Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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दस आवश्यक सूचनायें- जो नोट कर ली जायें।
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अखण्ड-ज्योति हमारे उद्गारों, अनुभवों, निष्कर्षों, अनुरोधों एवं निर्देशों को परिजनों तक पहुँचाने का प्रधान माध्यम है। हमें सुनने, समझने में जिन्हें दिलचस्पी है उन्हें अखण्ड-ज्योति को स्वयं पढ़ने तक ही सीमित न रह जाना चाहिए वरन् उसका कार्यक्षेत्र आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयत्नशील होना चाहिए। अगले वर्ष पत्रिका के सदस्य अधिक बढ़ सकें इसके लिए हम में से प्रत्येक को विशेष रूप से उत्साह एवं पुरुषार्थ करना चाहिए।
उत्साही परिजन अपने यहाँ के पुराने सदस्यों से चन्दा वसूल करें तथा टोली बनाकर नये सदस्य बनाने निकलें। सबका पैसा इकट्ठा करके-ग्राहकों के पूरे पते वाली लिस्ट के साथ इसी मास मथुरा भेज देनी चाहिए, ताकि सदस्य संख्या के अनुरूप ही पत्रिका छपना सम्भव हो सके। मनीआर्डर अक्सर बहुत देर से पहुँचते हैं इसलिए बैंक ड्राफ्ट से भेजना सस्ता भी पड़ता है और अच्छा भी रहता है। इससे अनावश्यक विलम्ब नहीं होता। ग्राहक बनाने के लिए रसीद बहियाँ छपाई गई हैं। प्रत्येक में 10-10 पन्ने हैं। जितनी रसीद बहियाँ आवश्यक हों मँगा लेनी चाहिए।
पत्रिका का स्तर जब से ऊँचा हुआ है तब से अंकों के बीच में ही गुम होने की शिकायतें बढ़ गई है। वो पत्र आते ही दुबारा भेजते रहते हैं पर अच्छा उपाय यह है कि जहाँ 10 से अधिक पत्रिकाएं जाती हों वहाँ इकट्ठी ही डाक पार्सल से मँगाई जायं। इसमें मँगाने वाले को घर-घर पहुँचाने का झंझट तो उठाना पड़ेगा और हमें भी हर पार्सल पर 1) अतिरिक्त रजिस्ट्री खर्च देना पड़ेगा, इतना होते हुए भी खोने की शिकायत दूर हो जायगी। जहाँ 10 से अधिक सदस्य हों ऐसी ही व्यवस्था बनाई जाय। 50 से अधिक सदस्य हों तो रेलवे पार्सल मँगाना ठीक रहता है। ऐसी दशा में अपने पास के रेलवे स्टेशन तथा रेलवे लाइन का उल्लेख भी करना चाहिए।
जिनके चन्दे के बीच के किसी महीने में समाप्त होते है उन्हें अगले वर्ष के शेष महीने के पैसे भी भेजकर जनवरी से दिसम्बर का हिसाब पूरा कर लेना चाहिए इसी से हिसाब-किताब में तथा अंक समान संख्या में छापने की सुविधा रहती है।
1 जनवरी 71 से अखण्ड-ज्योति और युग-निर्माण पत्रिकाओं की पाठ्य सामग्री की सम्मिलित पत्रिका अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित होने जा रही है। (1) गुजराती युग-निर्माण योजना, (2) मराठी युग-निर्माण योजना, (3) उड़िया युग-निर्माण योजना छपना शुरू हो गई है। अँग्रेजी पत्रिका की तैयारी चल रही है। पृष्ठ संख्या अखण्ड-ज्योति के बराबर रहेगी। कागज सफेद ग्लेज बढ़िया लगेगा। कम संख्या में छपने तथा कागज बढ़िया लगाने से इसका मूल्य 1) बढ़ाना पड़ा है। 7) वार्षिक चन्दा इनमें से प्रत्येक पत्रिका का रहेगा। इन भाषाओं से सम्बन्धित प्रेमी पाठकों को अपनी भाषाओं की पत्रिकाओं के ग्राहक बढ़ाने का इस वर्ष भरपूर प्रयत्न करना चाहिए ताकि कम ग्राहक रह जाने के कारण संस्था को घाटा न देना पड़े।
