Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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युग परिवर्तन अत्यन्त सन्निकट
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अखण्ड-ज्योति सन् 1942 का जनवरी अंक “सतयुग अंक” था उसमें संसार के मूर्धन्य ग्रह-गणितज्ञों संतों और भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ छपी थीं जिनमें यह बताया गया था कि संसार में तीव्र उलट-फेर होने वाला है। सारी पृथ्वी में व्यापक हलचल होगी भयंकर युद्ध और रक्तपात होंगे और उस अशान्ति की, संकटपूर्ण परिस्थिति के भीतर से ही एक स्वर्णिम लालिमा का उदय होगा जो एक नये युग के सूर्य के रूप में छा जायेगी और संसार में आज जो भीषण परिस्थितियाँ दिखाई दे रही हैं उनका अन्त हो जायेगा उनके स्थान पर मानवीय सुख-शान्ति, सद्भाव, परस्पर प्रेम, दया, समता आदि सद्गुणों का विकास होगा। यही सतयुग या स्वर्गीय जीवन की रूपरेखा होगी। इसी अंक में छपी हुई महर्षि अरविन्द की भविष्यवाणी का एक अंश- “भारतवर्ष शीघ्र स्वतंत्र हो जायेगा काँग्रेस सत्तारूढ़ हो जायेगी पर वह अपने संचालक महात्मा गान्धी के आध्यात्मिक आदर्शों को भूल जायेगी। अभी जो नेता त्यागी और कष्ट सहिष्णु दिखाई देते हैं वे तब धन ऐश्वर्य और सत्ता के लालच में निकृष्ट व्यक्तियों जैसे कर्म करने लगेंगे। तब भारतीय प्रजा अपने अन्दर से ही किसी सच्चे गान्धीवादी लोक नेता के नेतृत्व में एक नई विचार क्रान्ति को जन्म देगी तब एक नये युग का आरम्भ होगा जो भारतीय प्रतिष्ठा को सारे विश्व में चमकाने वाला होगा।” इसी अंक के पृष्ठ 28 में महर्षि अरविन्द द्वारा 1918 में ही की गई भविष्यवाणी का एक अंश इस प्रकार छपा था- भारत में भारत को विपुल तथा विराट कार्य का भार अपने ऊपर लेकर खड़ा होना पड़ेगा, आगामी 40 वर्ष के भीतर संसार में विचित्र प्रकार का परिवर्तन होगा। सारी बातों में उलट-पुलट हो जायेगी। उसके बाद जो नया जगत तैयार होगा उसमें भारत की सभ्यता ही सभ्यता होगी।” इन बातों पर उस समय कितने ही तो हमारे पाठकों को ही विश्वास नहीं हुआ था। आशंका भरे पत्र आते थे पर जब 1947 में भारतवर्ष स्वतंत्र हो गया और काँग्रेस सत्तारूढ़ हो गई तो वही लोग आश्चर्य चकित रह गये। इधर 30 वर्षों में जो परिवर्तन हुए हैं उनसे भारतवर्ष का नक्शा ही बदल गया है पर वास्तविक स्थिति जो भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति के रूप में प्रतिष्ठित दिखायेगी अभी नहीं बन सकी है। उसके लिये अभी तक एक और बड़ी विचार क्रान्ति का सृजन हो रहा है उसके फलितार्थ भारत की राजनैतिक स्वाधीनता से कहीं अधिक आश्चर्यजनक होंगे। नया युग तेजी से दौड़ा आ रहा है सारे विश्व के अध्यात्म वेत्ता इस सम्बन्ध में पूर्णतया एकमत हैं। इंग्लैण्ड के प्रकाण्ड ज्योतिष शास्त्री प्रो. शेरो को कौन नहीं जानता उन्होंने महारानी विक्टोरिया की मृत्यु, जर्मनी से मित्र राष्ट्रों का युद्ध और हिटलर के पतन आदि की भविष्यवाणियाँ की थीं, तब की थी, जब वैसी कोई संभावना नहीं थी, पर वे पूर्ण सत्य निकली थीं। लार्ड किचनर के सम्बन्ध में सन् 1887 में ही उन्होंने लिखा था-वे सन् 1914 में किसी महायुद्ध का उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर उठायेंगे। इसी युद्ध में 66 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो जायेगी पर मृत्यु मैदान में न होकर समुद्र में डूबने से होगी अन्ततः यह भविष्यवाणी भी अक्षरशः