विचार क्रांति
शक्ति संचय के पथ पर (भाग 1)
अनेक प्रकार की कठिनाइयों विपत्तियों तथा तथा संकटों का प्रधान कारण निर्बलता है। निर्बल के ऊपर रोग, नुकसान, अपमान आक्रमण आदि के पहाड़ आये दिन टूटते रहते हैं। निर्बलता में एक ऐसा आकर्षण है जिससे विपत्तियाँ अपने आप आकर्षित हो जाती हैं। जिसका कुछ नहीं बिगाड़ा है वह भी निर्बल का शत्रु बन जाता है। बकरी की निर्बलता उसके प्राणों को घातक सिद्ध होती है। जंगली जानवर, मनुष्य यहाँ तक कि देवी देवता भी उसी के रक्त के प्यासे रहते हैं। बदला लेने की शक्ति रखने वाले और आसानी से हाथ न आने वाले सिंह व्याघ्र, भेड़िया आदि का माँस लेने की किसी की इच्छा नहीं होती। देवी देवता भी इनकी ओर आँख उठाकर नहीं देखते।
हिन्दू जाति बहुत समय से बकरी बनी हुई है। उस पर भीतर और बाहर से लगातार आक्रमण होते रहते है...
शक्ति संचय के पथ पर (भाग 2)
आज साम्प्रदायिक दंगों का वातावरण गरम है। जगह-जगह से साम्प्रदायिक दंगों के दिल दहला देने वाले समाचार प्राप्त होते रहते हैं। जिनसे प्रतीत होता है कि थोड़े से गुंडे उबल पड़ते हैं और हजारों नर नारियों को गाजर मूली की तरह काट कर रख देते हैं। अपार धन जन की हानि कर देना उनके बायें हाथ का खेल है। हम अनाथ बालकों की तरह रोते चिल्लाते और इधर-उधर भागते हैं अखबारों में लेख छापते हैं प्रस्ताव पास करते हैं, और अन्त में माथा पीट कर चुप हो बैठते हैं। गुण्डों का हौसला बढ़ाते हैं, वे एक के बाद दूसरा आक्रमण अधिक जोर से करते हैं और अधिक उत्पात मचाते हैं। हर उत्पात के साथ उनकी पशुवृत्ति तृप्त होती है और लूट का माल हाथ लगता है। इस घटनाक्रम की बार-बार पुनरावृत्ति होती रहती है।
इस दुखद स्थिति प...
शक्ति संचय के पथ पर (अन्तिम भाग)
क्षमा वीरों का धर्म है, अशक्तों का नहीं। जो पूर्ण स्वस्थ है उसके लिए खीर, पुआ मोहनभोग, घी, रबड़ी का सेवन लाभदायक है पर जो रोग से चारपाई पे रहा है, उठकर खड़े होने की शक्ति जिसमें नहीं, उसके लिए वे पौष्टिक पदार्थ लाभदायक नहीं है, उसके लिए तो वे अहित कर परिणाम ही उपस्थित करेंगे। वे निर्बल जो अपने न्यायोचित अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते, अपनी आत्म रक्षा में सफल नहीं होते, यदि शान्ति और क्षमा की रट लगाते हैं तो समझना चाहिए कि अपनी निर्बलता और कायरता छिपाने का एक थोथा बहाना ढूँढ़ते हैं। मुकाबला करने को धर्म ग्रन्थों और राजकीय कानूनों का समर्थन प्राप्त है।
हमें अपनी दुर्गति को रोकना है तो बकरी की स्थिति से ऊँचा उठना होगा। किसी पर आक्रमण करने का किसी को सताने का उद्देश्य कदापि...
कृपा कर क्रोध मत कीजिए (भाग 1)
क्रोध शक्ति की कमी का परिचायक है। मानसिक शक्ति की कमी हो जाने पर क्रोध का वेग विवेक से रुकता नहीं। जब क्रोध आता है तब विवेक दूर भाग जाता है जैसे कि उन्मत्त हाथी जब जंजीर तोड़ लेता है, तो महावत दूर भाग जाता है। क्रोध के द्वारा मानसिक शक्ति का ह्रास भी होता है। कारण और कार्य एक ही वस्तु के दो पहलू हैं। मानसिक शक्ति की कमी से क्रोध आता है और क्रोध से मानसिक शक्ति की कमी भी होती है। साधारणतया क्रोध दूसरे पर प्रकाशित होता है। उसका लक्ष्य दूसरों की हानि करना होता है।
जब वह अपने लक्ष्य में सफल होता है, तो मानसिक शक्ति के ह्रास का शीघ्र पता नहीं चलता किन्तु जिस समय वह अपने लक्ष्य में सफल नहीं होता, वह अपने प्रति ही झीखने लगता है। इस स्थिति में मनुष्य अपने आप को कोसने लगता...
कृपा कर क्रोध मत कीजिए (भाग 2)
क्रोध का स्वभाव है कि यदि वह क्षणभर के लिए रोक दिया जाय, तो वह सब समय के लिए रुक जाता है। विलियम जेम्स का कथन है कि क्रोध आने पर दस तक गिनती कहो तो क्रोध विलीन हो जाता है। क्रोध की अवस्था में हम कभी−कभी बालक जैसा व्यवहार करने लगते हैं−पीछे ऐसे व्यवहार पर ही आत्म ग्लानि होने लगती है, अथवा उन पर हँसी आती है। ऐसा एक बार होने पर कई बार ऐसा ही हम करते रहते हैं। यही जीवन का भारी रहस्य है। बड़े−बड़े विद्वान् जब क्रुद्ध होते हैं, तब अपना सिर आप ही फोड़ने लगते हैं। अपना ही नुकसान करने से उन्हें सन्तोष होता है। इस प्रकार बराबर क्रोध प्रदर्शन करने से उनका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, तो कितने ही लोग समय से पूर्व ही काल−कवलित हो जाते हैं। इन सब बातों को जान कर भी क्रोध रोके नहीं...
