गुरु पूर्णिमा-’युग निर्माण योजना’ का अवतरण पर्व (अंतिम भाग)
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एक घंटा समय किस कार्य में लगाया जाय? इसका उत्तर यही है- ‘जन जागृति में’-विचार क्रान्ति का अलख जगाने में। बौद्धिक कुण्ठा ही राष्ट्रीय अवसाद का एकमात्र कारण है। भावनाएं जग पड़े तो सब ओर जागृति ही जागृति होगी। सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश दृष्टिगोचर होगा। अन्तःकरण न जगे तो बाहरी हलचलें कुछ ही दिन चमक कर बुझ जाती हैं। जो भीतर से प्रकाशवान है वह आँधी तूफान में भी ज्योतिर्मय बना रहता है, इसलिये हमें दीपक से दीपक जलाने की धर्म परम्परा प्रचलित करने के लिये अपने समय दान का सदुपयोग करना चाहिये। अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों, परिचित-अपरिचितों के नामों में से छाँटकर एक लिस्ट ऐसे लोगों की बनानी चाहिये जिनमें विचारशीलता एवं सद्भावना के बीजाँकुर पहले से ही किसी अंश में मौजूद हैं। उन लोगों से संपर्क बनाकर उन तक नव निर्माण की प्रौढ़ विचारधारा पहुँचाने का प्रयत्न करना चाहिये। इस अभिनव ज्ञान दान द्वारा हम उन स्वजनों की सच्ची सेवा करते हैं। भाव जागृति द्वारा किसी व्यक्ति में उत्कृष्टता उत्पन्न कर देना ऐसा परोपकार है जिससे बढ़कर और कुछ अनुदान दिया ही नहीं जा सकता। राष्ट्र की तीन आवश्यकताएं नैतिक, क्रान्ति, बौद्धिक क्रान्ति एवं सामाजिक क्रान्ति का सूत्रपात यहीं से होता है। भाव जागृति के बिना मानव जाति की कुण्ठाओं और विकृतियों को और किसी प्रकार दूर नहीं किया जा सकता।
लिस्ट में अंकित व्यक्ति प्रथम बार में भी कम से कम दस तो होने ही चाहिये। उनके पास जाने एवं संपर्क बनाने की पहल अपने को ही करनी चाहिये। मीटिंग में जिन्हें बुलाया जाता है, उन आने वालों का अपने ऊपर अहसान होता है और जिनके घर हम स्वयं जाते हैं वे हमारी सद्भावना से प्रभावित होते हैं। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को हमें समझ ही लेना चाहिये। इसलिये जिन्हें प्रेरणा देनी हो, उनके पास स्वयं जाने का क्रम बनाना ही होगा। मीटिंग में इकट्ठे करने से यह प्रयोजन पूरा नहीं हो सकता। धर्म फेरी का पुण्य हमें ही लेना चाहिये। जन-जागरण के लिए लोगों से संपर्क बनाने एवं उनके घरों पर जाने का क्रम हमें ही बनाना चाहिये।
जिनके घर जाया जाय उनसे कुशल क्षेम पूछने के साधारण शिष्टाचार के उपरान्त अभीष्ट उद्देश्य के लिये आवश्यक प्रेरणा देनी आरंभ कर देनी चाहिये। जो पढ़े-लिखे हैं उन्हें अपनी अखण्ड-ज्योति व युग निर्माण योजना के पिछले अंक पढ़ने को देना चाहिये। जो पढ़े नहीं हैं उन्हें प्रेरणाप्रद लेख, समाचार एवं प्रसंग सुनाने चाहिये। अवसर हो तो उन विषयों पर चर्चा भी आरंभ करनी चाहिये। पुरानी अखण्ड-ज्योति की प्रतियाँ युग निर्माण योजना के अंक सभी के पास होंगे, उनके ऊपर अच्छे मोटे कवर चढ़ा चिपका लेने चाहिये ताकि अनेक लोगों में पढ़े जाने पर वे खराब न हों। आदर्शवादी विचार आमतौर से रूखे और नीरस माने जाते हैं। उन्हें पढ़ना, सुनना बहुत कम लोग पसंद करते हैं। यह काम अपना है कि विषय की महानता एवं गरिमा को आकर्षक तथा प्रभावशाली ढंग से समझा कर लोगों में यह अभिरुचि उत्पन्न करें। व्यापक दृष्टिकोण को समझने और विचारने की आकांक्षा जब जागृत हो जाय तब समझना चाहिये कि यह व्यक्ति राष्ट्र के लिये कुछ उपयोगी सिद्ध हो सकने की स्थिति में पहुँचा। इतनी सफलता मिल जाने पर आगे की प्रगति बहुत सरल हो जाती है। जिसके मनोभाव सोये पड़े हैं उसमें विचारशीलता की अभिरुचि जागृत कर देना हमारे लिये भारी गौरव, गर्व एवं संतोष की बात होगी।
