Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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नव-निर्माण के अत्यन्त सस्ते ट्रैक्ट
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नव-निर्माण के शतसूत्री कार्यक्रमों को व्यापक बनाने के लिये लागत मात्र मूल्य के अत्यन्त सस्ते, सुन्दर, आकर्षक और प्रेरणाप्रद ट्रैक्ट छापे गये हैं। इन्हें स्वयं पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना या सुनाना जन-मानस को सुसंस्कृत एवं परिष्कृत करने के लिये आवश्यक है। अब तक 170 ट्रैक्ट छप चुके हैं। प्रत्येक का मूल्य 25 पैसे है।
(1) विवाह के आदर्श और सिद्धान्त। (2) तीन दिन का सत्यानाशी विवाहोन्माद। (3) विवाहोन्माद के लिये बुद्धि क्यों बेच दी जाय? (4) विवाह-शादियों का असह्य अपव्यय। (5) इस हृदय-द्रावक स्थिति को कब तक सहा जायेगा? (6) यह कुरीतियाँ मिट रही हैं और मिटेगी। (7) विवाह का वातावरण धर्मानुष्ठान जैसा रहे। (8) धर्म विवाहों की रूपरेखा। (9) आदर्श विवाहों का प्रचलन कैसे हो? (10) प्रगतिशील जातीय संगठनों की आवश्यकता। (11) हम भाग्यवादी नहीं कर्मवादी बनें। (12) अन्ध-विश्वासी नहीं विवेकशील बनिये। (13) अन्ध-विश्वास से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है। (14) भिक्षा व्यवसाय देश और समाज का कलंक। (15) मन्दिर जन-जागरण केन्द्र बनें। (16) उनसे जो पचास के हो चले। (17) साधु की महान परम्परा और जिम्मेदारी। (18) ब्राह्मण अपना उत्तरदायित्व संभालें। (19) स्वच्छता का प्रथम गुरुमन्त्र (20) दर्शन तो करें- पर इस तरह। (21) आलस्य छोड़िये, परिश्रमी बनिये! (22) पक्षपात त्यागें, औचित्य अपनायें! (23) माँसाहार मानवता के विरुद्ध है। (24) तम्बाकू- एक भयानक दुर्व्यसन। (25) प्राणियों के प्रति निर्दयता न करें। (26) अपव्यय का ओछापन। (27) मृतक भोज की क्या आवश्यकता? (28) नारी को तिरस्कृत न किया जाय। (29) अशिष्टता न कीजिये! (30) ईमानदारी का परित्याग न करें। (31) खाद्य समस्या और उसका हल। (32) आहार में असंयम न बरतें। (33) सन्तान की संख्या न बढ़ाइये। (34) गन्दगी की घृणित असभ्यता। (35) शाकाहारी व्यंजन। (36) व्यायाम- हमारी एक अनिवार्य आवश्यकता। (37) वृक्षारोपण- एक पुनीत पुण्य। (38) शाक उगायें, अन्न बचायें। (39) पुस्तकालय- सच्चे देवालय। (40) निरक्षरता का कलंक धो दिया जाय। (41) परिवार को सुसंस्कृत कैसे बनायें? (42) हम सच्चे अर्थों में आस्तिक बनें। (43) संस्कारों की परम्परा। (44) पर्व और त्योहारों से प्रेरणा ग्रहण करें। (45) लोक-निर्माण के लिये जन-गायन। (46) विवाह-दिवसोत्सव कैसे मनावें? (47) जन्म-दिवसोत्सव इस तरह मनावें। (48) गायत्री-यज्ञों की विधि-व्यवस्था। (49) गायत्री-यज्ञों की विधि-व्याख्या। (50) प्रबुद्ध व्यक्ति धर्मतन्त्र संभालें। (51) सत्कार्यों का अभिनन्दन किया जाय। (52) पुंसवन संस्कार विवेचन। (53) नामकरण संस्कार विवेचन। (54) अन्नप्राशन संस्कार विवेचन। (55) चूड़ाकर्म विवेचन। (56) विद्यारम्भ संस्कार विवेचन। (57) यज्ञोपवीत संस्कार विवेचन। (58) विवाह संस्कार विवेचन। (59) वानप्रस्थ विवेचन। (60) अन्त्येष्टि संस्कार विवेचन। (61) मरणोत्तर संस्कार विवेचन। (62) बाल-विवाह की भयंकरता से समाज को बचाया जाय। (63) बच्चों को सद्गुणी कैसे बनायें? (64) छात्रों का निर्माण अध्यापक करें। (65) हरिजन उत्कर्ष के लिये बड़े कदम उठें। (66) नारी उत्थान के लिये महिलायें आगे