सत्य हुई- 1925 में श्री शेरो ने एक पुस्तक लिखी-”वर्ल्ड प्रोडक्शन” इसमें की गई उनकी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ सच हुईं अब जो आगे होने को है वे इस प्रकार हैं- “सूर्य अपने स्थान से हट रहा प्रतीत होता है। उसका कारण पृथ्वी का अपनी धुरी से हटना है। पृथ्वी के अपने स्थान से हटने के कारण ध्रुवों की स्थिति में अन्तर पड़ेगा फलस्वरूप पृथ्वी की जलवायु में तीव्र परिवर्तन होंगे, शीत लहरों और बर्फीले तूफानों के साथ कहीं तो अति वृष्टि होगी कहीं सूखा पड़ेगा। समुद्र में कितने ही भाग डूब जायेंगे (धनुष्कोटि की तरह) कितने नये द्वीप निकल आयेंगे। तीव्र भूकम्प के कारण तुर्कों को भीषण धन-जन हानि का सामना करना पड़ेगा। वह किसी दिन भूकम्प के कारण पूरी तरह नष्ट हो सकता है। ईरान और लेबनान में भारी संकट होंगे। मिस्र और जोर्डन चैन से नहीं रह सकेंगे इनकी भूमि का बहुत सा हिस्सा निकल जायेगा। आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड, स्वीडन, नार्वे, डेन्मार्क, रूस, जर्मनी और फ्राँस के उत्तरी भाग भीषण रूप से ठंडे हो जायेंगे वहाँ लोगों का रहना कठिन होगा। इन परिवर्तनों से पूर्व एक बड़ा भयंकर युद्ध होगा इस युद्ध में संसार का बड़ा संहार होगा। सीमित जनसंख्या रह जायेगी। युद्ध और राजनैतिक कूटनीति से अलग रहकर ज्ञान-विज्ञान की उन्नति में ही अपने को तटस्थ रखने वाले लोग ही बचेंगे। इस संहार के कारण रहे बचे लोगों की विचारधारा पलट जायेगी और सत्य, प्रेम, न्याय के सिद्धान्तों का प्रचार होने लगेगा। राजनैतिक छल-प्रपंच समाप्त हो जायेंगे, विश्वव्यापी संघ की स्थापना होगी। परस्पर प्रेम भाव की वृद्धि होगी, सुख-शान्ति सुरक्षित रहेगी और सारे संसार में एक ही धर्म-मानव धर्म के रूप में विराजमान होगा।” चूँकि अपने मिशन का सीधा सम्बन्ध नये युग का ढाँचा तैयार करने और विश्व में मंगल प्रभात लाने वाली शक्ति से है, इसलिये अपनी निजी विचारधारा कभी नहीं दी तो भी उन भविष्य कथनों को हम बहुत लम्बे समय से छापते आ रहे हैं। जो लगभग हमारे विश्वास के ही समान होते हैं। उनकी विश्वस्तता का प्रमाण यही है कि भारत की स्वाधीनता के पूर्व से ही किया जा रहे अध्यात्म तत्व वेत्ताओं के अधिकाँश भविष्य कथन सत्य होते जा रहे हैं। प्रो. कीरो की ऊपर की भविष्यवाणी कितनी सच हो रही है, यह हम सब देख रहे हैं। सन् 1942 के इसी भविष्यवाणी अंक में श्री परमहंस राजनारायण जी षट शास्त्री ने मथुरा की कुण्डली बनाकर “मथुरा का भविष्य” नामक लेख भेजा था। लेख में श्री शास्त्री जी ने लिखा था- “यमुना नदी की आयु सं. 1992 से आगे 4538 वर्ष की है। उन्हें एक बार भगवान् कृष्ण के समय गंगा जी की तरह महत्व मिला था, पीछे लोग यमुना नदी, जो गंगाजी की सगी बहन के समान ही है, के महत्व को भूल गये पर अब शीघ्र ही फिर से हरिद्वार के स्थान पर ब्रजधाम सतयुग के तीर्थ बनेंगे। सारे भारतवर्ष का ध्यान इस पुण्य भूमि की ओर आकर्षित होगा, उसका कारण वहाँ किसी महान शक्ति का अभ्युदय होगा। पहले तो दिल्ली की खूब उन्नति होगी, पर उसके बाद मथुरा एक बार फिर से सारे राष्ट्र की विचारणा का केन्द्र बिन्दु बनेगा, मथुरा एक बार फिर से उन्नति के शिखर तक पहुँचेगी।” इस लेख का बहुत सा अंश ऐसा था जिसकी स्पष्ट यह ध्वनि हमसे और इस मिशन से सम्बन्ध व्यक्त करती थी, अतएव उस अंश को छापा नहीं गया था। थोड़ा ही अंश दिया गया था। इस अवधि में इस पुण्य भूमि में एक बार फिर से सहस्र