आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी और निर्वाचन आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार जी के बीच सार्थक भेंट
हाल ही में, आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी की उपस्थिति में भारत के निर्वाचन आयुक्त माननीय श्री ज्ञानेश कुमार जी से एक अत्यंत सार्थक भेंट हुई। इस मुलाकात में विभिन्न आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अभियानों पर विस्तृत चर्चा की गई, जिसमें आदरणीय पंड्या जी ने माननीय श्री कुमार जी को भारत में चलाए जा रहे इन अभियानों के महत्व और उनके समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों के बारे में विस्तार से अवगत कराया।
माननीय श्री कुमार जी ने इन प्रयासों की सराहना करते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिक मूल्यों के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे अभियानों से समाज में जागरूकता और एकता को बढ़ावा मिलता है और इससे समाज के सभी वर्गों में सकारात्मक परिवर्तन की संभावना बनती है।
इसके अतिरिक्त, आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने माननीय श्री कुमार जी को पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा रचित युगसाहित्य भेंट किया ताकि वे भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की गहरी समझ प्राप्त कर सकें। इस उपहार से उन्हें न केवल भारतीय तात्त्विक दृष्टिकोण का बोध हुआबल्कि वे इन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों के महत्व को भी और अधिक महसूस कर सके।
Recent Post
कौशाम्बी जनपद में 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ 26 नवंबर से 29 नवंबर तक
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में अखिल विश्व गायत्री परिवार की जनपद इकाई के द्वारा करारी नगर में 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन 26 नवंबर से प्रारंभ हो रहा है। यह कार्यक्रम 26 से प्रारंभ होकर 29...
चिन्तन कम ही कीजिए।
*क्या आप अत्याधिक चिन्तनशील प्रकृति के हैं? सारे दिन अपनी बाबत कुछ न कुछ गंभीरता से सोचा ही करते हैं? कल हमारे व्यापार में हानि होगी या लाभ, बाजार के भाव ऊँचे जायेंगे, या नीचे गिरेंगे।* अमुक ...
भारत, भारतीयता और करवाचौथ पर्व
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में एक विशेष और पवित्र पर्व है, जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और आरोग्य के लिए मनाती हैं। इस व्रत का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक...
प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्नता का राजमार्ग (भाग 4)
बुराई की शक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रबलता के साथ टक्कर लेती है। इसमें सन्देह नहीं है। ऐसे भी व्यक्ति संसार में हैं जिनसे ‘‘कुशल क्षेम तो है’’ पूछने पर ‘‘आपको क्...
घृणा का स्थान
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा का ही भय है, जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है। यह क्रोध ही है,...
अनेकता में एकता-देव - संस्कृति की विशेषता
यहाँ एक बात याद रखनी चाहिए कि संस्कृति का माता की तरह अत्यंत विशाल हृदय है। धर्म सम्प्रदाय उसके छोटे-छोटे बाल-बच्चों की तरह हैं, जो आकृति-प्रकृति में एक-दूसरे से अनमेल होते हुए भी माता की गोद में स...
प्रगति के पाँच आधार
अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई।
(1) अपना दायरा बढ़ाओ, संकीर्ण स्वार्थ परता से आगे बढ़कर सामाजिक बनो।
(...
कुसंगत में मत बैठो!
पानी जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे बुरे लोगों के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैं, लेकिन अच्छे व्यक्ति बुरे आ...
अहिंसा और हिंसा
अहिंसा को शास्त्रों में परम धर्म कहा गया है, क्योंकि यह मनुष्यता का प्रथम चिन्ह है। दूसरों को कष्ट, पीड़ा या दुःख देना निःसंदेह बुरी बात है, इस बुराई के करने पर हमें भयंकर पातक लगता है। और उस पातक ...
अहिंसा और हिंसा (भाग 2)
बड़े बुद्धिमान, ज्ञानवान, शरीरधारी प्राणियों को दुख देने, दण्ड देने या मार डालने या हिंसा करने के समय यह विचारना आवश्यक है। कि यह दुख किस लिए दिया जा रहा है। सब प्रकार के दुख को पाप और सब प्रकार के...