आवें। (67) पशु-बलि हिन्दू धर्म का कलंक। (68) नव-निर्माण के लिये जन-सम्मेलन। (69) विधवा विवाह शास्त्र विरुद्ध नहीं। (70) क्या मनुष्य पशु-पक्षियों से भी गिरा रहेगा। (71) खाया कैसे जाय? (72) शरीर को स्वस्थ रखिये। (73) आरोग्य का आधार शारीरिक श्रम। (74) कपड़ों से जकड़े न रहिये। (75) ब्रह्मचर्य- जीवन की अनिवार्य आवश्यकता। (76) सर्वोपयोगी सरल व्यायाम। (77) स्वस्थ रहना है तो यह खाइये। (78) कब्ज से कैसे बचें और कैसे छूटें? (79) श्वास सही तरीके से लीजिये। (80) दूध पियें तो इस तरह। (81) उत्कृष्ट और परिकृष्ट जीवन। (82) मन की तुष्टि आत्मा की दुर्गति। (83) मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। (84) अपने दोषों को ढूंढ़े और निकालें। (85) मरने से डरना क्या? (86) कलात्मक जीवन जियें। (87) जिंदगी हँसते-खेलते जियें। (88) सुखी इस तरह रहा जा सकता है। (89) जीवन श्रेष्ठ व सार्थक बनें। (90) जीवन लक्ष्य भुला न दिया जाय। (91) सन्तोषी सर्वदा सुखी। (92) मत असन्तुष्ट रहिये, मत खिन्न हूजिये। (93) कामना और वासना की मर्यादा। (94) अपना दृष्टिकोण बदलें। (95) असन्तोष की आग में यों न जलें। (96) धन्योगृहस्थाश्रमः। (97) परिवार को सुसंस्कार बनायें। (98) परिवार का पालन ही नहीं निर्माण भी। (99) सुखी और सफल दाम्पत्य जीवन। (100) दाम्पत्य जीवन में स्वर्ग का अवतरण। (101) क्या नारी इस दुर्दशा में पड़ी रहेगी? (102) सुयोग्य नारी-सुख गृहस्थ (103) पुत्र की कामना से उद्विग्न क्यों? (104) धन का उपार्जन और उपयोग। (105) मित्रता क्यों, कैसे और किससे? (106) स्वाध्याय में प्रमाद न करें। (107) बोलिये तो पर इस तरह। (108) बच्चों का भावनात्मक विकास। (110) बच्चों का प्रशिक्षण घर की पाठशाला में। (111) चरित्र का निर्माण सबसे बड़ा निर्माण। (112) सद्गुण बढ़ायें सुसंस्कृत बनें। (113) व्यक्तिवाद नहीं- समूहवाद। (114) परोपकारी और सेवाभावी बनिये। (115) स्वार्थ और परमार्थ का समन्वय। (116) अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा। (117) पहले अपने को सुधारें। (118) उद्धरेदात्मनात्मानम्। (119) संयम हमारी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता। (120) मनोबल की चमत्कारी शक्ति (121) अनर्थकारी गलत-फहमियों से बचे रहें। (122) धैर्य सब सफलताओं का मूल है। (123) ज्ञान-योग की साधना। (124) कर्म-योग की रीति-नीति। (125) भक्ति-योग का वास्तविक स्वरूप। (126) प्रेम ही परमेश्वर है। (127) उपासना जीवन की अनिवार्य आवश्यकता। (128) हम ईश्वर से विमुख न हों। (129) गृहस्थ एक योग साधना। (130) आत्मा की पुकार अनसुनी न करें। (131) हम सशक्त और साहसी बनें। (132) सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है। (133) जो करें मन लगाकर करें। (134) आराम नहीं, काम कीजिये। (135) विनोद और उल्लास की प्रवृत्तियाँ। (136) मित्रता करें पर समझ-बूझ कर। (137) बचत ही आपकी असल आय है। (138) उतावली न करें-उद्विग्न न हों (139) दूसरों के दोष-दुर्गुण ही न देखा करें। (140) प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उद्विग्न न हों? (141) कठिनाइयों से डरिये नहीं- लड़िये। (142) निराशा को पास न फटकने दें। (143) आवेशग्रस्त होने की अपार हानि। (144) विचारों की उत्कृष्टता प्रगति का मूल मंत्र (145) मानसिक स्थिति का स्वास्थ्य पर प्रभाव। (146) न डरिये न अशांत हूजिये। (147) अहंकार में डूब मत जाना (148) सज्जनता