कुण्डी यज्ञ सम्पन्न हुआ, वेद, उपनिषद्, दर्शन आदि आर्षग्रन्थों का प्रकाशन और प्रसार हुआ, यह सब बातें उपरोक्त भविष्य कथन की सत्यता सिद्ध करती हैं। जनलेखा विभाग की रिपोर्ट है कि पिछले दस वर्षों में मथुरा आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या निरन्तर बढ़ी है। जबकि आम लोगों की धारणा यह है कि लोग धर्म और आध्यात्मिकता को भूल रहे हैं, लोगों का आध्यात्मिकता के प्रति आग्रह बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि हमारे देश के आध्यात्मिक संस्कारों का तेजी से जागरण हो रहा है। श्री षट् शास्त्री जी की मथुरा सम्बन्धी कई भविष्यवाणी जो अभी तक प्रकाश में नहीं हैं, आगे प्रकट हों तो कोई आश्चर्य नहीं।
जार्ज बाबेरी जो मिस्र की गुप्त विद्याओं के प्रकाण्ड पण्डित और तान्त्रिक थे। उन्होंने भविष्यवाणी की थी-कि संसार को सतयुग का प्रकाश देने वाली आत्मा भारतवर्ष में जन्म ले चुकी है, पर उसका कार्य 1930 के आस-पास स्वतन्त्र रूप से विकसित होगा। 14 सितम्बर 1936 नये युग का प्रथम दिन होगा। उस दिन यह आत्मा अपने मनुष्य-भाव से निकल कर सत्ता भाव (अवतार रूप) में आ जायेगी और फिर हजारों अज्ञानग्रस्त मूढ़ लोगों के विरोध के बावजूद वह अपने प्रखर और प्रचंड रूप से प्रभाव में आयेगी और संसार को झकझोरती चली जायेगी। 1965 के बाद उसके स्वरूप की लोगों को स्पष्ट कल्पना होने लगेगी और सन् 1970 के बाद अधिकाँश भारत में अवतार अपने प्रकट रूप में आ जायेगा। इस बीच चौथे विश्व युद्ध की काट-छाँट चलती रहेगी। एक भयंकर ज्वाला के साथ यह महाविनाशकारी युद्ध होगा जिसमें आज के संसार की बड़ी-बड़ी सभ्यतायें इस तरह नष्ट हो जायेंगी, मानों वह कभी अस्तित्व में ही नहीं थीं। फिर भारतवर्ष अपनी तरह से संसार को व्यवस्था सम्भालेगा और संसार की सुख-शाँति की राह दिखायेगा।” पटना की “खुदाबख्श ऑरिएंटल लाइब्रेरी” में फारसी कसीदा (कविता) की पुस्तक है, जो बुखारा के सुप्रसिद्ध सन्त शाह नियामत उल्लाबल्ली साहब की लिखी हुई है। श्री बल्ली साहब की ख्याति जितनी एक सन्त के ईश्वर उपासक के रूप में है उससे अधिक एक भविष्यवक्ता के रूप में। शुद्ध चित्त में भावी जगत के चित्र फिल्म के पर्दे पर दिखाये जा रहे चल-चित्र कि तरह स्पष्ट और साफ उतरते चले आते हैं, यह बात श्री बल्ली साहब के जीवन से चरितार्थ हो जाती है। उन्होंने कभी क्रोध नहीं किया था, किसी जीव को सताया नहीं था, शराब और माँस वे किसी दिन आँख से देख लेते थे तो उस सम्पूर्ण दिन उपवास रखते थे और भगवान से प्रार्थना करते थे- हे प्रभु! ऐसी वस्तुयें संसार में न रहें ताकि लोग मार्ग से भ्रष्ट न हों? उनका सारा जीवन सच्चाई और नेक नीयती की प्रतिमूर्ति ही कहना चाहिये। इसीलिये उन्हें संसार का भविष्य अपने अन्तःकरण में इतना स्पष्ट उतरता दीख जाता था। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है- “जापान और रूस में युद्ध होगा” (1904 में रूस और जापान में युद्ध हुआ भी) जापान में भयंकर भूकम्प आयेगा (1923 में भूकम्प आया)। प्रथम विश्वयुद्ध में अलफ (अँग्रेज) जीम (जर्मनी) लड़ेंगे, उसमें अँगरेज जीतेंगे पर युद्ध में एक करोड़ इकत्तीस लाख व्यक्ति मारे जायेंगे (ब्रिटिश कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार सचमुच इस युद्ध में एक करोड़ तीस लाख लोगों की मृत्यु का विवरण दिया गया है) “दो जीम” (जर्मनी दो भागों में बँट गया) आपस में तनावपूर्ण स्थित में आ जायेंगे।” द्वितीय