Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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आह्वान (kavita)
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वह चला-उसे रहा पुकार महाकाल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
अग्रदूत ओ प्रकाश के बढ़े चलो।
अन्धकार है घिरा प्रदीप बन जलो॥
झुक सके नहीं कभी, सगर्व उठा भाल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
है अधर्म से वसुन्धरा कराहती।
जोड़ कर, मनुष्यता पनाह माँगती॥
दिग्दिगंत में घिरा हुआ तिमिर कराल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
लो शपथ अभी कुरीतियाँ मिटायेंगे।
लो शपथ अभी कि नया युग बसायेंगे॥
जी सके-मनुज सहास विश्व को निहाल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
युग नया पुकारता “मुझे विकास दो”।
सूखते अधर उन्हें नमी व हास दो॥
मोड़ दो अनीति की सशक्त वक्र चाल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
वह तुम्हें बुला रहा, कि “आओ सामने”।
“मूल्य प्राण का चुका, मशाल थामने”॥
कार्य है अपूर्ण अभी, लो उसे सम्हाल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
जा रहा प्रवास पर सदैव के लिये।
वेदना व्यथा समस्त विश्व की पिये॥
भेंट करो साथी ! विश्वासों की माल।
देखना बुझे न कहीं क्राँति की मशाल॥
*समाप्त*