डॉ. चिन्मय पंड्या जी का हाटपिपल्या प्रवास: गायत्री शक्तिपीठ में पूजन, साहित्य स्टॉल उद्घाटन और "सहयोग स्थली" का अनावरण
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अपने पांच दिवसीय प्रवास के दूसरे दिन आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी देवास जिले के गायत्री शक्तिपीठ, हाटपिपल्या पहुंचे। वहाँ उन्होंने मां गायत्री का पूजन और प्रज्ञेश्वर महादेव का अभिषेक किया।
हाटपिपल्या शक्तिपीठ प्रांगण में डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने अपने करकमलों से साहित्य स्टॉल का उद्घाटन किया। इसके पश्चात प्रातःकालीन बेला में प्राण-प्रतिष्ठित सप्त ऋषियों, श्री राम दरबार और श्री राधा-कृष्ण मंदिर में पुष्प अर्पित कर सभी के लोककल्याण की प्रार्थना की।
शक्तिपीठ प्रांगण में उपस्थित कार्यकर्ताओं और परिजनों को संबोधित करते हुए आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने कहा, "भावनाओं की पवित्रता ही अध्यात्म की साधनाओं का सार है। यही हमारे जीवन और कार्यप्रणाली का आधार होना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "आज का दिन हर उस व्यक्ति के लिए विशेष है, जो महाकाल और भगवान की पुकार सुन सकते हैं। यह दिन उनके लिए एक अलौकिक और अविरल सौभाग्य का अवसर लेकर आया है।"
गायत्री परिवार की आधारशिला श्रद्धा और भावना पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "भावना और श्रद्धा यह तय करती हैं कि किसी कर्म का परिणाम क्या होगा। चमत्कार व्यक्ति की श्रद्धा और भावना से ही संभव है। श्रद्धा और भावना की भाषा ही ईश्वर से संवाद की भाषा है। इसी के माध्यम से ईश्वर का सतत सान्निध्य मिलता है। भगवान तो हमारे साथ हैं, हमें बस श्रद्धा और भावना की पुकार लगानी है।"
उन्होंने आगे कहा, "आज का दिन हमें यह संदेश देता है कि आगामी वर्ष, जो पूज्य गुरुदेव और वंदनीय माताजी की तप साधना की शताब्दी का वर्ष है, हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। गुरुदेव और माताजी के जीवन से हमें जो प्रेम, तप, सद्भाव और सहकार मिला है, उसे जन-जन तक पहुंचाने का यह उपयुक्त समय है।"
तत्पश्चात् उन्होंने हाटपिपल्या के महाराणा प्रताप चौक ’संस्था श्री सनातन हाटपिपल्या’ पर "सहयोग स्थली" का अनावरण किया जहां पर अनुपयोगी सामान के दान को इकट्ठा कर जरूरतमंदों को पहुंचाया जाएगा।