Magazine - Year 1961 - Version 2
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Language: HINDI
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कहा तो उनने था-पर सुने हम भी
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अपनी लाइन बड़ी करो। स्वामी रामतीर्थ जब प्रोफेसर थे तब उनने बोर्ड पर एक लाइन खींचकर विद्यार्थियों से कहा-इसे बिना मिटाये छोटा करके दिखाओ। एक चतुर विद्यार्थी उठा, उसने उसकी बराबर ही एक लाइन कुछ बड़ी खींच दी। रामतीर्थ बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने कहा-छात्रों यही क्रम जीवन में भी हैं। यदि तुम दूसरों से बड़े होना चाहते हो तो किसी का पीछे धकेलने या उससे ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं है। अपने गुणों और कार्यों को उससे अच्छा बनाओ, तुम स्वयं उनसे बड़े हो जाओगे।
महानता का मापदण्ड
चौदहवें लुई का दाँत हालैंड को हड़पने पर था। उसने अपने मंत्री कालवर्ट ने कहा-छोटे से देश हालैंड को अब तक क्यों नहीं जीता जा सका ? कालवर्ट ने नम्रता पूर्वक कहा-श्रीमान किसी देश की महानता उसके विस्तार या क्षेत्र पर नहीं वरन् वहाँ के निवासियों के चरित्र पर निर्भर रहती है।
माँ! नीति की ही शिक्षा दो। गाँधीजी को बचपन में उसके बड़े भाई ने मारा। वे रोते हुए माँ के पास शिकायत करने गये। माँ ने प्यार से कहा-मैं क्या करूँ, तू भी उसे मार। इस पर गाँधीजी ने कहा-नहीं माँ मैं बड़े भाई को नहीं मारूँगा। तू मारने वाले को तो रोकती नहीं उलटा मुझे ही बड़े भाई को मारना सिखाती हैं। माँ लज्जित हो गई।
शर्म या मौत। पराजित सम्राट कीशूट को जब यह कहा गया कि वह मुसलमान धर्म ग्रहण करने पर ही जीवन का संरक्षण और आश्रय प्राप्त कर सकता है तो उसने बहुत गंभीर होकर कहा-शर्म और मौत इन दोनों में से यदि एक को ही मुझे चुनना पड़ रहा है तो मौत को ही पसन्द करूँगा परमात्मा की मर्जी पूरी होने दो। मैं मरने को तैयार हूँ । आज मेरे हाथ लाली हैं पर इन पर कलंक की कोई कालिमा नहीं है।
सदा अच्छा काम किया।
इंग्लैण्ड के कॉमन्स सभा के बाद विवाद में एक सदस्य ने अपने विरोधी से कहा-उन दिनों को भूल गये जब आप जूतों पर पालिश करने का काम करते थे । उस सदस्य ने उत्तर दिया-महोदय मैंने सदा अच्छी पालिश की, कभी किसी ग्राहक को असंतुष्ट नहीं होने दिया।
क्या गधे को लात मारें?
कवि मिर्जा की निन्दा में मौलवी अमीमुद्दीन ने एक किताब लिखी। उसे मिर्जा ने पढ़ा पर कोई प्रतिवाद न किया। लोगों ने इसका कारण पूछा-तो उनने कहा-कोई गधा आपमें लात मारे तो क्या आप भी उसमें लात मारेंगे ?
