Magazine - Year 1971 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मनुष्य जीवन का अन्त कितना निकट
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
22 अप्रैल को अमेरिका के नवयुवकों ने सामूहिक रूप से “पृथ्वी दिवस” (अर्थ-डे) मनाया। उस दिन के लिये व्यापक तैयारी और कार्यक्रमों के प्रचार के लिये एक अखबार “अर्थ-टाइम्स” निकाला गया जिसमें उस दिन सामूहिक रूप से मोटर कार आदि यातायात के यान्त्रिक साधन छोड़ कर पैदल या ताँगे इक्के में चलने की अपील की गई। यों घेराव, हड़ताल नक्सल पन्थी आन्दोलनों के इस युग में आन्दोलन और प्रदर्शन मनुष्य समाज की सामान्य घटनाओं के रूप में गिने जाने लगे हैं पर यह आयोजन अपने आप में इतना महत्वपूर्ण एवं चौंकाने वाला है कि एक बार तो आधुनिक सभ्यता का अहर्निश गुणगान करने वालों को भी चक्कर आ गया। सारी दुनिया की पत्र-पत्रिकाओं ने इस अभूतपूर्व आयोजन और उससे सम्बन्धित भयंकर समस्या पर लेख और समाचार छापकर दुनिया का ध्यान इस प्रश्न पर विचार करने के लिये झकझोर कर आकर्षित किया-”आया आज की यान्त्रिक सभ्यता से उत्पन्न धुयें नहीं-नहीं जहर को रोका जाना चाहिये अथवा मनुष्य को उस दिशा में बढ़ने ही देना चाहिये जिधर रोग शोक और भयंकर बीमारियों में घुट-घुट कर प्राण देने के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता।”
यह समस्या क्या है ? इसे समझ लेना आवश्यक है। आजकल शहर, शहरों में कारखानों, मोटरों, कारों, रेलों, भट्टियों, चिमनियों आदि की संख्या तेजी से बढ़ रही है इनसे जो धुआँ निकलता है, वह इतना सघन होता जा रहा है कि बम छोड़े जायें या न छोड़ें जायें यह धुआँ ही एक दिन मनुष्य को घोंट कर मार देगा। अभी-अभी वैज्ञानिकों ने शोध करके बताया है कि धुयें की घुटन बर्दाश्त न कर सकने वाले कई पक्षियों की जातियाँ नष्ट हो गई और वे कुछ ही समय में लुप्त जन्तुओं की श्रेणी में चली गई। अभी यह स्थिति जीव-जन्तुओं के प्राणों पर आ बनी है कल मनुष्यों पर भी पड़ेगी इस में संदेह नहीं है।
जापान की राजधानी टोक्यो में सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या कभी कभी बढ़ जाती है तो वहाँ धुआँ इतनी बुरी तरह से छा जाता है कि सरकारी तौर पर उसकी घोषणा करानी पड़ती है सरकारी कर्मचारी उसकी घुटन से बचने के लिये गैस मास्क (एक प्रकार का यन्त्र जो हवा का दूषण छानकर शुद्ध हवा ही श्वाँस नली में जाने देता है) पहनना पड़ता है। 1966 में टोकियो में 65 बार इस तरह की चेतावनी दी गई। ट्रैफिक पुलिस को आध-आध घण्टे बाद अपनी ड्यूटी छोड़ कर चौराहों की बगल में बनी आक्सीजन टंकियों में जाकर आक्सीजन लेनी पड़ती थी। कई बार ऐसा हुआ जब सिपाहियों ने भूल की वे आक्सीजन लेने नहीं गये तो कई-कई सिपाही एक साथ मूर्छित हो होकर गिरे।
