॥ परिव्राजक सत्रों की महत्ता एवं स्वरूप॥
परम पूज्य गुरुदेव हिमालय की ऋषि सत्ताओं के प्रतिनिधि के रूप में इस धराधाम पर विशेष उद्देश्य को लेकर अवतरित हुए। उन्होंने ने अपने ८० वर्ष के स्थूल जीवन में ही इतने कार्य कर दिये कि उनका लेखा-जोखा करना संभव नहीं है। उनकी एक स्थापना ऐसी है जो युगों-युगों तक याद की जाती रहेगी, वह है युग शक्ति के रूप में गायत्री माता की उपासना का सार्वभौम प्रचलन तथा उसके श्रद्धा केन्द्रों के रूप में गायत्री शक्तिपीठों की स्थापना। सन् १९७९ के वसन्त पर्व पर इसी शृंखला में एक नई कड़ी जुड़ी कि संसार के कोने-कोने में गायत्री शक्तिपीठों की स्थापना की जाय। इन पीठों के सम्बन्ध में उन्होंने अपने विशाल परिवार के सदस्यों से बड़ी अपेक्षाएँ की हैं। इन्हें जन-जागरण के केन्द्र, नये सिरे से मानवता की गढ़ाई के स्थान तथा समाज के प्रकाश स्तम्भ के रूप में विकसित करने का महान दायित्व परिजनों को सौंपा है। पूज्यवर इन पीठों को प्राणवान , शक्तिशाली विद्युत उपकेन्द्रों (सब-स्टेशन) की तरह क्षेत्र में आध्यात्मिक ऊर्जा संचारित करने वाले, प्रकाश स्तम्भ की भूमिका निभाने वाले केन्द्रों के रूप में विकसित करना चाहते हैं। गायत्री शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों और प्रज्ञा संस्थानों की योजना महान् उद्देश्य एवं ऊँचे लक्ष्य को सामने रख कर तैयार की है। परिजनों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी पिछली भूलों को सुधारते हुए आगे के क्रम को सुचारु रूप से चलाने के लिए कमर कसें। मिशन से जुड़े सभी निष्ठवान , परिजनों, कार्यकर्ताओं, परिव्राजकों, शक्तिपीठों के संचालकों/व्यवस्थापकों तथा क्षेत्र के प्रबुद्घ नागरिकों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सदाशयता का परिचय देते हुए अपने प्रभाव क्षेत्र में किसी भी संस्थान को निर्धारित अनुशासनों से भटकने न दें, सही दिशा में गतिशील रहकर लोक कल्याण के कार्य संचालित करने में सहयोग देते रहें। परम पूज्य गुरुदेव ने नवसृजन के लिए जो स्थूल-सूक्ष्म तानाबाना बुना, उसके अन्तर्गत गायत्री शक्तिपीठों-प्रज्ञापीठों की स्थापना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
शांतिकुञ्ज के एक घटक होने के कारण शक्तिपीठ/प्रज्ञापीठ/प्रज्ञा संस्थान में संचालित की जाने वाली समस्त गतिविधियों का निर्धारण एवं मार्गदर्शन यहीं से किया जाता है। परम पूज्य गुरुदेव ने शक्तिपीठों की स्थापना के संकल्प के साथ ही उनके निर्माण से लेकर संचालन एवं अन्य संबन्धित व्यवस्थाओं के संबन्ध में विस्तृत विवरण समय-समय पर अखण्ड ज्योति पत्रिका में प्रकाशित लेखों एवं अन्य साहित्य के माध्यम से प्रदान किया है। उसी के आधार पर सभी प्रज्ञा संस्थानों के क्रिया कलाप चलाये जाने चाहिए। सभी प्रज्ञा संस्थान/प्रज्ञापीठ/शक्तिपीठ ऋषि युग्म की आकांक्षाओं के अनुरूप गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार के लघु संस्करण, सच्चे अर्थों में जन-जागरण केन्द्र, सृजन सैनिकों की छावनी, आध्यात्मिक ऊर्जा वितरण केन्द्र, विभिन्न प्रकार के प्रचारात्मक, साधनात्मक, रचनात्मक, संगठनात्मक एवं कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण केन्द्रों के रूप में विकसित हों, ऐसी आशा-अपेक्षा है। गायत्री युग शक्ति है, इस ऋतम्भरा प्रज्ञा के आलोक केन्द्रों का निर्माण इस बात को दृष्टिगत रखते हुए व्यक्तित्व परिष्कार, सद्ज्ञान के प्रचार प्रसार तथा साधना एवं प्रशिक्षण केन्द्रों के रूप में किया गया है। पूज्य गुरुदेव ने अपने संगठन को पारिवारिक आधार पर विकसित किया है। पीठों का संचालन भी ऐसे ही पारिवारिक तन्त्र द्वारा ही किया जाना जरूरी है। पीठों के निर्माण, रख रखाव, कानूनी नियमों का पालन करते हुए क्षेत्र के सक्रिय समयदानी परिजनों, परिव्राजकों के साथ तालमेल बिठाते हुए आगे बढऩा सभी के लिये अभीष्ट है। हर शक्तिपीठ/प्रज्ञा संस्थान पू०गुरुदेव द्वारा घोषित मर्यादाओं, अनुशासनों का पालन करने तथा कार्यक्रमों का नियमानुसार संचालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसका उल्लंघन करने वालों को इस पवित्र मिशन के घटकों के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।