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दिनभर चले कार्यक्रम से हजारों राहगीरों को दिया संदेश
उज्जैन। मध्य प्रदेश
से होने वाले व्यक्तिगत, सामाजिक अदनी-सी तम्बाकू की गुलामी लाभों की जानकारी दी और उन्हें एक संकल्प से छूट सकती है।’ नशे से मुक्त होने के लिए प्रेरित इस संदेश के साथ गायत्री परिवार किया। श्री देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव उज्जैन ने विश्व तंबाकू निषेध दिवस ने बताया कि शुक्रवार शाम 6 से पर अनेक लोगों को नशे से मुक्त रात्रि 9:30 बजे तक चले इस होने का संकल्प दिलाया। इससे योजन में बड़ी संख्या में राहगीरों पूर्व गायत्री शक्तिपीठ उज्जैन पर ने व्यसन मुक्ति के लिया परामर्श आयोजित विशिष्ट कार्यक्रम में श्री लिया और गायत्री परिवार की इस सुभाष गुप्ता ने तम्बाकू सेवन छोड़ने पहल की सराहना की।
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देसंविवि के नवीन शैक्षणिक सत्र का श्रीगणेश
ज्ञानदीक्षा ज्ञान के उदय का पर्व ः डॉ चिन्मय पण्ड्या
हरिद्वार 22 जुलाई।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुज का 44वाँ ज्ञानदीक्षा समारोह उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ। समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि केबीनेट मंत्री श्री धनसिंह रावत, विशिष्ट अतिथि दून विवि की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल, देसंविवि के कुलपति श्री शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या द्वारा दीप प्रज्वलन एवं देसंविवि के कुलगीत से हुआ। ज्ञानदीक्षा समारोह में भारत के 15 राज्यों के नवप्रवेशी छात्र छात्राएँ दीक्षित हुए।
युवा अनुशासन का निर्वहन करें ः श्री रावत
समारोह के मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा एवं सहकारिता मंत्री श्री धनसिंह रावत ने कहा कि जिस युवाओं में अनुशासन होता, ऐसे युवा ही आगे बढते ह...
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Yug Parivartan Ka Aadhar युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (अंतिम भाग)
जाति या लिंग के कारण किसी को ऊँचा या किसी को नीचा न ठहरा सकेंगे, छूत- अछूत का प्रश्न न रहेगा। गोरी चमड़ी वाले लोगों से श्रेष्ठ होने का दावा न करेंगे और ब्राह्मण हरिजन से ऊँचा न कहलायेगा। गुण, कर्म, स्वभाव, सेवा एवं बलिदान ही किसी को सम्मानित होने के आधार बनेंगे, जाति या वंश नहीं। इसी प्रकार नारी से श्रेष्ठ नर है उसे अधिक अधिकार प्राप्त है, ऐसी मान्यता हट जायेगी। दोनों के कर्तव्य और अधिकार एक होंगे। प्रतिबन्ध या मर्यादाएँ दोनों पर समान स्तर की लागू होंगी। प्राकृतिक सम्पदाओं पर सब का अधिकार होगा। पूँजी समाज की होगी। व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार उसमें से प्राप्त करेंगे और सामर्थ्यानुसार काम करेंगे। न कोई धनपति होगा न निर्धन, मृतक उत्तराधिकार में केवल परिवार के असमर...
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‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग १)
आदत पड़ जाने पर तो अप्रिय और अवांछनीय स्थिति भी सहज और सरल ही प्रतीत नहीं होती, प्रिय भी लगने लगती है। बलिष्ठ और बीमार का मध्यवर्ती अन्तर देखने पर यह प्रतीत होते देर नहीं लगती कि उपयुक्त एवं अनुपयुक्त के बीच कितना बड़ा फर्क होता है। अतीत के देव मानवों के स्तर और सतयुगी स्वर्गोपम वातावरण से आज के व्यक्ति और समाज की तुलना करने पर यह समझते देर नहीं लगती कि उत्थान के शिखर पर रहने वाले इस धरती के सिरमौर पतन के कितने गहरे गर्त में क्यों व कैसे आ गिरे।
आज शारीरिक रुग्णता, मानसिक उद्विग्नता, आर्थिक तंगी, पारिवारिक विपन्नता, सामाजिक अवांछनीयता क्रमशः बढ़ती ही चली जा रही है, अभ्यस्तों को तो नशेगाजी की लानत और उठाईगीरी भी स्वाभाविक लगती है, कोढ़ी भी आने समुदाय में दिन गुजारते रहते है पर सही...
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‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग २)
यदि वर्तमान परिस्थिति अनुपयुक्त लगती हो और उसे सुधारने बदलने का सचमुच ही मन हो तो सड़ी नाली की तली तक साफ करनी चाहिए। सड़ी कीचड़ भरी रहने पर दुर्गन्ध और विषकीटकों से निपटने के छुट पुट उपायों से कोई स्थायी समाधान मिल नही सकेगा। समाजगत विभीषिकाओं और व्यक्तिगत व्यथाओं के नाम रूप कितने ही क्यों न हो सबका आत्यन्तिक समाधान एक ही है कि दृष्टिकोण की दिशाधारा बदली जाय और अभ्यस्त ढर्रे की रीति नीति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया जाय। उलटे को उलटकर सीधा किया जा सकता है। एक शब्द में इसी को युग क्रान्ति कहा जा सकता है जिसे नियोजित किये बिना और कोई गति नहीं। जहाँ तक उतर चुके उसके उपरान्त अब महा विनाश का, सामूहिक आत्म हत्या का ही अन्तिम पड़ाव है।
मानवी क्षमता इन दिनों अनुपयुक्त को अपनाने बढ़ाने ...
