CATALIST OF CHANGE
प्राणवान् प्रतिभाओं की खोज
समय की माँग के अनुरूप, दो दबाव (१) इन दिनों निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं। एक व्यापक अवांछनीयताओं से जूझना और उन्हें परास्त करना। दूसरा है- नवयुग की सृजन व्यवस्था को कार्यान्वित करने की समर्थता। निजी और छोटे क्षेत्र में भी वह दोनों कार्य अति कठिन पड़ते हैं; फिर जहाँ देश, समाज या विश्व का प्रश्न है, तो कठिनाई का अनुपात असाधारण ही होगा।
प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए तदनुरूप योग्यता एवं कर्म निष्ठा उत्पन्न करनी पड़ती है। साधन जुटाने पड़ते हैं। इनके बिना सामान्य स्थिति में रहते हुए किसी प्रकार दिन काटते ही बन पड़ता है। इसी प्रकार कठिनाइयों से जूझने, अड़चनों को निरस्त करने और मार्ग रोककर बैठे हुए अवरोधों को किसी प्रकार हटाने के लिए समुचित साहस, शौर्य और सूझ-बूझ का परिचय देना पड़ता है। अनेक समस्...
What is Spirituality ?
Spirituality deals with enlightening one's thoughts, emotions and intrinsic tendencies. In simple terms it is the most evolved and comprehensive science of psychological, sociological and moral development, and ultimate progress. It brightens the intellect together with inculcation of sensitivity towards fellow beings and towards the grace of Nature. There is no place for superstitions, fantasy or escapism in a truly spiritual life. Spiritual progress in no way blocks scientific and materialistic progress. In fact, it gives altruistic touch and prudent directions to both so that progress will not be focused only towards increase in luxurious comforts and worldly profits;
it will not enrich ...
सेवा के लिए साधन भी आवश्यक
महाराज बिंदुजात ने निश्चय किया कि राज्य में जो निराश्रय साधु हैं, उन्हें राज्यवृत्ति प्रदान की जाए। यह कार्य नीति-निपुण मंत्री गृत्समद् को सौंपा गया। गृत्समद् कई दिन तक धन की थैली लेकर घूमे, किन्तु एक भी स्वर्ण मुद्रा का वितरण न हो सका। हारकर उन्होंने अब तक का सारा ‘कोष’ सम्राट बिंदुजात को लोटा दिया।
महाराज ने पूछा-महामंत्री! धनराशि का वितरण नहीं हो पाया क्या? क्या इतने बड़े राज्य में एक भी साधु-संत ऐसा नहीं हो पाया। महामंत्री बोले, आर्य! कठिनाई यह है कि कोष उन साधु-संतों के लिए नियुक्त है, जो लोकमंगल का कार्य करते हों, ऐसे संत राज्य में कम नहीं, पर वे धन स्वीकार नहीं करते? उनकी सामान्य-सी आवश्यकताएँ हैं, उसके लिए सहयोग नहीं लेना चाहते। इस शर्त पर वे धन को स्वीकार कर सकते हैं कि लोकमंगल के क...
युग परिवर्तन क्यों ? किसलिए ?
प्रज्ञावतार का लीला- संदोह एवं परिवर्तन की वेलाइन दिनों प्रगति और चमक- दमक का माहौल है, पर उसकी पन्नी उघाड़ते हो सड़न भरा विषघट प्रकट होता है। विज्ञान, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र की प्रगति सभी के सामने अपनी चकाचौंध प्रस्तुत करती है। आशा की गई थी कि इस उपलब्धि के आधार पर मनुष्य को अधिक, सुखी ,समुन्नत प्रगतिशील, सुसंपन्न सभ्य, सुसंस्कृत बनने का अवसर मिलेगा ।। हुआ ठीक उलटा। मनुष्य के दृष्टिकोण चरित्र और व्यवहार में निकृष्टता घुस पड़ने से संकीर्ण स्वार्थपरता और मत्स्य- न्याय जैसी अतिक्रमाणता यह प्रवाह चल पड़ा। मानवी गरिमा के अनुरूप उत्कृष्ट आदर्शवादिता की उपेक्षा अवमानना और विलास, संचय, पक्षपात, तथा अहंकार का दौर चल पड़ा लोभ, मोह और अहंकार को कभी शत्रु मानने, बचने, छोड़ने की शालीनता अपनाई जाती थी ...
सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या?
देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस सांसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है-पहला है श्रम और दूसरा ज्ञान । श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते हैं । दूसरी चीज है, ज्ञान । ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है । सांसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है । श्रम हमारे पास हो और ज्ञान न हो तो हमारी भौतिक प्रगति, भौतिक संपदा नगण्य होती है, परंतु जब ज्ञान मनुष्य के पास होता है, तो वह इंजीनियर होता है, डॉक्टर होता है, कलाकार होता है । ज्ञान के द्वारा ही हमारा विकास होता है तथा हमारे विचार में परिवर्तन होता है । अत: हमको सांसारिक प्रगति के लिए श्रम को विकसित करना चाहिए । आप ...