विश्वयुद्ध में बम विस्फोट की बात भी सच निकली और इस तरह उनकी एक भी भविष्यवाणी गलत नहीं हुई। भारत के प्रसंग में वही बल्ली साहब लिखते हैं- “मुसलमानों के हाथ से यह मुल्क विदेशियों के हाथ चला जायेगा। फिर हिन्दू-मुसलमान मिलकर उनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और विदेशी यहाँ से चले तो जायेंगे, पर हिन्दुस्तान को दो टुकड़ों में बाँट जायेंगे। दोनों दो देश बन जायेंगे और परस्पर शत्रुता इतनी बढ़ जायेगी कि दोनों में युद्ध का तनाव तब तक बना रहेगा जब तक मुसलमानी भूभाग पूरी तरह पराजित होकर फिर से भारत में नहीं मिल जायेगा। मुसलमानी भाग (पाकिस्तान) को जीतने वाला भारतीय सेनापति कोई मुसलमान ही होगा इसके बाद दोनों जातियाँ एक जाति की तरह घुल-मिल जायेंगी।”
“तृतीय विश्व युद्ध बड़ा भयंकर होगा। अमेरिका इसका प्रमुख दल होगा। चीन दूसरा घटक। इस युद्ध के बाद अँगरेज पूरी तरह समाप्त हो जायेंगे और ‘भारत का अभ्युदय एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में हो जायेगा। पर उसके लिये उसे बहुत कठोर संघर्ष करने पड़ेंगे। देखने में यह स्थिति कष्टकारक होगी, पर इस देश में एक फरिश्ता आयेगा जो हजारों छोटे-छोटे लोगों को इकट्ठा करके उनमें इतनी हिम्मत पैदा कर देगा कि वही नन्हें-नन्हें लोग तथाकथित भौतिकवादी लोगों से भिड़ जायेंगे और उनकी मान्यताओं को मिथ्या सिद्ध करके दिखा देंगे। इसके बाद संसार में सीधे-सच्चे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और अमन-चैन फैलती चली जायेगी।” चन्द्रमा पर मनुष्य की उड़ान और विषय से पूर्व ही जिन श्रीमती जीन डिक्सन ने भविष्यवाणी कर दी थी, उनकी इन भविष्यवाणियों को भी लोग सत्य होते देख चुके हैं- गाँधी जी और राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या कर दी जायेगी। इनके हत्यारे भी जिन्दा न रहेंगे। भारत का बँटवारा हो जायेगा। रूस और चीन में जंग छिड़ जायेगी। मिस्र और इजराइल में युद्ध होगा, हार अरबों की होगी। जहाँ यह भविष्य कथन सत्य हुये, वहाँ आगे इनके सत्य होने की प्रतीक्षा है- एक छोटी डेढ़ फुट मिसाइल का विकास होगा, जो छोटा शस्त्र होते हुये भी संसार के सबसे भयंकर आयुध वाली मारक क्षमता का होगा। रूस और चीन का युद्ध होगा उसमें अमरीका और रूस मित्र राष्ट्रों की तरह साथ-साथ लड़ेंगे। 1980 में विश्व युद्ध, रूस और चीन के युद्ध के फलस्वरूप ही भड़केगा जो जब तक हुये सभी युद्धों से विकराल होगा। जीन डिक्सन की इन भविष्यवाणियों से अधिक महत्वपूर्ण भविष्यवाणी- “एक ऐसी आत्मा का जन्म हो चुका है, जो संसार का कायाकल्प करेगी सम्प्रदायों की संकीर्णता मिटाकर एक ऐसे सार्वभौम विश्व-धर्म की स्थापना करेगी जो विश्व के हर नागरिक को मान्य होगा। 1980 के आस-पास होने वाले महा विनाशकारी युद्ध के समय भी इस मसीहा का कार्य धर्म स्थापना के रूप में चलता रहेगा और युद्ध के पश्चात् वह संसार का सर्व-समर्थ व्यक्ति बन जायेगा। आज तक समूचे विश्व को प्रभावित करने वाला इतिहास का कोई भी ऐसा व्यक्ति न हुआ होगा।” जीन डिक्सन का स्पष्ट संकेत यह भी था कि ऐसा महापुरुष भारतवर्ष के किसी साधारण परिवार में जन्मा है और वह अपनी गतिविधियाँ तेजी से चला रहा है। प्रसिद्ध भविष्यवक्ता एण्डरसन का भी यही मत है, अन्तर सिर्फ इतना है कि श्रीमती जीन डिक्सन ने इस महापुरुष का जन्म 1965 में माना है, जबकि एण्डरसन का कथन है कि 1965 तक तो महान विभूति अपनी आधी के लगभग मंजिल पूरी