युग-निर्माण योजना की पूरी रूपरेखा तथा रीति-नीति और भावी कार्य पद्धति ‘युग-निर्माण पत्रिका’ के अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर अंकों में है। इन तीनों अंकों को अखण्ड-ज्योति के प्रत्येक पाठक पाठक अवश्य पढ़ लें। स्वयं न मंगाने हों तो मंगाने वालों से माँगकर पढ़ लें ये अंक समाप्त हो गये है- अतः इन्हें अपने में ही मिलकर पढ़ावें।
युग-निर्माण विद्यालय का कला विभाग 1 जनवरी से आरम्भ होने जा रहा है। उसमें इस वर्ष केवल 20 छात्र लिये जा सकेंगे। पाठ्यक्रम 6 महीने का है। संगीत, वाद्य, गायन अभिनय, नृत्य, प्रकाश चित्र, प्रवचन एवं लोक-निर्माण की सर्वतोमुखी गतिविधियों का प्रशिक्षण इसमें रहेगा। जिन्हें इसी सम्बन्ध से अभिरुचि हो वे नियमावली तथा आवेदन पत्र मँगा लें। चूँकि प्रशिक्षण 1 जनवरी से आरम्भ हो जायगा। सीटें कम हैं। इसलिये जिन्हें इस प्रथम सत्र में सम्मिलित होना हो उन्हें जल्दी ही प्रवेश प्राप्त कर लेने की चेष्टा करनी चाहिए।
अब युग-निर्माण योजना और अखण्ड-ज्योति दोनों पत्रिकाओं का अलग-अलग सीमा विभाजन कर दिया गया है। युग-निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि से प्रकाशित होगी और उसमें मिशन की परम्परा, रीति-नीति तथा गतिविधियाँ घटनाएं तथा दिशाएं रहा करेंगी। सम्पादन अभी तो हम करते हैं पीछे उसे तपोभूमि के कार्यकर्त्ता सँभालेंगे। अखंड-ज्योति आध्यात्मिक पत्रिका रहेगी। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद, तत्व-दर्शन, आत्म-निर्माण, संजीवनी विद्या, प्रसुप्त शक्तियों का जागरण जैसे विषय उसमें रहेंगे। इसका प्रकाशन पूर्ववत् अखण्ड-ज्योति संस्थान, घीयामंडी मथुरा से होता रहेगा। सम्पादन माता भगवती देवी करेंगी। दोनों की अर्थ व्यवस्था तथा प्रकाशन प्रक्रिया भी अलग-अलग रहेगी। अस्तु संस्था सम्बन्धी पत्र व्यवहार, युग-निर्माण योजना का चन्दा तथा दान-अनुदान गायत्री तपोभूमि मथुरा के पते पर भेजने चाहिए। तथा अखण्ड-ज्योति का चन्दा एवं तत्सम्बन्धी पत्र व्यवहार घीयामंडी के पते पर करना चाहिये। दोनों पत्रिकाओं की ग्राहक लिस्ट तथा ड्राफ्ट आदि एक लिफाफे में बन्द तो किये जा सकते हैं पर होने अलग-अलग चाहिएं ताकि भिन्न स्थानों पर चल रही दो भिन्न व्यवस्थाओं में गड़बड़ी न पड़े।
