Magazine - Year 1972 - Version 2
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Language: HINDI
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सिद्धि और सिद्धपुरुषों का स्तर
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भौतिक सिद्धियाँ तो उन कीड़े-मकोड़ों में भी पाई जाती हैं, जो चलते समय पैर
के नीचे दबकर मर जाते हैं। मक्खी आकाश में उड़ सकती है, बतख पानी पर चल
सकती है, मछली जल में रह सकती है, गीध दूर तक देख सकता है, मकड़ी को वर्षा
का भविष्यज्ञान रहता है, जुगनू का तेज चमकता है और सर्पदंश से क्षण भर में
मृत्यु होती है। कहते हैं कि नीलकंठ पक्षी के दर्शन से लक्ष्मी मिलती है। दर्द
बंद करने में छिपकली का तेल काम आता है। गिरगिट कई तरह के रूप बदलता है।
यदि इन्हीं सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए साधना की जाए तो सफलता के
अंतिम शिखर पर चढ़ते-चढ़ते वहाँ पहुँचा जा सकता है, जहाँ यह कीड़े-मकोड़े
पहले से ही पहुँचे हुए हैं।
लोगों को कौतूहल दिखाकर अपनी विशेषताएँ सिद्ध करने की आत्मश्लाघा पूरी करने की ही यदि हविस हो तो इसके लिए इतनी कष्टसाध्य गतिविधि अपनाने और सामान्य सुख-सुविधाएँ छोड़ने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। लोगों को अचंभे में डालने का काम बाजीगर बड़ी अच्छी तरह करते हैं। वे इतनी अलौकिकताएँ दिखाते हैं कि आश्चर्यचकित होना पड़ता है। वहाँ ‘कला’ कुछ भी मुश्किल नहीं है। हाथ की सफाई का अभ्यास थोड़े दिनों में हो जाता है और बाजीगरी सिखाने वाले उन रहस्यों को सिखा भी सकते हैं।
देखना यह है कि इससे अपना क्या लाभ हुआ और दूसरों का क्या हित साधा। दस पैसे नाववाले को देकर आवश्यकता के समय नदी पार हो सकती है। रोज तो कोई पानी पर चलता नहीं, हर जगह पुल हैं। नावें मौजूद हैं। इस सिद्धि को कोई व्यक्ति बहुत कष्ट सहकर प्राप्त कर ले तो उसे दस पैसे नाववाले को न देने भर की ही बचत हुई। बीमार को अच्छा करने में सिद्धपुरुष जितना लाभ पहुँचाते हैं, उससे हजारों गुने अधिक रोगी एक डॉक्टर अच्छे करता है। योगी कितने अंधों को आँखें देगा, पर आँख के डॉक्टर तो अपनी जिंदगी में हजारों अंधों को अच्छा करते हैं। योगी बनने की अपेक्षा डॉक्टर बनना क्या बुरा है। उसमें कष्ट भी कम— लाभ भी अधिक। भारत से इंग्लैंड उड़कर जाने की सिद्धि बहुत तप के बाद मिलेगी, पर हवाई जहाज से थोड़ा-सा किराया देने पर वह कार्य आसानी से हो सकता है। दूरदर्शन, दूरश्रवण के लिए जब टेलीफोन, रेडियो और टेलीविजन मौजूद हैं तो फिर उन सिद्धियों को प्राप्त करने की क्या जरूरत रह गई।
साधना, तपश्चर्या और योगाभ्यास का मात्र एक ही प्रयोजन है— अपने अंतःकरण में प्रसुप्त अगणित सत्प्रवृत्तियों का जागरण, सद्भावनाओं का उन्नयन, दृष्टिकोण का परिष्कार और कर्त्तृत्व में देवत्व के समावेश का अभ्यास। सिद्धियों की उत्कृष्टता इसी कटौती पर परखी जाती है। इसी से अपना भला होता है और इसी से संसार का।
आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ देना, अंतःकरण को प्रेम से लबालब भर लेना, निश्छल निर्मलता विकसित करना और लोक-मंगल के लिए आत्मोत्सर्ग करना— यह सिद्धियाँ जिसके पास हैं, असल में वही सच्चा और उच्चकोटि का सिद्धपुरुष है।