गुरु पूर्णिमा पर्व पर (जो रविवार 5 जुलाई सन् 2020 को पड़ेगा) गुरु दक्षिणा में देने के लिए इस वर्ष हमें एक घंटा समय और एक रुपया प्रतिदिन दान करने का व्रत लेना चाहिए। एक रुपया प्रतिदिन देने से एक महीने में 30 होता है। वर्ष भर में 365 रुपये होते है। 220 की अखण्ड-ज्योति 110 की युग-निर्माण योजना आती है। यह खर्च भी हमें नव-निर्माण के लिए करना ही चाहिए। यह पैसे बाहर किसी को देने नहीं हैं। वरन् इन्हें अत्यन्त सस्ते लागत से भी कम मूल्य में मिलने वाले सत्साहित्य के रूप में परिणित कर लेना है। यह अमानत अपने ही पास जमा रहती है। भण्डार बढ़ता रहेगा और उसका लाभ अब से लेकर आगामी पचास सौ वर्ष तक अनेक लोग उठाते रहेंगे। विवेक सम्पन्न दान का यह सर्वश्रेष्ठ तरीका है। छोटे बच्चे भी आमतौर से स्कूल जाते समय एक आना जेब खर्च ले जाते हैं। समझना चाहिए कि युग-निर्माण अभियान भी हमारा एक बच्चा है। चाहे तो ऐसा भी मान सकते हैं कि आचार्य जी हमारे एक बच्चे हैं और उन्हें एक आना प्रतिदिन जेब खर्च के लिए दिया जाता है। मन को समझाने के हजार प्रकार हो सकते हैं। भावना यदि विद्यमान हो तो इतना खर्च कर सकना गरीब से गरीब के लिए भी भारी नहीं पड़ता। एक आने का अनाज तो हर घर में चूहे, कीड़े भी खा जाते हैं। इतना तो सभी को सहन करना पड़ता है। भावना जाग पड़े तो इतना छोटा खर्च भी क्या किसी को भारी पड़ेगा।
अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रबुद्ध सदस्यों को इस गुरु पूर्णिमा से यह व्रत लेना चाहिये। एक घण्टा समय, एक आना नकद, यह त्याग कुछ इतना बड़ा नहीं है, जिसे लक्ष्य की महानता को देखते हुए, कर सकना हमारे लिए कठिन होना चाहिये। नियमितता में बड़ी शक्ति होती है। महीने में 30 घण्टे यदि जन संपर्क के लिए सुरक्षित रख लिये जायें और प्रतिदिन या साप्ताहिक अवकाश के दिन उन्हें ठीक तरह प्रचार कार्य में लगाया जाय तो इसका चमत्कारी परिणाम कितना महान होता है इसे कोई भी प्रत्यक्ष देख सकता है। दान अनेक प्रकार करने पड़ते हैं पर यह प्रेरक साहित्य संग्रह करने के लिए किया गया साहस विश्व मानव का भाग्य बदलने के लिए कितना उपयोगी सिद्ध होता है इसे कुछ ही दिनों में मूर्तिमान देखा जा सकेगा।
आगे हमें बहुत कुछ करना है। अनैतिकता, मूढ़ता, अन्ध परम्परा, अस्वस्थता, अशिक्षा, दरिद्रता, अकर्मण्यता आदि अगणित विकृतियों से डटकर लोहा लेना है। हमारा देश किसी समय सर्वश्रेष्ठ मानवों का निवास स्थान, समस्त संसार का मार्ग दर्शक, देवलोक के लिये भी स्पर्धा का विषय माना जाता था। पर इन्हीं कुरीतियों, हानिकारक अन्ध परम्पराओं के कारण आज वह निकृष्ट, दीन−हीन स्थिति को प्राप्त हो गया है। यदि हमको इस दुरावस्था से बाहर निकल फिर दुनिया के प्रगतिशील देशों की श्रेणी में अपनी गणना करानी है तो हमको अवश्य ही इन हीन प्रवृत्तियों से छुटकारा पाना चाहिये। उसके लिए अगले दिनों व्यापक योजनाएं बनाई जानी हैं और उन्हें कार्य रूप में परिणित किया जाना है। पर इसके लिए आवश्यक जन-शक्ति तो अपने पास होनी चाहिए। इस आवश्यकता की पूर्ति हमारी यह प्रथम प्रक्रिया ही पूर्ण करेगी। एक घण्टा समय, एक आना नकद की माँग को पूरा करने के लिए यदि हम साहस कर सकें तो इस अवसर पर बढ़ा हुआ शौर्य आगे की कठिन मंजिलों को भी पार कर सकने में समर्थ होगा। पर यदि इतना भी न बन पड़ा तो हमारी वाक्शूरता ऊसर में डाले गये बीज की तरह ही नपुंसक सिद्ध होगी।
अब समय कम ही रह गया है। इसलिए आज से ही विचारना आरम्भ कीजिए कि इस पुण्य पर्व के उपलक्ष में उपरोक्त प्रथम आवश्यकता की पूर्ति के लिये ‘एक घण्टा एक आना’ की माँग पूरी करेंगे क्या? यदि कर सके तो उसकी सूचना गुरुपूर्णिमा को श्रद्धाञ्जलि के रूप में समय से पूर्व ही भेज दें ताकि उस दिन उन्हें छाती से लगाकर अपार आनन्द प्राप्त किया जा सके।
आगामी गुरु पूर्णिमा हमारी परीक्षा लेने आ रही है। क्या करना है, क्या करेंगे, इसका निर्णय करने के लिये अभी से सोच विचार आरम्भ कर देना चाहिये।
.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति नवम्बर 1965 पृष्ठ 50, 51
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