Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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वह किरण व्यर्थ है
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जागकर भी न तंद्रा मिटे आसुरी।
जागरण ब्रह्मकालीन भी व्यर्थ है।।
जो उगे, पर न निशि का तमस हर सके।
वह सुबह की सुनहरी किरण व्यर्थ है।।
मंजिलें दूर होतीं मनुज से सदा।
और वरते उन्हें वीर ही सर्वदा ।।
मार्ग में ही रुके लक्ष्य पाए बिना।
तीव्र गतिमान भी, वह चरण व्यर्थ है।। वह सुबह...
उम्र संकल्प की लघु न होती कहीं।
आस्था की न बवारी हथेली रहीं।।
पूर्ण जिसको नहीं आदमी कर सके।
वह बड़े से बड़ा व्रतवरण व्यर्थ है।। वह सुबह..
ज्ञान वर्चस्व को, आन को, बान को।
वीर सर्वस्व मिज मानते शान को ।।
आत्म सम्मान का मूल्य देकर मिले।
स्वर्ण का, हीर का, एक कण व्यर्थ है ।। वह सुबह...
ताज पाषाण का भी बना प्राणमय ।
बन गए स्वर्ण के पत्र श्रीनाथमय ।।
विश्व की श्री न शोभा, न सुषमा बढ़े।
कीमती हो मगर आभरण व्यर्थ है।। वह सुबह...
जिंदगानी बनी काम के वास्ते ।
भाग्य से कर्म के सब जुड़े रास्ते ।।
काट दे व्यक्ति आलस्य में ही जिसे ।
जिंदगी का वही एक क्षण व्यर्थ है।। वह सुबह...
संत जीते सदा दूसरों के लिए।
मुस्कराते व्यथा वेदनाएँ पिए।।
कष्ट जिससे मिले यदि किसी और को।
आदमी का वही आचरण व्यर्थ है।। वह सुबह...
प्राण आहुति बने लोक-कल्याण में।
व्यक्ति लाखों मिटे विश्व निर्माण में ।।
लेख जिसका न इतिहास में हो सके।
बस, समझ लो कि ऐसा मरण व्यर्थ है ।। वह सुबह...
— मायावर्मा