कर चुकी होगी। कल्कि पुराण और महाभारत आदि में निष्कलंक या कल्कि अवतार का जो समय दिया है, वह भी अभी पड़ता है। इन दोनों सम्भावनाओं को एक ही स्थान पर पाकर अमेरिकी अध्यात्मवादियों की इस संदर्भ में रुचि बढ़ी, फलस्वरूप वहाँ “कल्कि” अवतार की खोज के लिये एक समिति भी बनाई गई। एक अमरीकी छात्रा ने उसे अपना शोध विषय चुना है। इंग्लैण्ड आदि में जो प्रामाणिक प्रतिलिपियाँ हिन्दू ग्रन्थों की मिली हैं, उनके अनुसार इस समिति का भी विश्वास है कि कल्कि जन्म ले चुका है। 8 अक्टूबर के “अमेरिकन रिपोर्टर” के अनुसार यह समिति भारतवर्ष में रहकर कल्कि अवतार की विस्तृत खोज और जानकारी उपलब्ध करने में जुट गई है।
“इस युग के मसीहा और निष्कलंक” अवतार पर दक्षिण के प्रसिद्ध सन्त और भविष्यवक्ता रामन स्वामी अइय्यर के कथन अभी तक हुये भविष्य कथनों में से सबसे अधिक स्पष्ट हैं, श्री अइय्यर लिखते हैं- कल्कि न तो घोड़े पर चढ़ा हुआ आयेगा न तलवार लेकर, तो भी वह दोनों प्रतीक ही उनकी पहचान के माध्यम होंगे। घोड़ा शक्ति का प्रतीक है, उस पर कल्कि के आसीन होने का अर्थ है, कि वह इतना समर्थ व्यक्ति होगा कि “शक्ति” उसकी इच्छानुसार कार्य करेगी। राम ने अपनी शक्ति को हठात् रावण जैसे तान्त्रिक पर भी थोप दिया था कृष्ण अवतार थे क्योंकि उनकी शक्ति के आगे कौरव-पाण्डव तक थर्राते थे। अपने शुद्ध अहंकार तब अवतार का ही काम है और उनकी यही पहचान होती है कि संसार के शेष सभी बुद्धिमान से बुद्धिमान और बलवान् लोग भी उसकी शक्ति से नीचे पड़ जाते हैं। घोड़े का यही अर्थ है कि वह इतिहास का प्रबलतम शक्तिशाली व्यक्ति होगा। तलवार का अर्थ काटना है। शत्रु के सिर तो नहीं काटे जाते विचार भी काटे जाते हैं, कल्कि पुराण से भी प्रकट है कि कल्कि बौद्धों अर्थात् उन लोगों के बुद्धिवाद से युद्ध करेगा जो आज के युग में देखने में बहुत शिक्षित लगते हैं पर वे पदार्थ से परे कुछ सोच ही नहीं पाते। नास्तिकतावादी, भोगवादी, संचय और उपयोगितावादी व्यक्तियों की ऐसी मान्यताओं को जो विस्मार करेगा वही कल्कि होगा। श्री अइय्यर ने बताया है कि- ‘कल्कि का जन्म मथुरा के पास ही होगा।’ शम्भल का अर्थ चम्बल नदी के किसी तटवर्ती ग्राम से है। कार्य क्षेत्र उसका मथुरा होगा। उसके सहायक सभी प्रान्तों से आयेंगे। वह महान गायत्री उपासक और सावित्री तत्व ज्ञाता होगा। विचारों को विचारों से काटने की कला में वह अत्यधिक प्रवीण होगा। अब तक समाज में मान्यताएँ फैली हैं उनकी प्रतिस्थापनाएं दे सकने में केवल मात्र वही समर्थ होगा। दूसरे कई लोग अपने आपको अवतार कहेंगे वे थोड़े बहुत चमत्कार भी दिखायेंगे पर किसी प्रकार की रचना उनके वश की बात न होगी- इसलिये वे बरसाती कीड़ों की तरह निकलते और अपने आप नष्ट होते जायेंगे। जबकि कल्कि नामी महापुरुष सम्पूर्ण आर्ष ग्रन्थों के उद्धार से लेकर सामान्य जीवन तक की सारी रीति-नीति सम्बन्धी नये विचारों का सृजन करेगा पीछे इन्हीं विचारों का लोग अनुसरण करेंगे। वह गृहस्थ होगा। अतुल सम्पत्ति वाला होकर भी उसका रहन-सहन साधारण गृहस्थ जैसा होगा उसकी सम्पत्ति लोक-मंगल के लिये होगी। उसके इस आदर्श को उनके देशव्यापी अनुयायी भी अपनाकर एक ऐसा समर्थ संगठन तैयार करेंगे जो उसके दिये हुए विचारों को सारे विश्व में फैला देंगे। महिलायें उसकी विशेष सहायिकायें होंगी। वह अद्भुत स्वभाव वाला चमत्कारी व्यक्ति अपने जीवन के उत्तर काल में स्थान परिवर्तन करेगा। तब उसका रौद्र रूप प्रकट