Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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नीति श्लोक
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नास्ति ध्यानं बिना ज्ञानं नास्ति ध्यानमयोगिनः ।
ध्यानं ज्ञानञ्च यस्यास्ति तीर्णस्तेन भवार्णवः।।
ज्ञानं प्रसन्नमेकाग्रमशेषोपाधिवर्जितम् ।
योगाभ्यासेन युक्तस्य योगिनस्त्वेव सिद्ध्यति ।।
— महायोग विज्ञान
ध्यान बिना ज्ञान नहीं होता। न ध्यान बिना योग सधता है। ध्यान और ज्ञान दोनों के सहारे भवसागर पार किया जाता है। ज्ञान और एकाग्रता से उपाधिवर्जित मन प्रसन्न रहता है और योग-साधना से सिद्धि मिलती है।
न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा
नान्यैर्देवैस्तपसा कर्मणा वा ।
ज्ञान प्रसादेन विशुद्धसत्व
स्ततस्तु तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः ।।
— मुण्डक 3/1/8
वह परमेश्वर वाणी, नेत्र आदि इंद्रियों से नहीं देखा जाता, न उसे बाह्यक्रिया-कृत्यों से ही पाया जा सकता है। निर्मल अंतःकरण वाले ज्ञानवान ही ध्यानावस्था में उसका दर्शन करते हैं।
ध्यानं ज्ञानञ्च यस्यास्ति तीर्णस्तेन भवार्णवः।।
ज्ञानं प्रसन्नमेकाग्रमशेषोपाधिवर्जितम् ।
योगाभ्यासेन युक्तस्य योगिनस्त्वेव सिद्ध्यति ।।
— महायोग विज्ञान
ध्यान बिना ज्ञान नहीं होता। न ध्यान बिना योग सधता है। ध्यान और ज्ञान दोनों के सहारे भवसागर पार किया जाता है। ज्ञान और एकाग्रता से उपाधिवर्जित मन प्रसन्न रहता है और योग-साधना से सिद्धि मिलती है।
न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा
नान्यैर्देवैस्तपसा कर्मणा वा ।
ज्ञान प्रसादेन विशुद्धसत्व
स्ततस्तु तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः ।।
— मुण्डक 3/1/8
वह परमेश्वर वाणी, नेत्र आदि इंद्रियों से नहीं देखा जाता, न उसे बाह्यक्रिया-कृत्यों से ही पाया जा सकता है। निर्मल अंतःकरण वाले ज्ञानवान ही ध्यानावस्था में उसका दर्शन करते हैं।