Magazine - Year 1940 - Version 2
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Language: HINDI
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अपने आधार पर (kavita)
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लूं आधार कहाँ तक तेरा, कब तक का तू है साथी?
बनी जहाँ तक तब तक का तू, बिगड़ गई क्या बन आती?
उठने दे मुझको पाँवों पर निज बल का अभिमान रहे।
बनने दे ऐसा पत्थर जो अविचल प्रवल प्रहार सहे॥
निज बल पर ही लड़ने वाले, विजित हुआ करते रण में।
इसी सत्य का अमर गीत गुञ्जादे मेरे कण-कण में॥
मैं न बाल हूँ, वृद्ध नहीं हूँ, भिक्षुक नहीं, अपाहिज, हीन।
मुझे न वाँछित तेरा आश्रय, खड़ा नहीं होकर मैं दीन॥
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मेरा बोझ न लादों मुझको चलने दो अपने पथ में।
मुझ पर कृपा दिखाने वाले, बैठ चलो मेरे रथ में॥
(श्री. शिवनायणजी गौड़, लश्कर)
(श्री. शिवनायणजी गौड़, लश्कर)