ईमानदारी का व्यवहार
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ईमानदार जीवन हजार मनकों में अलग चमकता हीरा होता है। ईमानदारी यश, धन, समृद्धि का आधार होती है। इसके बावजूद लोग कहते सुने जाते हैं कि व्यापार में बेईमानी बिना काम नहीं चलता, ईमानदारी से रहने में गुजारा नहीं हो सकता, वास्तव में यह गलत है।
वस्तुत: जो समझते हैं कि हमने बेईमानी से पैसा कमाया है। वे गलत समझते हैं, असल में उन्होंने ईमानदारी की ओट लेकर ही अनुचित लाभ उठाया होता है। कोई व्यक्ति साफ-साफ यह घोषणा कर दे कि ‘मैं बेईमान हूँ और धोखेबाजी का कारोबार करता हूँ,’ तब फिर अपने व्यापार में लाभ करके दिखावे तो यह समझा जा सकता है कि हाँ, बेईमानी की आड़ लेना कोई लाभदायक नीति है। जिस दिन उसका पर्दाफाश हो जाएगा कि भलमनसाहत की आड़ में बदमाशी हो रही है उस दिन ‘कालनेमी माया’ का अंत ही समझिये।
आप धोखेबाज मत बनिए, ओछे मत बनिये, गलत मत बनिए अपने लिए प्रतिष्ठा की भावनाएँ फैलने दीजिए। यह सब होना ईमानदारी पर निर्भर है। छोटा काम, कम पूँजी का, कम लाभ का, अधिक परिश्रम का इत्यादि जो भी काम आपके हाथ में है, उसी में अपना गौरव प्रकट होने दीजिए। यदि आप दुकानदार हैं, तो पूरा तौलिए, नियत कीमत रखिए, जो चीजें जैसी है, उसे वैसी ही कह कर बेचिए। इन तीन नियमों पर अपने काम को अवलम्बित कर दीजिए। मत डरिए कि ऐसा करने से हानि होगी। कम तोलकर या कीमत ठहराने में अपना और ग्राहक का बहुत सा समय बर्बाद करके जो लाभ कमाया जाता है, असल में वह हानि के बराबर है।
दुकानदार के प्रति ग्राहक के मन में सन्देह उत्पन्न हुआ, तो समझ लीजिए कि उसके दुबारा आने की तीन चौथाई आशा चली गयी। इसी प्रकार मोलभाव करने में यदि बहुत मगज पच्ची की गयी है, पहिली बार माँगे गये दामों को घटाया गया है, तो उस समय भले ही वह ग्राहक पट जाय पर मन में यही धकपक करता रहेगा कि कहीं इसमें भी अधिक दाम तो नहीं चले गये हैं। ऐसे संकल्प-विकल्प शंका-संदेह लेकर जो ग्राहक गया है, उसके दुबारा आने की आशा कौन कर सकता है? जिस दुकानदार के स्थायी और विश्वासी ग्राहक नहीं भला उसका काम कितने दिन चल सकता है?
कुछ बताकर कुछ चीज देना एक गलत बात है, जिससे सारी प्रतिष्ठा धूलि में मिल जाती है। दूध में पानी, घी में वेजीटेबिल, अनाज में कंकड, आटे में मिट्टी मिलाकर देना, आज कल खूब चला है। असली कहकर नकली और खराब चीजें बेची जाती हैं। खाद्य पदार्थों और औषधियों तक की प्रामाणिकता नष्ट हो गयी है। मनमाने दाम वसूल करना और नकली चीजें देना यह बहुत बड़ी धोखाधड़ी है। यदि यह प्रामाणित किया जा सके कि वस्तु असली है, तो ग्राहक उसको कुछ अधिक पैसे देकर भी खरीद सकता है। सदियों का पराधीनता ने हमारे चरित्र बल को नष्ट कर डाला है। तदनुसार हमारे कारोबार झूठे,नकल, दगाफरेव से भरे हुए होने लगे हैं। गलत बात से न तो बड़े पैमाने पर लाभ ही उठाया जा सकता और न प्रतिष्ठा ही प्राप्त की जा सकती है। व्यापार में धोखेबाजी की नीति बहुत ही बुरी नीति है। इस क्षेत्र में कायरों और गलत स्वभाव के लोगों के घुस पडऩे के कारण भारतीय उद्योग धन्धे, व्यापार नष्ट हो गये।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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