Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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स्वप्नों में छिपी जीवन की गहराइयाँ
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प्रातःकाल उठकर राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने प्रातः क्रियायें सम्पन्न कीं, नाश्ता किया और उसके बाद ही अपने राजोद्यान में भ्रमण पर जाने की अपेक्षा अपने जीवनी लेखक वार्ड लेमन को फोन करके तुरन्त व्हाइट हाउस (अमरीका का राष्ट्रपति भवन) पहुँचने का आग्रह किया। उनकी गंभीरता यह बता रही थी कि आज कुछ विशेष बात हुई है पर क्या? यह अभी तक भी अज्ञात था।
वार्ड लेमन के आते ही राष्ट्रपति लिंकन ने पूछा- “क्या आपको स्वप्नों की सच्चाई पर विश्वास है, यदि नहीं तो आइये और सुनिये मैंने आज एक विचित्र स्वप्न देखा है। और मुझे न मालूम क्यों यह विश्वास सा हो गया है कि यह स्वप्न न होकर किसी देव-शक्ति का दिया हुआ सत्य-संदेश है” इसके बाद राष्ट्रपति उस रात को देखा वह ऐतिहासिक स्वप्न सुनाने लगे जो आज तक भी उनके जीवन-प्रसंग में जुड़ा हुआ हर पाठक से प्रश्न किया करता है- स्वप्नों में सचाई का रहस्य क्या है- स्वप्नों के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाली सत्य-घटनाओं की सूचना कौन देता है?
राष्ट्रपति कहने लगे-मैं व्हाइट हाउस के प्रत्येक कक्ष में घूमा पर मुझे सब कमरे खाली और सूनेपन से घिरे दिखाई दिये, तभी पूर्वी भाग से कुछ लोगों के रोने की ध्वनि सुनाई दी मैं उधर पहुँचा तो देखा कि बहुत से लोग एक शव को घेरे खड़े रो रहे हैं इनमें मेरे परिवार के सभी लोग, मित्र स्वजन सम्बन्धी भी हैं और दूसरे राजनयिक भी। कौतूहलवश मैंने पूछा क्या बात है? यह शव किसका है?- एक आकृति ने मेरी और देखकर कहा-राष्ट्रपति की हत्या कर दी गई है यह शव उन्हीं का है-यह आखिरी दृश्य था नींद टूट गई पर मुझे लगता है इस स्वप्न का मेरे जीवन से कोई घनिष्ठ सम्बन्ध है।
वार्ड लेमन ने घटना “शॉर्टहैंड” में नोट तो कर ली पर राष्ट्रपति के इस अन्ध-विश्वास जैसे प्रसंग पर वे हँसे बिना न रह सके। राष्ट्रपति लिंकन का ध्यान बँटाने के लिये वे इधर-उधर की बातें करते रहे पर लिंकन का मन उस दिन किन्हीं और बातों में लगा ही नहीं। इतिहास प्रसिद्ध घटना है कि इस स्वप्न के 3-4 दिन पश्चात् ही लिंकन की ठीक इन्हीं परिस्थितियों में हत्या कर दी गई जैसी की उनने स्वप्न में देखी थी। तब से आज तक यह प्रसंग राष्ट्रपति की जीवनी के साथ जुड़ा हुआ है पर आज तक भी उसकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं हो सकी।
स्वप्नों में इन्द्रियातीत अनुभूति और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास के लिये अमरीका के एक कर्नल की धर्मपत्नी श्रीमती नाडियन डोरिस बहुत प्रसिद्ध हुई हैं। इंग्लैण्ड के अनेक मनोविज्ञान शास्त्री और वैज्ञानिकों के सम्मिलित सहयोग से बनी “सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च” लंदन को दिये गये अपने एक बयान, जो “आई हैव नो च्वाइस” शीर्षक से छपा, में श्रीमती डोरिस ने एक भविष्य सूचक स्वप्न का विवरण देते हुए लिखा है-
उन दिनों मैं बहुत परेशान रहा करती थी और चाहती थी कि मुझे कोई ऐसा जीवन-साथी मिल जाये जिसके साथ मैं सुखद दाम्पत्य जीवन बिता सकूँ। रात सोई तो मुझे स्वप्न में दिखाई दिया कि मेरे आस-पास बहुत से लोग खड़े हैं तभी फोन की घंटी बजी, फोन पर किसी ने बताया कि मैं अमुक व्यक्ति हूँ और आपसे शादी का प्रस्ताव कर रहा हूँ मैंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वहाँ उपस्थित सब लोगों को निमंत्रण भी दे दिया। इस तरह स्वप्न का पटाक्षेप हो गया।”
