Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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सच्ची शांति
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दिन का अधिकांश समय, एक बच्चा एकान्त में बिताता। न खाने में कोई तर्क, न बाहर निकलने की इच्छा। कहीं जाना होता तो अपनी राह जाता और अपनी राह आप लौट आता।
पिता की चिन्ता हुई। एक दिन पूछ ही लिया- ‘‘बेटा! आजकल काम-धन्धा कुछ नहीं करते। कुछ कष्ट रहता है क्या?”
बेटे ने विनीत भाव से उत्तर दिया- ‘‘पिता जी! आप ही तो कहते थे- मनुष्य को शांति का जीवन बिताना चाहिये।” पिता ने हंस कर कहा- ‘‘बेटे! चुपचाप पड़े रहने का नाम शांति नहीं। कैसी भी स्थिति हो धैर्य रखकर, अनिवार्य दुःखों को स्वयं वीरतापूर्वक झेलता हुआ भी उद्विग्न न हो उसे शांति कहते हैं।”