हम अब लगातार 6 महीने बाहर रहेंगे। 2 नवम्बर से 2 मई तक प्रायः बाहर ही रहना होगा। प्रायः 50 विशाल कार्यक्रमों में लगभग 1 करोड़ जनता को अपना सन्देश इसी छमाही में पहुँचावेंगे। बीच-बीच में एक-एक, दो-दो दिन को ही मथुरा आना होगा। इसलिये हमारे निमित्त किया जाने वाला सारा आध्यात्मिक तथा वैयक्तिक परामर्श पत्र व्यवहार माता भगवती देवी से ही घीयामंडी के पते पर ही करना चाहिए। वे परिजनों के व्यक्तिगत उत्कर्ष में वैसी ही सहायता देती रहेंगी, जैसी कि अब तक हम देते रहे हैं। वस्तु स्थिति यह है कि अब हमारा प्रत्यक्ष सम्बन्ध परिवार से टूटा ही समझना चाहिये। 2 मई तक हम बाहर रहेंगे शेष मई में संस्था के अनेक उत्तरदायित्वों से मुक्त होंगे तथा भावी कार्य-पद्धति का स्पष्ट निर्धारण करेंगे। 3 जून को हमारी लड़की का विवाह है। 20 जून को हम सदा के लिए अपनी प्रचण्ड तपश्चर्या के लिए चले जायेंगे।
हमारा कार्यकाल अभी से समाप्त हुआ समझा जा सकता है। पर इतने बड़े परिवार को आध्यात्मिक सहयोग से वंचित नहीं किया जा सकता। हम जिस तप साधना के बल पर अब तक परिजनों को कठिनाइयों से बचाने और उत्कर्ष में सहयोग देने में समर्थ रहे हैं वह उत्तरदायित्व माताजी उठावेंगी। वे हरिद्वार, ऋषिकेश के बीच सप्त सरोवर के निकट “शान्तिकुँज” नामक साधना कक्ष में हमारी ही तरह अखण्ड दीपक पर 24 लक्ष गायत्री महापुरश्चरणों का क्रम चलावेंगी और उसी उपलब्धि के आधार पर परिवार की सेवा सहायता करने का क्रम पूर्ववत् जारी रखेंगी। बाप मर जाता है तो बच्चों को माता किसी प्रकार पाल लेती है। माँ मर जाय तो बाप के लिए छोटे बच्चे पालना कठिन पड़ता है। हम जा रहे हैं पर सारे परिवार की आत्मिक जिम्मेदारी माताजी के कन्धों पर छोड़े जा रहे हैं। हमें पूरा और पक्का विश्वास है कि वे हमसे कम नहीं कुछ अधिक ही प्रिय परिजनों को अपनी सन्तान से अधिक दुलार करने और भरपूर सहायता देने में समर्थ रहेंगी। उनकी इस सामर्थ्य को हम घटने न देंगे। कहीं भी रहकर उसे पूरा करते रहेंगे। अस्तु, परिजन अपने को निराश्रित न समझें। अपनी आवश्यकताओं के लिए अपना संपर्क उनसे अभी मथुरा बनाये रहें पीछे 20 जून के बाद ‘शान्तिकुंज’ सप्त सरोवर हरिद्वार के पते पर उनसे संपर्क रखा जा सकता है। यह हमारे संपर्क की आवश्यकता में रत्ती भी कमी अनुभव न होने देगा।
गायत्री तपोभूमि-युग-निर्माण योजना की व्यवस्था पं. लीलापत शर्मा सँभालते रहेंगे। संस्था के अनेक उत्तरदायित्व-पूर्ण विभागों का कार्य अन्यान्य बहुत ही सेवाभावी कार्यकर्त्ताओं को सौंप दिया है, यह टोली हमारे संस्था सम्बन्धी उत्तराधिकारों को ठीक तरह निबाहती रहेगी और संगठन तथा संस्था का काम ठीक तरह चलता रहेगा। चूँकि इस मिशन के पीछे भगवान की प्रत्यक्ष प्रेरणा काम करती है। परमेश्वर स्वरूप हमारे गुरुदेव उसके पीछे हैं और हम भी जहाँ भी रहेंगे वहीं से अपनी पैनी आँखें इस मानव जाति के भाग्य निर्णायक मिशन पर जमाये रहेंगे। इसलिये किसी को भी यह आशंका नहीं करनी चाहिए कि हमारे चले जाने के बाद मिशन लड़खड़ा जायगा सच तो यह है कि जिन सुयोग्य हाथों में यह मशाल सौंप रहे हैं वे कभी भी उसे बुझने न देंगे और अपने प्राण देकर भी उसे ज्वलन्त रखेंगे।