अपने आत्मीय के श्रम, श्रद्धा एवं समर्पण से अभिभूत हुए श्रद्धेय डॉक्टर साहब-जीजी
श्रद्धा का अद्भुत रूप देखा
‘या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ...’ इस प्रार्थना को हम जिंदगी भर करते रहे, आज उस शक्ति को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। बच्चों के छोटे-छोटे पाँव, जिन्हें कमर झुकाने में भी परेशानी है, जो अपने घर में एक ग्लास पानी भी स्वयं नहीं पीते, ऐसे भाई-बहिन, बच्चों ने न दिन देखा, न रात देखी, अपनी गुरूसत्ता के आह्वान पर राष्ट्र मंगल के लिए अपना सब कुछ लगा दिया। भोजनालय में अथक परिश्रम किया, गोबर से यज्ञशाला लीपी, हाथों में छाले पड़े-कंकड़ लगे, लेकिन कुछ भी उनकी निष्ठा को डिगा नहीं सके।
सिंहनी का दूध लाने जैसा पुरूषार्थ
शिवाजी के गुरू ने उनकी परीक्षा ली, कहा-मेरी आँख में दर्द हो रहा है। इसे ठीक करने के लिए सिंहनी का दूध ला दो। वे सिंहनी के समक्ष गए, सिंहनी बच्चों को दूध पिला रही थी। प्रार्थना की-मैं अपने लिए नहीं, अपने गुरू की पीड़ा को दूर करने के लिए आपका दूध चाहता हूँ। वह कल्पना का शेर ही था, माँ भवानी प्रकट हुइर्ं और शिवाजी को आशीर्वाद स्वरूप अजेय बनाने वाली तलवार दी। इस मुम्बई शहर में अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करना सिंहनी का दूध निकालने से कम नहीं है। माँ से प्रार्थना करती हूँ कि इस पुण्य भूमि की माताओं को अपने बच्चों को संस्कारित करने वाले, राष्ट्र के उत्थान में अपना जीवन लगाने वाले बच्चों को जन्म देने की सामर्थ्य प्रदान करे।
आवश्यकता यज्ञ पिता, गायत्री माता की
आज ज्यादातर घरों में नई और पुरानी पीढ़ी के बीच सामंजस्य स्थापित करने की समस्याएँ हैं। यह समस्याएँ इसलिए हैं कि हम अपनी संस्कृति के माता-पिता गायत्री और यज्ञ से विमुख हो गए हैं। जब तक माता-पिता साथ रहे, समाज में सुख-शान्ति रही। गायत्री का अर्थ है करूणा, विवेक, ममता, माधुर्य। यज्ञ का अर्थ है सत्कर्म। यह बात गुरूदेव ने समझाई और सबको यज्ञ का अधिकार दिया। यज्ञ के बाद हम ‘इदं न मम’ कहते हैं, जिसका अर्थ है यह मेरा नहीं, समाज का है। यह भाव हमारे व्यक्तित्व में उतर जाना चाहिए।
गायत्री महामंत्र की सामर्थ्य
गायत्री मंत्र में इतनी सामर्थ्य है कि दुनिया के आधे व्यक्ति भी एक साथ एक समय पर 3 घण्टे तक गायत्री मंत्र का उच्चारण करें तो उससे 60 हजार खरब मेगावाट जितनी ऊर्जा उत्पन्न होगी। हम गायत्री मंत्र की ताकत को पहचान सके होते तो धन्य हो जाते। अश्वमेध यज्ञ का आयोजन हमारे मन के कुविचार और दुर्भावनाओं को सद्विचार और सद्भाव में बदलने के लिए आयोजित किया जा रहा है।