होगा। जब उसके भयंकर विचारों से लोग काँपने लगेंगे तब उसकी साध्वी पत्नी शासन-सूत्र सँभालेंगी फिर वह अपने अतुलित प्यार और स्नेह शक्ति से भूले भटकों को रास्ता दिखायेगी। भारतवर्ष विपुल उन्नति करेगा और उसका प्रभाव अमरीका और रूस पर भी छा जावेगा। यह दोनों देश भी उसके वैभव के आगे नगण्य जैसे होंगे। कल्कि होने का श्रेय जिसे मिलेगा यह परिस्थितियों और समय के लिये छोड़ दिया जाये। अवतारों को लोग उनके जीवन काल में ही पहचानते आये हैं सो उनकी पहचान न हो ऐसा सम्भव नहीं। वे भले ही कितना ही छुपकर रहें उजागर होंगे ही। पर इतना निश्चित है कि युग को पलट डालने वाली सत्ता का अवतरण हो चुका है वह अपने “यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानं धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्” संकल्प को पूरा करने न आती ऐसा कहाँ संभव है? यह अलग बात है कि कौन लोग उसका प्यार पाते हैं, कौन उसकी दाढ़ के नीचे पिसते हैं चलना सबको ही लोक-मंगल के पथ पर पड़ेगा। चाहे कोई इच्छा से चले या मजबूर करके चलाया जाये। युग परिवर्तन सृष्टि का अवश्यंभावी क्रम है और परिवर्तन का क्रम प्रारम्भ हो गया है यह दोनों ही बाते अकाट्य हैं। प्रोफेसर हरार के अनुसार “1965 से 1971 तक का समय युग परिवर्तन का प्रारम्भ काल होगा।”
श्रीमती जीन डिक्सन का विश्वास है “सन् 1999 तक तृतीय विश्व युद्ध और सभी भयंकर घटनायें हो लेंगी और नये युग का पूर्ण विकास भी हो जावेगा।” कीरो के अनुसार-
This Sign of Zodiac more immediately influenced as it is by the Planets Uranus and Saturn has in minds of ancient students of Occultism from true immemorial been associated with the idea of "New Age' and the complete change in the laws controlling Civilization. It was believed and understood that the Peculiar Vibrations caused by action of the sun retrograding through this Part of Zodiac would, so effect the minds of humanity that most astounding changes upheavals and revolution would follow in its train,The Aquarian or " New Age" has also been set down as the period when woman in the Order of upheaval revolution and change would appear on the worlds stage in completely new role.
सूर्य कुम्भ राशि पर प्रवेश कर गया है एक राशि को पारकर सूर्य अन्य राशि पर पदार्पण करता है तब युग बदलते हैं। इस संदर्भ में लिखे उपरोक्त कथन का हिन्दी रूपांतर- “सूर्य कुम्भ पर प्रवेश करता है तब बहुत तीव्र प्रभाव दिखाई देते हैं क्योंकि उसके ग्रह यूरेनस और शनि हैं। गूढ़ विद्याओं के प्राचीन ज्ञाता इनका सम्बन्ध “नये युग का शुभारम्भ” से मानते रहे हैं। शनि एक ओर तोड़-फोड़ विध्वंस करता है यूरेनस के प्रभाव से पुराने नियम कानून आमूल-चल बदल जाते हैं। सूर्य कुम्भ पर आता है तब बड़े आश्चर्यजनक परिवर्तन हलचल और क्रान्तियाँ उत्पन्न होती हैं इसलिये उसे नये युग का निर्माता ग्रह कहा जाता है इसके प्रभाव से स्त्रियाँ संसार में नये ही रूप में आती हैं।” सूर्य-मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, मीन, कुम्भ इन बारह राशियों में भ्रमण करता है तब प्रत्येक राशि का स्वामी अपना प्रभाव व्यक्त करता है। सूर्य एक राशि पार कर पूरी तरह दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है इस अवधि में 2150 वर्ष बीत जाते हैं इस प्रकार हर 2150 वर्ष