल किया सुमित्रा माता ने।
था सौहार्द्र सगे भाई से, ज्यादा भ्राता- भ्राता में॥
वह संस्कारित परिवारों का, ही अनुपम अनुदान है॥
आज हम पश्चिम की चकाचौध में अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। तमाम लोग पारिवारिक स्नेह आत्मीयता के स्थान पर व्यक्तिगत सुख और अहंकार को पोषण दे रहे है। यह भ्रम छोड़ें और अपने पारिवारिक आदर्शों की साधना करें प्यार और सहकार से भरा परिवार धरती का स्वर्ग होता है। स्वर्ग का एक- एक कण हम भी तैयार करें।
अ. 4- ऐसे ही परिवार चाहिए, फिर से नव निर्माण को।
जहाँ देव परिवार मिल सकें, धरती के इन्सान को॥
राम, भरत का स्नेह चाहिए, घर- घर कलह मिटाने को।
दशरथ जैसा त्याग चाहिए, राष्ट्र धर्म अपनाने को॥
हो परिवार जहाँ नन्दन वन, वह भू स्वर्ग समान है॥