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‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ३)
युग परिवर्तन या व्यक्ति परिवर्तन के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण और समाजगत प्रवाह प्रचलन को बदलने की बात कही जाती है। उसे समन्वित रूप से एक शब्द में कहा जाय तो प्रवृत्तियों का परिवर्तन भी कह सकते हैं। लोग आज जिस तरह सोचते, चाहते, मानते और करते है उसके उद्गम केन्द्र में ऐसे हेरफेर की आवश्यकता है जिससे सड़े गले ढर्रें का परित्याग और शालीनता का अवलम्बन संभव हो सके। इसके लिए क्या करना होगा? उसे भी संक्षेप में कहा जा सकता है। इसके लिए तीन सिद्धान्त सूत्रों को समझने अपनाने भर से काम चल जायेगा।
एक यह कि निर्वाह में संयम सादगी का इतना समावेश किया जाय जिसे औसत नागरिक स्तर का और शरीर यात्रा के लिए अनिवार्य कहा जा सके।
दूसरा यह कि सादगी अपनाने के उपरान्त जो क्षमता सम्पदा बचती ह...
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‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ४)
भटकाव से भ्रमित और कुत्साओं से ग्रसित व्यक्ति ऐससी ललक लिप्साओं में संलग्न रहता है जिन्हें दूरदर्शिता की कसौटी पर कसने से व्यर्थ निरर्थक एवं अनर्थ की ही संज्ञा दी जा सकती है। पेट प्रजनन इतना कठिन नहीं है जिनकी उचित आवश्यकताएँ थोड़ा सा समय श्रम लगाकर जुटाकर जुटाई न जा सके। सामथ्यों और साधनों की बर्बादी तो मूर्खता एवं धूर्तता जैसे प्रयोजनों में ही नष्ट भ्रष्ट होती रहती है। इसे जो जितनी बचा सकेगा उसे अपने पास सत्प्रयोजनों में लगा सकने योग्य भण्डार उतनी ही मात्रा में भरा पूरा दृष्टिगोचर होने लगेगा। बर्बादी से बचने और प्रगति पथ पर चढ़ दौड़ने की सुविधा प्राप्त करने का एक ही उपाय है-संयम। सादा जीवन उच्च विचार का आदर्श अपनाने पर ही व्यक्तित्व के अभ्युदय का शुभारम्भ होता है।
इन्द्रिय संय...
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हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग ५)
स्पष्ट है कि आजीविका का एक महत्वपूर्ण जनुपात अंशदान के रूप सृजन कृत्यों के लिए नियोजित करने की आवश्यकता पड़ेगी। इतना ही नहीं श्रम, समय भी इसके साथ ही देना पड़ेगा। अस्तु न केवल आजीविका का एक अंश वरन समय का श्रमदान भी इस निमित्त नियमित रूप से नियोजित करते रहने की आवश्यकता पड़ेगी। आरम्भ में महीने में एक दिन की आजीविका और हर दिन दो घण्टे का श्रम इस हेतु उन सभी को लगाना होगा जो प्रस्तुत विश्व संकट से उबरने की बात सोचते और इस निमित्त कुछ करने का साहस करते हैं।
योजनाएँ कैसी भी क्यों न हों बुद्धिबल, श्रम तथा धन की माँग करती है। युग परिवर्तन अभियान भी इसका अपवाद नहीं है। जो कहे सो पानी को जाय वाली उक्ति के अनुसार प्रतिपादन कर्त्ताओं को कथनी को करनी में प्रयुक्त करके दिखाना पड़ता है। विशेष...
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हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (अंतिम भाग)
इस तथ्य से सभी अवगत है कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। धूमधाम, देन दहेज की शादियों का वर्तमान प्रचलन देखने में हर्षोत्सव की साज सज्जा जैसा भले ही प्रतीत होता हो किन्तु वस्तुतः उसकी भयंकरता उतनी हलकी है नहीं। इस कारण नर और नारी के बीच भयंकर खाई खड़ी हुई है, कन्या और पुत्र का अन्तर बढ़ा है, कन्या शिक्षा में कटौती हुई है, हत्याओं और आत्म हत्याओं का सिलसिला चला है, सगे सम्बन्धियों के बीच डकैती जैसी दुष्टता की जड़ जमी है, दाम्पत्य जीवन की उत्कृष्टता को भयानक चोट लगी है, देश की आर्थिक कमर टूटी है, समाज का ढाँचा बेतरह लड़खड़ाया है। और भी न जाने क्या क्या अनर्थ इस कारण हुआ है। समय की माँग और दूरदर्शिता का संकेत यह है कि सर्व प्रथम धूमधाम और देन दहेज की शादियों के विरुद्ध व्यापक मोर...
युग निर्माण योजना
युग निर्माण योजना की सबसे बड़ी संपत्ति उस परिवार के परिजनों की निष्ठा है, जिसे कूटनीति एवं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के आधार पर नहीं, धर्म और अध्यात्म की निष्ठा के आधार पर बोया, उगाया और बढ़ाया गया है। किसी को पदाधिकारी बनने की इच्छा नहीं, फोटो छपाने के लिए एक भी तैयार नहीं, नेता बनने के लिए कोई उत्सुक नहीं, कुछ कमाने के लिए नहीं, कुछ गंवाने के लिए जो आए हों उनके बीच इस प्रकार कल छल छद्म लेकर कोई घुसने का भी प्रयत्न करे तो उस मोर का पर लगाने वाले कौवे को सहज ही पहचान लिया जाता है और चलता कर दिया जाता है । यही कारण है कि इस विकासोन्मुखं हलचल में सम्मिलित होने के लिए कई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षी आए पर वे अपनी दाल गलती न देखकर वापस लौट गए। यहाँ निस्पृह और भावनाशील, परमार्थ परायण, निष्ठा के धनी...