बाद परिवर्तन होते हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार 1762 में सूर्य मीन राशि से हटकर कुम्भ राशि की ओर चल पड़ा था तभी से संसार की स्थिति में व्यापक हलचलें युद्ध परिवर्तन होते आ रहे हैं। “युग-क्षय” के अनुसार कलियुग से सतयुग के बीच 200 वर्षों की “सन्ध्या” होती है तदनुसार 1762+200=सन- 1962 (लगभग यही समय युग परिवर्तन की हलचल के लिए सभी भविष्यवक्ताओं ने दिया है। इसी अवधि में निर्माणकारी शक्तियों को तीव्र होना चाहिए) सो नये युग का सृजन प्रारम्भ हो जाता है। इस बीच चीन, जापान, तुर्की, मिश्र जैसे रूढ़िवादी देशों में भी स्त्रियों के तीव्र आन्दोलन और उनका पुरुषों के समानान्तर होने का संघर्ष कीरो की भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध करता है और यह निर्विवाद निष्कर्ष निकलता है कि नये युग का प्रारम्भ हो चुका है और अब उसका प्रसार होना शेष है। प्रसिद्ध भविष्यवक्ता पैरा सेल्सस, डेनियल, नास्टरडम, वेजीलेटिन तथा पादरी वेल्टर बेन सबका निश्चित मत है कि युग परिवर्तन इस शताब्दी की अन्तिम और सबसे जबर्दस्त घटना होगी। उसे रोकना किसी के लिए भी सम्भव न होगा। इन तत्वदर्शियों की कुछ भविष्यवाणियाँ बड़ी महत्वपूर्ण हैं। 1- 1999 में पूर्व के किसी देश से एक जबर्दस्त सेनापति आकाश मार्ग से योरोप की धरती पर उतरेगा उस समय युद्ध चल रहा होगा पर उसका यान किसी अज्ञात शक्ति से ढका हुआ (कवरिंग) होगा अतएव कोई भी मिसाइल उसे नष्ट नहीं कर सकेगी। पेरिस का पतन तभी होगा तथा दूसरे प्रबल पश्चिमी राष्ट्र जो अभी तक भी अपनी भौतिकवादी चाल पर चल रहे होंगे वह भी उस शक्ति से पराजित हो जावेंगे। -नास्टरडम
2- सारे संसार का शासन सूत्र एक स्थान से चलेगा, “एक भाषा होगी-एक संस्कृति” शहरों की संख्या बहुत थोड़ी रह जावेगी। संचार के साधनों का यहाँ तक विकास हो जावेगा कि लोग अपने मन की बात दूसरे लोगों तक बेतार के तार की तरह पहुँचा दिया करेंगे। -डेनियल 3- सतयुग का प्रारम्भ 25 वर्ष से कम आयु के बालकों से प्रारम्भ होगा। वृद्ध लोग रूढ़िवादी मान्यताएं छोड़ने को तैयार नहीं होंगे तब भारतवर्ष में एक ऐसे संत का जन्म होगा जो सारी दुनिया में विचारक्रान्ति खड़ी कर देगा। उसके प्रभाव में सैकड़ों लोग आ जावेंगे पर उनमें से मूढ़ मान्यताओं वाले लोग अपने को बदलने में लज्जा अनुभव करेंगे तब नयी पीढ़ी उसके विचारों को आत्म-सात करेगी और नया युग का शुभारम्भ करेगी। लोग आशावादी होंगे। छल, कपट, हत्या, लूटपाट का स्थान प्रेम, दया, त्याग, ईमानदारी, परोपकार और भाईचारे की भावनायें ग्रहण कर लेंगी। धर्म की स्थापना होगी और अधर्म का अन्त हो जावेगा। यह सब सन् 2000 तक स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। -हंगरी की महिला ज्योतिषी बोरिस्का सलविगर इस तरह संसार के सभी भविष्य वक्ता युग परिवर्तन के लिए आश्वस्त है। भारतीय आर्ष ग्रन्थों में तो पग-पग पर यह सूचनायें भरी पड़ी हैं। ततस्तुमुल संघाते वर्तमाने युगक्षये। द्विजाति पूर्वको लोकः क्रमेण प्रभविष्यति॥ दैवः कालान्तरेऽन्यास्मिन्युनर्लोकं विवृद्धये। भविष्यति पुनर्देवमनुकूलं यदृच्छया॥ यदाचन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिज्य बृहस्पति। एक राशौ समेष्यन्ति प्रपत्स्यति तदा कृतम्॥ काल वर्षी च पर्जन्यो नक्षत्राणि सुभानिच। क्षेम सुभिक्षमारोग्यं भविष्यति निरामयम्॥ -महाभारत वन पर्व 190।88, 89, 90, 91