जागने पर मुझे बहुत हँसी आई और सोचने लगी कि फ्रायड का यह कथन- “स्वप्न अचेतन इच्छा तुष्टि है, मन दिन भर इच्छायें करता है पर साँसारिक परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं कि हर इच्छा की पूर्ति नहीं होती। यह दमित इच्छायें ही स्वप्न में अपनी काल्पनिक रचना द्वारा तुष्टि प्राप्त करना चाहती हैं”। कोई असत्य नहीं है पर उस दिन शेष जो घटनायें घटीं उन्होंने मुझे तुरन्त अपने विचार बदलने को विवश कर दिया और अब मैं यह मानती हूँ कि स्वप्न केवल दमित वासनाओं का काल्पनिक चित्रण मात्र नहीं वरन् उनमें जीवन की गहराइयाँ भी छिपी हुई हैं और यदि उन गुत्थियों का रहस्य ढूंढ़ा जा सके तो मनुष्य जीवन से सम्बन्धित अनेक दुरूह प्रश्नों का भी समाधान निकाला जा सकता है।
हुआ यह कि उस दिन मेरे कई परिचित मित्र और सहेलियाँ घर मिलने आये अभी हम उनसे बातचीत कर ही रहे थे कि किसी ने फोन पर बुलाया। इसके बाद जो-जो घटित हुआ वह जब रात को देखे स्वप्न का अक्षरशः सत्य स्वरूप था। मुझे सब कुछ स्वप्न में कैसे मालूम हो गया था मैं इसे आज तक नहीं जान पाई। जब भी विवाह की वर्षगाँठ आती है यह स्वप्न मुझे मनुष्य जीवन के सत्यों की शोध को प्रेरित करता है पर मैं अपने को उसके लिये विवश ही पाती हूँ।
ऐसे स्वप्न जिन्होंने अपनी सत्यता के ऐतिहासिक पृष्ठ खोले हैं एक सुविस्तृत शृंखला है। शेक्सपियर ने जूलियस सीजर नाटक में सम्राट सीजर के स्वप्न को यथावत चित्रित किया है। सीजर की पत्नी कार्नीलिया को अपने पति की हत्या का पूर्वाभास स्वप्न में हो गया था, इसलिये उस दिन उसने पूरा जोर लगाकर सीजर को राज-दरबार जाने से रोका था पर सीजर को स्वप्नों पर विश्वास नहीं था इसलिये उसने बात नहीं मानी थी और उसी का परिणाम था कि वह दरबार गया और उसी दिन उसकी हत्या करा दी गई। सम्राट क्रीसस ने अपने पुत्र एथिस की हत्या का दृश्य स्वप्न में ही देख लिया था। एलियस होवे को सिलाई की मशीन बनाने का पूर्वाभास स्वप्न में ही हुआ था। कहते हैं कि गान्धी जी को अपनी मृत्यु की बात स्वप्न में ही कई दिन पूर्व ही मालूम हो गई थी। ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन के इन प्रसंगों को देखकर ही “विजडम आफ ओवर सेल्फ” पुस्तक में “पाल ब्रन्टन” ने लिखा है-विज्ञान ओर बुद्धिवादी लोग भले ही इसे रूढ़िवाद या केवल मानसिक कल्पना कहें- पर स्वप्न जीवन के कोई गम्भीर अध्याय हैं उनके विश्लेषण द्वारा आत्मा के गहन रहस्यों तक पहुँचने में बड़ी मदद मिल सकती है।
कोई मनुष्य निरन्तर जागृत नहीं रह सकता। यदि किसी को सोने न दिया जाये तो वह मर जायेगा। मनुष्य जीवन का एक तिहाई भाग निद्रा में व्यतीत करता है। निद्रा का अधिकाँश भाग स्वप्नों से घिरा होता है। इससे पता चलता है कि अचेतन अवस्था जीवनी शक्ति का स्रोत है, पर उस समय भी चेतना का अस्तित्व बना रहता है। अर्थात् वह पदार्थ नहीं हो जाती। यही वह प्रकाश था जिसने भारतीय तत्वदर्शियों को पुनर्जन्म और लोकोत्तर जीवन के बीच के रहस्यों को जानने का द्वार खोला।
