विकसित भारत के निर्माण में शिक्षा के योगदान पर मंथन
दीप प्रज्वलन के साथ सत्र का शुभारंभ करते माननीय मंत्री जी एवं अन्य गणमान्य्
ज्ञानकुंभ हरिद्वार
भारत की आधुनिक सोच के साथ जुड़ें वर्तमान युग के युवा। - श्री धनसिंह रावत, उच्च शिक्षा मंत्री, उत्तराखण्ड सरकार
श्रेष्ठ संस्कार और उत्कृष्ट चिंतन भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं । - डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी, प्रति कुलपति, देसंविवि
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, देवभूमि उत्तराखण्ड
विश्वविद्यालय, देहरादून एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 1 एवं 2 अक्टूबर 2024 की तिथियों में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में दो दिवसीय ज्ञानकुंभ हरिद्वार का आयोजन हुआ। इसमें देश को आत्मनिर्भर, आधुनिक, समृद्ध और विकसित भारत के निर्माण में शिक्षा की भूमिका तथा इस संदर्भ में विविध कार्ययोजनाओं पर विचार मंथन हुआ। प्रथम दिन उच्च देसंविवि कुलपति श्री शरद पारधी, प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या एवं अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर इस ज्ञानकुंभ का उद्घाटन किया। मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री धनसिंह रावत ने इस अवसर पर युवाओं से भारत की आधुनिक सोच के साथ जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की सोच के साथ पर्यावरण संरक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी, योग, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि क्षेत्रों में बहुत विकास किया जा सकता है। माननीय मंत्री जी ने देवभूमि उत्तराखण्ड को विकसित राज्य बनाने के लिए सभी से सुझाव भी माँगे। देसंविवि के प्रति कुलपति माननीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हम समय की गंभीरता को समझें, अवसर को पहचानें, शिक्षा मंत्री श्री धनसिंह रावत, देसंविवि कुलपति श्री शरद पारधी, प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या एवं अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर इस ज्ञानकुंभ का उद्घाटन किया। मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री धनसिंह रावत ने इस अवसर पर युवाओं से भारत की आधुनिक सोच के साथ जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की सोच के साथ पर्यावरण संरक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी, योग, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि क्षेत्रों में बहुत विकास किया जा सकता है। माननीय मंत्री जी ने देवभूमि उत्तराखण्ड को विकसित राज्य बनाने के लिए सभी से सुझाव भी माँगे। देसंविवि के प्रति कुलपति माननीय डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हम समय की गंभीरता को समझें, अवसर को पहचानें, तभी मानवीय चिंतन में सकारात्मक बदलाव ला सकते
हैं। उन्होंने कहा कि अवसर को पहचानने वाले सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन जाते हैं। माननीय प्रति कुलपति जी ने कहा कि श्रेष्ठ संस्कार और उत्कृष्ट चिंतन भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। इसी बुनियाद पर किया गया विकास मानवता के लिए हितकारी सिद्ध होगा। कुलपति श्री शरद पारधी ने आभार प्रकट किया। इससे पूर्व शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय महासचिव श्री अतुल भाई कोठारी, भारतीय विश्वविद्यालय संघ के महासचिव डॉ. पंकज मित्तल, देवभूमि उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संजय बंसल आदि ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर देसंविवि, देवभूमि उत्तराखण्ड विवि एवं शिक्षा संस्कृति न्यास दिल्ली से जुड़े
अनेक शिक्षाविद, पदाधिकारी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।
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