वर्तमान युग के समाप्त होने के समय कठोर घटनायें घटेंगी। उत्तम वर्ण वाले लोगों की धीरे-धीरे उन्नति होने लगेगी। कुछ समय पश्चात् दैव की इच्छा से लोगों को सुखी और समुन्नत बनाने वाला समय फिर आ जायेगा। यह सतयुग तब प्रारम्भ होगा जब तिष्य में सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति तीनों एक राशि पर आ जाते हैं (यह स्थिति भी 1962 में बन चुकी है) उस समय वर्षा और प्रकृति अनुकूल हो जायेंगी, लोग स्वस्थ और प्रसन्न मन वाले हो जायेंगे। महात्मा सूरदास के शब्दों में- एक सहस्र नौ सौ के ऊपर ऐसा योग परे। सहस्र वर्ष लौं सतयुग बीते धर्म की बेल बढ़े॥ सन् 1900 के बाद फिर से सतयुग आ रहा है, उसमें सर्वत्र धर्म का प्रसार होगा। यदा देवर्षयः सप्त मघासु विचरन्तिहि। तदा प्रवृत्तस्नु कलिद्वदिशाब्द शतात्मकः॥ यदा मघाभ्यो यास्यन्ति पूर्वाषाढ़ा महर्षयः। तदा नन्दात् प्रभृत्येष कलिवृद्धिंगमिष्यति॥ यस्मिन कृष्णो दिवं यातस्तास्मिन्नेव तदाहनि। प्रतिपन्नं कलियुग भिति प्राहु पुराविदः॥ -भागवत् 2।31-32-33
भगवान् कृष्ण अपने धाम को पधारे, तब जबकि सप्त ऋषि पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में आ चुकेंगे तो 12 सौ वर्षों में कलियुग राजा नन्द के समय में समाप्त हो जायेगा। यह समय भी अभी होकर समाप्त हो रहा है। इस प्रकार कलियुग का अन्त होकर नये युग का आना शास्त्रीय दृष्टि से भी आवश्यक है, जो लोग यह मानते हैं कि कलियुग 432000 वर्षों का होता है और यह उसका प्रथम चरण है, उन्हें मनुस्मृति के प्रथम अध्याय में 67 से 70 तक के श्लोक देखने चाहिये जिनमें कलियुग से लेकर सतयुग तक की 4800, 3600, 2400 और 1200 वर्ष आयु लिखी है।
“माला बुद कब्लुत कमायत” नामक अरबी पुस्तक और मक्के के हमीदिया पुस्तकालय में रखी, “अल्कश्फ बल्कत्मफी मार्फत” पुस्तक के अनुसार भी अब 14वीं कमायत की सदी प्रारम्भ हो रही है। उनमें दिये सभी लक्षण प्रकट हो चुके हैं, उनके विश्वास के अनुसार अब तक ऐसी प्रलय होगी जिसमें मुसलिम सभ्यता का अन्त हो जायेगा। “इमामे आखिकज्जम्मा” के अनुसार उसके बाद एक फरिश्ता आयेगा वह फिर से बचे हुये लोगों को सत्य, धर्म और न्याय का मार्ग दिखाकर संसार को अच्छा बनायेगा। संसार के सभी भविष्यवक्ता सन्त-मनीषी और आर्ष ग्रन्थ स्पष्ट युग परिवर्तन की सूचना दे रहे हैं। राजनीति वेत्ता भी संसार की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर कहते हैं कि प्रलय जैसी स्थिति समीप ही है यदि तृतीय विश्व युद्ध हुआ तो संसार फिर से पत्थर युग में आ जायेगा अर्थात् सभ्यता का सृजन फिर से नये आदर्शों के अनुरूप होगा। अब तक की जड़ता नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगी और सर्वत्र स्वर्गीय परिस्थितियों का सूरज जगमगाने लगेगा। युग परिवर्तन निकट है, इसमें सन्देह नहीं। इस संक्रान्ति काल में हमारे भी कुछ कर्त्तव्य है। महाकाल अपनी इच्छा को मूर्त रूप देने के लिये प्रकट हो रहे हैं तो हमारा भी कर्त्तव्य है कि हम उनकी आकाँक्षा समझें और उनके उद्देश्य की पूर्ति में सहायक बनें। अवतार का उद्देश्य सदैव सत्प्रवृत्तियों का विकास होता है। अवतार समझ में न आये तो न सही पर उनकी प्रक्रियायें तो समझी ही जा सकती हैं, यदि वह समझ में आ जायें तो धर्म अध्यात्म और सत्प्रवृत्तियों के विकास के लिये त्याग, श्रम, सहयोग देकर अवतार का प्यार और आशीर्वाद पाया जाये, यदि नहीं और सन्मार्ग अच्छा न लगे तो अपने आपको महाकाल की दाढ़ में पिसने को भी मजबूत रखा जाये।