की राह। (149) हम दुर्बल नहीं, शक्तिशाली बनें। (150) धर्म-रक्षा से आत्म-रक्षा होगी। (151) मर्यादाओं का उल्लंघन न करें। (152) समय का सदुपयोग करें। (153) हम सुख शान्ति से वंचित क्यों हैं? (154) सशक्त दीर्घजीवन का राजमार्ग। (155) अपूर्णता से पूर्णता की ओर (156) काम आयेंगे अपने ही हाथ। (157) विद्या की सम्पत्ति निरन्तर बढ़ाते रहें। (158) अपना उत्साह शिथिल न होने दें। (159) टोना टोटका, जन्तर मन्तर (160) जीतता है सत्य ही, असत्य नहीं। (161) बच्चों का निर्माण घर की पाठशाला (162) उत्तम साहित्य से संपर्क स्थापित कीजिये। (163) अति भावुकता से सावधान (164) उच्च शिक्षित कन्या की विवाह समस्या (165) झूठी आलोचना से परेशान न रहें। (166) वे गरीब बच्चे महान बनें? (167) अपनी आर्थिक स्थिति डगमगाये मत। (168) प्रशंसा की सृजन शक्ति से आश्चर्यजनक सुधार। भोला पुस्तकालय अमृत कलश। (170) ज्ञान-यज्ञ का उद्देश्य और स्वरूप (171) गोरस बेचना हरिमिलन एक पन्थ दो काज। (172) मनुष्य में देवत्व।
कविता और कहानियों की नई ट्रैक्ट माला
इन पुस्तिकाओं के पृष्ठ ट्रैक्टों की अपेक्षा अधिक हैं। उसी अनुपात से इनका मूल्य भी अधिक रखा गया है। इन पुस्तिकाओं का मूल्य 40-40 पैसा है। 12 कहानियों और 7 कविताओं के कुल 19 ट्रैक्ट इस सीरीज में इस वर्ष छपे हैं।
12 कहानी ट्रैक्ट- 1. समाधि द्वीप, 2. ज्योति बुझती नहीं 3. प्रकाश की ओर 4. भगवान के दरबार में 5. एक थे राजा 6. प्रेरणाप्रद कथा गाथायें, 7. सौम्यवाद, 8. अविस्मरणीय संस्मरण, भाग-1, 9. अविस्मरणीय संस्मरण भाग-2, 10. अविस्मरणीय संस्मरण भाग-3, 11. सन्त समागम, 12. प्रेम-प्रसंग।
8. कविता ट्रैक्ट-
1. ज्योति किरण 2. नवयुग का नया निर्माण 3. अपना दीप जलाओ 4. अभिवन्दना 5. अभिव्यंजना 6. युग निमन्त्रण 7. मंगल किरण 8. अवतार कथा।
जीवन चरित्र की ट्रैक्ट माला
युग-निर्माण योजना का उद्देश्य राष्ट्र की भावी पीढ़ी को सशक्त, समर्थ और विचारवान बनाना है। यह तेजस्विता महापुरुषों की जीवन शैलियों के अनुसरण से सम्भव होती है। अब तक सीरीज में बत्तीस ट्रैक्ट छप चुके हैं, इन पुस्तिकाओं का मूल्य 40-40 पैसा रखा गया है।
1. जगद्गुरु शंकराचार्य 2. स्वामी विवेकानन्द 3. महावीर स्वामी 4. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर 5. महर्षि कर्वे 6. ठक्कर बाबा, 7. महापुरुष लेनिन 8. महर्षि कार्लमार्क्स 9. पवित्रात्मा बहा 10. ठाकुर दयानन्द 11. महाप्रभु चैतन्य 12. स्वामी केशवानन्द 13. प्रभु जगद्बन्धु 14. महात्मा एण्ड्रूज 15. अब्राहम लिंकन 16. केशव चन्द्र सेन 17. राजा राम मोहनराय 18. गोपाल कृष्ण गोखले 19. श्रीमती ऐनी बेसेन्ट 20. रामकृष्ण परमहंस 21. महायोगी अरविन्द 22. दादाभाई नौरोजी 23. सन्त कबीर 24. महारानी अहिल्याबाई 25. गुरु गोविन्द सिंह 26. टोयोहिको कागावा 27. वीर शिवाजी 28. दुर्गादास 29. महात्मा फ्रांसिस 30. स्वामी सहजानन्द 31. वीर सावरकर 32. सिस्टर निवेदिता।
इन पुस्तकों का मूल्य लागत से थोड़ा ही अधिक रखा गया है। इसलिए कमीशन देना सम्भव नहीं रहा। डाक व्यय में राहत देने के लिए 10 रु. कीमत से अधिक की पुस्तकों पर 15 प्रतिशत कमीशन दिया जाता है। 100 रु. से अधिक की पुस्तकें मंगाने पर 25 प्रतिशत अधिकतम कमीशन देने की व्यवस्था है। पर डाक व्यय हर स्थिति में मंगाने वाले को ही देना पड़ता है। बड़े आर्डरों के साथ 10 रु. पेशगी और समीपवर्ती रेलवे स्टेशन का नाम लिखना आवश्यक है।
*समाप्त*