बच्चे का शिक्षा काल।
एक महिला शिकागो के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री फ्राँसिस वेलैण्ड पार्कर से यह पूछने गई कि वह अपने बच्चों की शिक्षा कब से प्रारम्भ करे ? पार्कर ने पूछा-आपका बच्चा कब जन्म लेगा महिला ने कहा-वह तो पाँच वर्ष का हो गया। इस पर पार्कर ने कहा-मैडम अब पूछने से क्या फायदा शिक्षा का सर्वोत्तम समय तो पाँच वर्ष तक ही होता है सो अपने यों ही गँवा दिया।
पूर्वजों की कीर्ति के बल पर।
पाण्डिचेरी अरविन्दाश्रम के प्रसिद्ध संगीतज्ञ श्री दिलीपराय एक बार इंग्लैण्ड गये और वहाँ के प्रसिद्ध दार्शनिक बर्ट्रेण्ड रसेल से मिले। दिलीपराय ने अपना परिचय देते हुए अपनी कई पीढ़ियों का बड़प्पन भरा इतिहास सुनाया। यह बात रसेल को अच्छी न लगी उनने कहा-पूर्वजों की बड़ाई एक सीमा तक ही ठीक है। यदि इसी और आगे बढ़ता चला जाय तो अन्त में वहाँ पहुँचेंगे जहाँ हमारे पूर्वज बन्दर थे। पूर्वजों की कीर्ति के आधार पर कोई बड़ा नहीं कहला सकता। बड़प्पन के लिए व्यक्तिगत गुणों की आवश्यकता हैं ।
धर्म का प्रचार।
कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘धर्म का आदर्श’ प्रतिपादन करते हुए लिखा है-क्षण क्षण में हमारे भीतर से उत्साह जागता रहता है कि ‘प्रचार करना चाहिये।’ सहसा अनुताप होने लगता है कि ‘हम कुछ नहीं रहे हैं।’ मानों कुछ करना ही सर्व प्रधान हो। और क्या करना है ? किसे करना है, ये सब बातें विचारने की ही नहीं। किन्तु यह बात सदा ध्यान रखने की है कि धर्म प्रचार के काम में ‘धर्म’ पहले है ‘प्रचार’ उसके बाद ऐसी बात नहीं कि-प्रचार करने से ही धर्म की रक्षा होगी। असल बात यह है कि धर्म की रक्षा करने से ही धर्म का प्रचार स्वतः होगा। जो लोग धर्म की पूर्ण उपलब्धि किये बिना ही धर्म प्रचार करने की चेष्टा करते हैं वे क्रमशः धर्म को जीवन से दूर धकेलते रहते हैं।
निन्दा की चिन्ता।
एक बार एक व्यक्ति ने स्वामी दयानन्द से पूछा कि-बहुत से व्यक्ति आपकी निन्दा करते हैं, इन्हें कैसे रोका जाय ? स्वामी जी ने कहा-निन्दा से तो ईश्वर भी नहीं बच सका, फिर हमारी तो बात ही क्या है ? यदि मनुष्य अपनी आत्मा के सामने सच्चा है तो उसे सारी दुनियाँ की भी परवा न करनी चाहिए।
पीछे वालों के लिए। एक बूढ़ा माली अपने बगीचे में अख़रोट का पेड़ लगा रहा था। बादशाह नौशेरवाँ उधर से गुजरे तो उनने पूछा-अखरोट का पेड़ बीस साल बाद फल देगा। तब तक तुम जीवित न रहोगे फिर क्यों इसके लिए मेहनत करते हो? माली ने उत्तर दिया-जहाँपनाह मेरे बाप दादों ने जो पेड़ लगाये थे उनके फल मैंने खाये। अब मैं यह पेड़ इसलिये लगा रहा हूँ कि मुझसे पीछे वाले दूसरे लोग इसके फल खायें।
उपेक्षा से दरिद्रता। भारत के प्रसिद्ध इंजीनियर डॉ. विश्वेश्वरय्या अपनी अमेरिका यात्रा के समय वहाँ के तत्कालीन प्रेसीडेन्ट हर्बर्ट हुवर से मिले। अन्य विषयों की चर्चा के बाद विश्वेश्वरय्या ने उनसे पूछा-भारत की आर्थिक उन्नति में सबसे बड़ी लाइन आप क्या समझते हैं ? प्रेसीडेन्ट ने कहा-यहाँ के भारतीयों में इसके किए आतुरता बिलकुल भी नहीं हैं।
गर्दन काटने से मित्र बनाना अच्छा। अब्राहम लिंकन से उनके मंत्रियों ने कहा-आप शत्रुओं के साथ नरमी का व्यवहार क्यों करते हैं इनका तो सफाया ही कर देना चाहिये। लिंकन ने कहा-मैं इनका सफाया ही कर रहा हूँ। सिर्फ मेरे और आपके तरीके सम्बन्धी दृष्टिकोण में अन्तर है। मैं इनकी गरदन काटने की अपेक्षा इनको मित्र बनाकर इनका स्वरूप ही बदले दे रहा हूँ।
क्या गंगा कभी अशुद्ध होती है ?
माता शारदामणि के सत्संग में एक महिला आती थी जिसका चरित्र अच्छा न था। इस पर अन्य भक्तों ने आपत्ति की कि इसे सत्संग में नहीं आने देना चाहिये। माताजी ने कहा-पुत्रों क्या गंगा किसी से यह कहती है कि तुम बहुत मैले कुचैले हो मेरे जल में प्रवेश न करो ? अपने को किसी से अधिक पवित्र मानना मुझे तो दंभ ही लगता हैं । आत्मिक भावनाओं से ही मनुष्य का कल्याण और अधःपतन होता है।