पहले भूमि तैयार करनी पड़ेगी
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युग−निर्माण की दिशा में हमें पहला कार्य एक ही करना होगा कि जन−मानस में स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज के निर्माण की आवश्यकता अनुभव करावें। लोगों को यह बतावें कि इन विभूतियों के बिना मानव जीवन निरर्थक जैसा है, ऐसे अर्धमृत जीवन में साँसों की गिनती पूरी कर लेने में क्या सार है? यदि जीना है तो इंसान की तरह क्यों न जियें, यदि मनुष्य का सुरदुर्लभ शरीर पाया है तो इसे सार्थक क्यों न करें? बीमार शरीर, मलीन मन, पतित समाज में रहना नरक के समान दुखदायी ही रहता है। सो जब उसे बदल सकना संभव है तो उस संभावना को सार्थक क्यों न किया जाय? इस प्रकार के प्रश्न जब जन−मानस के अन्तःकरण में उठने लगेंगे तो वह कुछ सोचने और कुछ करने के लिए भी तत्पर होगा। ऐसा जन−जागरण ही हमारा आज का प्रधान कार्य होना चाहिए।
प्रचार में बड़ी शक्ति है। चाय वालों ने चाय की और बीड़ी वालों ने बीड़ी की गंदी आदतें अपने प्रचार के बल पर घर−घर पहुँचा दी। सिनेमा के गंदे गाने छोटी देहातों में बच्चों की जवानों पर चढ़ गये, यह प्रचार साधनों की ही महत्ता है। हम युग−निर्माण के उपयुक्त संयम की, उदारता की, विवेक की आवश्यकता की ओर जनसाधारण का ध्यान आकर्षित करना चाहें तो प्रचार के बल पर ही हो सकता है। अखण्ड ज्योति परिवार का एक बड़ा विशाल और शक्तिशाली संगठन है। हम सब मिलकर आज युग−निर्माण के लिए उपयोगी एवं आवश्यक विचारों का प्रसार करें और कल उन आयोजनों, कार्यक्रमों, आन्दोलनों एवं अभियानों की व्यवस्था करें जो आज की अव्यवस्था को उखाड़ दें और उसके स्थान पर स्वर्गीय वातावरण को पृथ्वी पर अवतरित करने के उपकरण उपस्थित कर दें। हमें यही करना है—यही करेंगे भी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1962
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