Magazine - Year 1972 - Version 2
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Language: HINDI
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दिव्य सत्ता की झाँकी (Kavita)
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दिव्यसत्ता की झाँकी!
अंतस्तल में विश्वास जगाओ गहरा।
ईश्वर की सत्ता व्याप रही कण-कण में॥
वह ब्रह्म विश्व का सृष्टा और नियन्ता।
उसने ही खेल रचाया है यह अद्भुत॥
ब्रह्मांड बनाया इतना लंबा-चौड़ा।
है बुद्धि कल्पना करके ही अतिविस्मित॥
वह कारण है प्रत्येक संचेत-क्रिया का।
है छाया उसकी ही जड़ में—चेतन में॥ ईश्वर की.
बन विष्णु तुम्हारा पालन वह करता है।
उसकी इस पोषक सत्ता को पहचानो॥
दीं, खनिज, वनस्पति, जल-प्रपात अतिसुंदर।
गुणधर्म प्रकृति के शाश्वत हैं यह जानो॥
यह मिलन प्राण-रयि का बन ओजस्-तेजस्।
भरता रहता है चेतनता—तन-मन में॥ ईश्वर की.
वह रुद्ररूप भी कभी-कभी रखता है।
जब हम सत्पथ से विचलित हो जाते हैं॥
तजते हैं- सात्विकता-समरसता नियमन।
तब दंड कड़ा भी हम उससे पाते हैं॥
वह शक्ति, मेटकर तब विकार इस जग के।
तत्पर होती सत्-शिव-सौंदर्य सृजन में॥ ईश्वर की.
वह परमात्मा तो प्रबल न्यायकारी है।
जो जैसा करता वैसा ही फल पाता॥
इसलिए कर्म के माध्यम से होता है।
मानव सदैव ही अपना भाग्यविधाता ॥
दुष्कर्म करो तो— उस प्रभु का भय मानो।
चातुर्य तुम्हारा— है सद्पथ चयन में॥ ईश्वर की.
ईश्वर अदृश्य है— किंतु शक्तियाँ उसकी।
प्रतिक्षण रहती हैं कार्यनिरत इस जग में॥
समझो! पहचानो!! इस व्यापक सत्ता को।
जो प्रतिक्षण साथ तुम्हारे जीवन मग में॥
आरती प्रेम की— और भक्ति का चंदन।
भावना मूर्ति गढ़ लो निज आत्मभवन में॥
ईश्वर की सत्ता व्याप रही कण-कण में॥
(माया वर्मा) *समाप्त*
(माया वर्मा) *समाप्त*