स्वप्न की स्थिति में मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। नाड़ी की गति मध्यम हो जाती है रक्त परिभ्रमण धीमा पड़ जाता है। सम्पूर्ण इन्द्रियाँ धीमी पड़ जाती हैं। हृदय की धड़कन और फेफड़ों द्वारा रक्त शुद्धि का कार्य भी जारी रहता है पर विचार शिथिल हो जाते हैं। देखने, सुनने, सूँघने, स्पर्श करने, चखने आदि की शक्ति नहीं रह जाती पर स्वप्न अवस्था में यह सारी क्रियायें इन्द्रियातीत अवस्था में अनुभव होती रहती हैं। मनुष्य सामान्य निद्रावस्था में भी जबकि उसके शरीर पर कोई बाहरी दबाव नहीं पड़ रहा होता तब भी उसे जीवित शरीर के से दृश्यों का अनुभव होता है उससे यह प्रमाणित होता है कि शास्त्रकारों के यह कथन ही प्रमाणित होते हैं-
जाग्रत्स्वप्न दशाभेदों न स्थिरास्थिरते बिना।
समः सदैव सर्वत्र समस्तोष्नुभवोऽनयोः॥
-योगवशिष्ठ 4।19।11
अर्थात्- जागृत और स्वप्न में कोई अन्तर नहीं है जागृत के अनुभव स्थिर और स्वप्न के अस्थिर प्रतीत होते हैं पर-
“यथोदित तथा तत्र तद् दृश्यं खात्मकंस्यितम्”
-योगवशिष्ठ 6।2।62।27
अर्थात्- यह सब चिद्काश अर्थात् मूल चेतना का ही विकास है।
स्वप्न यों अस्थिर दिखता है पर जीवन भी अस्थिर ही तो है। स्वप्न में जैसे थोड़ी देर के लिए हम सूक्ष्म और विराट अदृश्य और भविष्य के दृश्य सत्य-सत्य देख लेते हैं पर जागृत में वह कभी सत्य कभी असत्य प्रतीत होते हैं उसी प्रकार यह संसार है हम जब तक बाह्य व्यवहार से बंधे हैं; तब तक सब कुछ असत्य होकर भी सत्य दीखता है पर वस्तु स्थिति का पता तो तभी चलता है जब चेतना स्वप्न जैसी मूल स्थिति में आती है इसलिये स्वप्नों का मनुष्य जीवन में बड़ा भारी महत्व है। स्वप्न में जिस प्रकार मनुष्य को चेष्टायें काम करती रहती हैं उसी प्रकार लोकोत्तर जीवन में अर्थात् आत्मा अमर है। यदि हम उसे जीवित अवस्था में ही जान लें तो विराट् चेतना की सर्वदर्शी, सर्वव्यापकता, सर्व ज्ञाता के वह सभी गुण अपने अन्दर विकसित कर सकते हैं जो स्वप्नों में थोड़े समय के लिये और बहुत अस्पष्ट छाया-चित्र से दिखाई देते हैं।
भविष्य सूचक स्वप्नों का विश्लेषण करते समय देखा गया है कि मनुष्य शारीरिक दबाव, रोग, अपवित्रता की स्थिति में भयानक और दुखाँत स्वप्न देखता है पर वह जितना अधिक शुद्ध और पवित्र होता है उसके स्वप्न उतने ही स्पष्ट, सुखद और भविष्य के गूढ रहस्यों को भी स्पष्ट ध्वनि देने वाले होते हैं इससे यह भी प्रमाणित होता है कि चिदाकाश अर्थात् आत्मा या मूल चेतना नितान्त शुद्ध और पवित्र है। उस अवस्था की एक क्षणिक झलक से यदि जीवन के किसी महत्वपूर्ण भाग का दृश्य दिख सकता है तो अपना जीवन नितान्त शुद्ध और भौतिक कामनाओं से हटाकर ही सारे जीवन के दृश्यों का पूर्वाभास पाया जा सकता है। यही नहीं प्रगाढ़ निद्रा में भी मनुष्य जागृत अवस्था से भी अधिक बढ़कर दूसरे लोगों को सन्देश और प्रेरणायें देने के पारमार्थिक कार्य कर सकता है। जिस दिन वीर शिवाजी सायस्ता खाँ से अस्त्र रहित भेंट करने वाले थे उस दिन रात में समर्थ गुरु रामदास ने स्वप्न में ही उन्हें बता दिया था कि सायस्ता खाँ छल करेगा। तभी शिवाजी वधनख लेकर गये थे और सायस्ता खाँ जैसे अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति को ढेर कर दिया था। इसी तरह की अतीन्द्रिय प्रेरणा द्वारा महर्षि अरविंद ने फ्रान्स से श्रीयज्ञ-शिखा माँ और विवेकानन्द ने आयरलैण्ड से नोकुल मार्गरेट को प्रेरणा देकर बुलाया था।
स्वप्न जीवन की गहराइयों के मापक और उत्प्रेरक सत्य हो सकते हैं यदि हम उन्हें गम्भीर दृष्टि से देखें और उनकी स्पष्टता के लिये अपना जीवन शुद्ध बनायें।