कृपा कर क्रोध मत कीजिए (अन्तिम भाग)
समाज में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं—एक वे जो क्षण भर भी अकेले नहीं रह सकते। यदि उन्हें अकेला रहना पड़ जाय तो वह पागल हो जावें, और दूसरे वे जो समाज में आने से डरते हैं। जब तक समाज में रहते हैं सतर्क रहते हैं, सदा उससे भागने की चेष्टा में रहते हैं और जब वे उससे अलग हो जाते हैं तो अपने−आपको सुखी पाते हैं। पहले प्रकार के व्यक्ति बहिर्मुखी कहलाते हैं और दूसरे प्रकार के अन्तर्मुखी। पहले प्रकार के लोग प्रसन्न चित्त दिखाई देते हैं। दूसरे प्रकार के लोग दुखी दिखाई देते हैं पर होते हैं शान्त। पहले प्रकार के लोगों का क्रोध अति प्रबल होता है। वे सभी से अपने प्रसन्न रखे जाने की आशा करते हैं। पर जब यह आशा पूरी नहीं होती तो उनका क्रोध अपरिमित हो जाता है। जब इस क्रोध का प्रदर्शन किसी दूसरे ...
यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 1)
सुप्रवृत्तियों के विकास से अच्छी आदतों का निर्माण होता है, मनुष्य अपने उत्तम गुणों का विकास करता है और चरित्र में, अंधकार में प्रविष्ट दुर्गुणों का उन्मूलन होता है। अतः हमें प्रारंभ से ही यह जान लेना चाहिए कि हम किन किन गुणों तथा आदतों का विकास करें।
नैतिकता:—
उत्तम चरित्र का प्रारंभ नैतिकता से होता है। नैतिकता अर्थात् श्रेष्ठतम आध्यात्मिक जीवन हमारा लक्ष्य होना चाहिए। नैतिकता हमें सद् असद्, उचित अनुचित, सत्य असत्य में अन्तर करना सिखाती है। नैतिकता सद्गुणी जीवक का मूलाधार है। यह हमें असद् आचरण, गलतियों अनीति और दुर्गुणों से बचाती है। नैतिकता का आदि स्रोत परमेश्वर है। अतः यह हमें ईश्वरीय जीवन व्यतीत करने की शिक्षा प्रदान करती है। यह वह जीवन शास्त्र है ...
यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 2)
सुप्रवृत्तियों के विकास से अच्छी आदतों का निर्माण होता है, मनुष्य अपने उत्तम गुणों का विकास करता है और चरित्र में, अंधकार में प्रविष्ट दुर्गुणों का उन्मूलन होता है। अतः हमें प्रारंभ से ही यह जान लेना चाहिए कि हम किन किन गुणों तथा आदतों का विकास करें।
2. संयम :-
नैतिकता जीवन की आधार शिला संयम पर निर्भर है। संयम का तात्पर्य है अपने ऊपर अनुशासन रखना, विवेक के अनुसार शरीर को चलाना इत्यादि। संयमी व्यक्ति अपने मन, वचन, तथा शरीर पर पूर्ण अधिकार रखता है। वह उसे उचित ढंग से चलाता है और मिथ्या प्रलोभनों के वश में नहीं आता। जैसे ही कोई प्रलोभन मन मोहक रूप धारण कर उसके सम्मुख आता है, वैसे ही आत्म−अनुशासन उसकी रक्षा को आ उपस्थित होता है।
संयम हम...
यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 3)
परिस्थितियों के अनुकूल ढल जाना :-
अपने आपको नई नई विषम तथा विरोधी परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेना, इच्छाओं, आवश्यकताओं और रहन सहन को नवीन परिस्थितियों के अनुसार घटा बढ़ा लेना एक बड़ा गुण है। मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरे व्यक्तियों, चाहे वे कैसे ही गुण स्वभाव के क्यों न हों, के अनुसार अपने को ढालना सीखे। नई परिस्थितियाँ चाहे जिस रूप में आयें, उसके वश में आ जायं। अच्छी और बुरी आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार अपने को घटा बढ़ा लिया करें।
अधिकाँश व्यक्ति दूसरे के अनुसार अपने को ढाल नहीं पाते, इसलिए वे दूसरों का हृदय जीत नहीं पाते, न झुक सकने के कारण वे सफल नहीं हो पाते। पत्नी पति के अनुसार, पति पत्नी के अनुसार, विक्रेता ग्राहक के अनुसार, मातहत अफसर के अनुसार,...
यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 4)
विरोध तथा प्रतिकूलता में धैर्य:-
विपत्ति, दुख या वेदनामय जीवन एक बड़ा शिक्षक है। यह वह स्थिति है जिसमें चारों ओर से कष्ट आते हैं, आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है, मन दुखी रहता है और कहीं से कोई सहारा नहीं दीखता। विपत्ति ऐसी घटनाओं का क्रम है, जो सफलता का शत्रु है और आनन्द को नष्ट करने वाला है। यह दुःख की मनः स्थिति है।
विपत्ति दूसरे रूप में एक वरदान सिद्ध होती है। जो व्यक्ति धैर्य बनाये रखता है, वह अन्ततः विजयी होता है। विपत्ति से हमारी इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है और सहिष्णुता प्राप्त होती है। इससे हमारा मन ईश्वर की ओर प्रवृत्त होता है। अन्ततः इससे वैराग्य की प्राप्ति होती है। सत्य की पहली सीढ़ी है। विपत्ति वह गुरु है जो मनुष्य को उद्योगी और परिश्रमशील...