जापान में सौ व्यक्तियों के पीछे एक व्यक्ति अनिवार्य रूप से ब्राँकाइटिस (श्वाँस नली में सूजन की बीमारी) का रोगी है उसका कारण और कुछ नहीं यह धुआँ ही है जिसे कल-कारखाने व यातायात क वाहन उगलते रहते हैं। यहाँ के अमेरिकन सैनिकों में इन दिनों एक नया राग चमक रहा है जिसका नाम “तोक्यो योकोहामा डिसीज” रखा गया है उसका कारण भी डाक्टर वायु की इस गन्दगी को ही बताते हैं। इस बीमारी में साँस लेने में घुटन, खाँसी और अपच आदि लक्षण होते हैं।
अमेरिका के ब्राजील राज्य में साओ पालो और रायो डि जेनेरो दो पड़ोसी नगर है। 1914 के आस-पास साओ पालो की जितनी जनसंख्या थी अब आबादी उसे दो गुनी अधिक पच्चास लाख हो गई है जनसंख्या वृद्धि के समानान्तर ही वहाँ कल कारखाने और फैक्ट्रियां भी बढ़ी हैं अनुमान है कि उक्त अवधि में साओ पालो में पाँच हजार नये कल कारखाने स्थापित हुये हैं इसके विपरीत रायो डि जेनेरो की नगर-कारपोरेशन ने सन् 1873 में दी गई पत्रिकाओं की “आर्गेनिक डस्ट” चेतावनी (इय चेतावनी से पहले ही यह कहा गया था कि यदि कल कारखाने बढ़े तो उनका धुआँ मनुष्य जाति के लिये भयंकर खतरा बन जायेगा) को ध्यान में रखकर औद्योगिक प्रगति को बढ़ने नहीं दिया। अब स्थिति यह है कि साओ पालो के आकाश में प्रतिदिन उस टन हाइड्रोफ्लूओरिक एसिड और लगभग एक हजार टन सल्फ्यूरिक एनहाइड्रइड वायु में धूल रहा है और उससे नगर में ब्राँकियल (श्वाँस नली सम्बन्धी बीमारी) से मरने वालों की संख्या भी दुगुनी हो गई है। प्रातःकाल लोग घरों से खाँसते हुये निकलते हैं-इस स्थिति की भयंकर अनुभूति करने वाले मेड्रिड के लोग कहते हैं “हम प्रातःकाल की साँस के साथ उतना दूषित तत्व पी लेते हैं जितने से कोई एक डीजल इंजन दिन भर सुविधा पूर्वक चलाया जा सकता है। एक ओर साओ पालो धुयें में घुट रहा है दूसरी ओर रायो डि जेनेरो के लोग अभी भी इस दुर्दशा से बचे हुये है।
जो बात अमरीकी युवकों की समझ में अब आ रही है उस बात को भारतीय ऋषियों ने करोड़ों वर्ष पूर्व अनुभव कर लिया था। वे जानते थे कि पृथ्वी के निवासियों का स्वास्थ्य और आरोग्य आकाश और वायु की शुद्धि पर आधारित है इसीलिये यज्ञ जैसे विज्ञान का आविर्भाव किया गया था। अग्नि में पदार्थ को हजारों लाखों गुना सूक्ष्म बनाकर आकाश में फैला देने की अद्भुत शक्ति होती है। उसके साथ मन्त्रों का उच्चारण शब्द विज्ञान की सामर्थ्य से सन्धि करा कर उस सूक्ष्म हुये तत्व को और भी दूर आकाश तक निक्षेपित कर सुगन्धित औषधियों के प्रभाव को फैला देता या उसका फल यह होता था कि सारा आकाश शुद्ध बना रहता था। आकाश की शुद्धि स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है। साथ ही उससे जलवायु का नियन्त्रण, बीमारी के कृमियों का संहार आदि लाभ भी मिलते थे इसलिये यज्ञ सदैव से अति पवित्र और आवश्यक धर्म कर्त्तव्य माना गया था। उसके प्रभाव आज भी इस देश के आकाश में विद्यमान हैं और धर्म सदाचार सद्गुण परायणता आदि को स्थिरता के साथ वायु की शुद्धता को भी सुरक्षित किये हुये है। आज जो संसार में वायु-दूषण एक विकराल समस्या बन गया है उससे मुक्ति के लिये भी आगे यज्ञ ही मूलभूत आधार होंगे।
