श्रद्धा अर्थात् उत्कृष्टता से असीम प्यार, अटूट अपनत्व । सजलता-तरलता इसकी विशेषता है । पानी पर कितने भी प्रहार किए जाएँ, वह कटता-टूटता नहीं है । पानी से टकराने वाला उसे तोड़ नहीं पाता, उसी में समा जाता है । श्रद्धा की यही विशेषता उसे अमोघ प्रभाव वाली बना देती है । प्रज्ञा अर्थात् जानने, समझने, अनुभव करने की उत्कृष्ट क्षमता, दूरदर्शी विवेकशीलता । प्रखरता इसकी विशेषता है । प्रखरता की गति अबाध होती है । प्रखरता युक्त प्रज्ञा हजार अवरोधों-भ्रमों को चीरते हुए यथार्थ तक पहुँचने एवं उसके उत्कृष्ट उपयोग में सफल होती है ।
सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा तीर्थ के सनातन-मूल घटक हैं । जहाँ ऋषियों-अवतारियों के प्रभाव से यह दोनों धाराएँ सघन-सबल हो जाती हैं, वहीं तीर्थ विकसित-प्रतिष्ठित हो जाते हैं । युगतीर्थ-गायत्री तीर्थ के भी यही मूल घटक हैं ।
युगतीर्थ के संस्थापक वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगऋषि, पण्डित आचार्य श्रीराम शर्मा एवं स्नेह सलिला वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा की वास्तविकस पहचान उनके शरीर नहीं, उनके द्वारा प्रवाहित प्रखर प्रज्ञाएवं सजल श्रद्धा की सशक्त धाराएँ रही हैं । इसीलिए उनके स्मृति चिह्नों के रूप में उनकी स्थूल काया की मूर्तियाँ नहीं, उनके सूक्ष्म तात्त्विक प्रतीकों के रूप में उन स्मृति चिह्नों को स्थापित किया गया है । वे जीवन भर दो शरीर एक प्राण रहे, इसीलिए उनके शरीर का अन्तिम संस्कार एक ही स्थान पर, उनके तात्त्विक प्रतीकों के निकट करके उसी स्थल को उनके संयुक्त समाधि स्थल का रूप दे दिया गया है ।
तीर्थ चेतना के इन प्रतीकों पर अपनी श्रद्धा समर्पित करके सत्प्रयोजनों के लिए उनसे शक्ति, अनुदान, आश्शीर्वाद कोई भी श्रद्धालु प्राप्त कर सकते हैं ।