इच्छा शक्ति का केन्द्रीकरण
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इच्छा शक्ति का केन्द्रीकरण तथा पूरी तत्परता के साथ प्रयत्नशील रहना ही वह आधार है जिसके बल पर इच्छित उपलब्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। मनुष्य उन्हीं वस्तुओं अथवा उपलब्धियों को प्राप्त कर सकता है जिनके लिए वह आग्रहपूर्वक प्रयत्न करता है। अगर किसी लक्ष्य विशेष का निर्धारण न कर काम किया जाए तो उसका परिणाम भी शून्य या नगण्य ही रहेगा और कहना नहीं होगा कि लक्ष्य का निर्धारण तभी होता है जब मन में किसी विशिष्ट आकांक्षा का निवास हो और उसे प्राप्त करने के लिए तत्परता के स्तर की व्यग्रता हो। अनेक जीव-जंतु कीट पतंगे फूलों के आस-पास घूमते रहते हैं, पर उनमें से केवल मधुमक्खी ही शहद निकालती है, क्योंकि उसे मधु प्राप्त करने की आकांक्षा और व्यग्रता रहती है।
उस संबंध में ब्रिटेन के प्रसिद्ध विचारक कार्लायल का कथन है कि एक ही विषय पर अपनी शक्तियों को एकाग्र करने से कमजोर व्यक्ति भी बहुत कुछ कर सकता है, जबकि बलवान व्यक्ति भी यदि अपनी शक्तियों को कई दिशाओं में बिखेर देता है तो वह बलवान होते हुए भी कुछ नहीं कर सकता। एक-एक बूँद पानी अगर एक ही स्थान पर निरंतर पड़ता रहे तो कड़े-से-कड़े पत्थर में भी छेद हो जाता है लेकिन यदि पानी का बड़ा भारी बहाव भी शीघ्रतापूर्वक उसके ऊपर से निकल जाए तो उसका नाम-निशान भी उस पर नहीं दिखाई पड़ता।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृ. २०
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