Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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नीति श्लोक
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प्रायेण मनुजा लोके लोकतत्त्व विचक्षणाः ।
समुद्धरन्ति ह्यात्मानमात्मनैवाशुभाशयात् ।।
आत्मनो गुरुरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः ।
यत्प्रत्यक्षानुमानाभ्यां श्रेयोऽसावनुविन्दते ।।
— महायोग विज्ञान
अनेक विवेकवान व्यक्ति जो तत्त्वज्ञान में परिचित हैं, अपने आत्मपुरुषार्थ से ही अपना उद्धार कर लेते हैं। आत्मा ही आत्मा का गुरु है। प्रत्यक्ष और अनुमान के आधार पर विचारशील लोग अपना कल्याण आप कर लेते हैं।
आत्मा वा रे च श्रोतव्यो मंतव्य इति यच्छुतिः ।
सा सेव्या तत्प्रयत्नेन मुक्तिदा हेतुदायिनी ॥३२॥
— शिव मंहिता १३२
आत्मा को सुनो, आत्मा का मनन करो। इस श्रुति के अनुसार प्रयत्नपूर्वक उस आत्मा की ही सेवा करनी चाहिए। वह बंधनों से छुड़ाती है ।