आज अमेरिका के वायु मण्डल में प्रतिदिन हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर आक्साइड, सीसे के कण आदि विषैले तत्वों की 200000000 टन मात्रा भर जाती है। कई बार तापमान गिर जाने से मौसम में ठंडक आ जाती है जिससे यह धुआँ ऊपर नहीं उठ पाता, ऐसी स्थिति में सघन बस्तियों वाले लोग जहाँ पेड़ पौधों का अभाव होता है ऐसे घुटने लगते हैं जैसे किसी को कमरे में बन्द करके भीतर धुआँ सुलगा दिया गया हो। यह धुन्ध इतना ही नहीं करती, उसमें रासायनिक प्रतिक्रियाएं भी होती है। इसके फलस्वरूप नाइट्रोजन डाई आक्साइड, ओजोन और पऔक्सि आक्ल नाइट्रेट नाम विषैली गैसें पैदा हो जाती हैं। उससे फेफड़ों के रोग आँखों की बीमारियाँ और खाँसी गले के रोग असाधारण रूप से बढ़ते हैं अमेरिका में इन बीमारियों से मरने वालों की संख्या कुल मरने वालों में एक तिहाई से कम नहीं है।
हमारे ऋषि महान् वैज्ञानिक थे उन्होंने आत्मा और ब्रह्म जैसी अत्यन्त सूक्ष्म सत्ता को खोज निकाला था। यन्त्र, विद्या उनकी चुटकी का खेल था पर वे इन बुराइयों को जानते थे इसीलिये देश को मशीनों से दूर रखा था और लोगों को अधिक से अधिक प्रकृतिस्थ जीवन यापन की प्रेरणा दी, तभी यह देश शारीरिक बौद्धिक, मानसिक एवं आत्मिक दृष्टि से सभी देशों का सिरमौर रहा। यहाँ जैसे दीर्घजीवी और इच्छानुसार मृत्यु वरण करने वाले व्यक्ति विश्व में और कहीं नहीं मिलते। हमारा दुर्भाग्य है कि उन्हीं की संतान हम भारतीय अपनी संस्कृति को न धारण आज उस यान्त्रिक सभ्यता के पीछे अन्धी दौड़ लगा रहे है। योरोप आज जिससे साँस लेने और पिण्ड छुड़ाने के लिये “अर्थ-डे” जैसे आयोजन कर रहा है।
आने वाले समय में यह धुआँ पृथ्वी में अनेक अप्रत्याशित भयंकर परिवर्तनों के लिये वातावरण तैयार कर रहा है। इटली का पदुआ नगर कला की दृष्टि से सारे संसार में प्रसिद्ध है। गिओटी के बनाये भित्ति चित्रों को, पिटी पैलेस, ................... बेकिओ तथा दि वैसेलिका आफ सान लोरेंजीं (यह अब वहाँ की प्रसिद्ध इमारतें हैं) आदि नष्ट होते जा रहे है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताते हैं यह सब वायु की अशुद्धि के कारण है। इन ऐतिहासिक स्थानों के रख रखाव में काफी धन और परिश्रम खर्च होता है तब भी वायु की गन्दगी से ........ अपने आपको बचा नहीं पाते तो खुले स्थानों की सुरक्षा की तो कोई बात ही नहीं उठती। इन स्थानों में यह विषैली रासायनिक प्रक्रियाएँ वायु दुर्घटनाओं, बीमारियों का ही कारण न होंगी वरन् भूकम्प, पृथ्वी-विस्फोट समुद्र में तूफान आदि का कारण भी होगी। नई सन्तान पर उसका असर गर्भ से ही होगा। अमेरिका में अभी से विकलाँग कुरूप और टेढ़े-मेढ़े बच्चों की पैदाइशें प्रारम्भ हो गई हैं कुछ दिनों में खरदूषण, त्रिशिरा, मारीच जैसी टेढ़ी, कुबड़ी भयंकर संतानें उत्पन्न हों तो कुछ आश्चर्य न होगा। वायु की अशुद्धि से मनुष्य जीवन का अन्त बहुत निकट दिखाई देने लगा है उससे कैसे बचा जाये अब इस प्रश्न को उपेक्षित नहीं किया जा सकता।