Magazine - Year 1974 - Version 2
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Language: HINDI
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आह्वान! आमंत्रण और अनुरोध
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आशा की जानी चाहिए कि बसन्त पर्व में आरम्भ होने वाले इस नये वर्ष में अखण्ड-ज्योति के परिजन नवनिर्माण की दिशा में कुछ अधिक कर गुजरने के लिए साहस भरे कदम बढ़ावेंगे। जिनकी स्थिति वरिष्ठ अथवा क्लिष्ट वानप्रस्थ के लिए उपयुक्त होगी व उसके लिए साहसपूर्वक कदम बढ़ावेंगे। जिनकी स्थिति वैसी नहीं वे पिछले पृष्ठ पर छुपे-”इतना तो व्यस्त और विवश होते हुए भी किया जा सकता है।” अनुरोध के अनुरूप कुछ न कुछ करने का प्रयत्न करेंगे। सक्रिय सदस्य और कर्मठ कार्यकर्ता यदि अधिक तत्परता और लगन के साथ अपनी गतिविधियां तीव्र कर दें तभी मिशन के महान प्रयोजनों की पूर्ति की दिशा में आशा-जनक प्रगति हो सकती है। बसंत पर्व से लेकर होली तक से 40 दिनों में हममें से प्रत्येक को इस दिशा में अधिक विचार मन्थन और अधिक सक्रिय प्रयास करना चाहिए।
वानप्रस्थ प्रशिक्षण के लिए शान्ति-कुँज में आवश्यक व्यवस्था जुटा जी गई है 20 जनवरी से प्रथम सत्र आरंभ हो जायगा। जिन्हें इस दिशा में उत्साह हो उन्हें निम्नलिखित प्रश्नों का विस्तारपूर्वक उत्तर देते हुए अपना आवेदन पत्र भेजना चाहिए।
आयु (2) शिक्षा (3) जाति (4) व्यवसाय (5) शरीर में कोई रोग हो या अभाव हो तो उसका पूरा विवरण (6) परिवार के सदस्यों का विवरण और उनकी आयु (7) शिक्षण काल से घर−परिवार और कारोबार की व्यवस्था कैसे चलेगी? (8) वरिष्ठ वानप्रस्थ में प्रवेश करना है या क्लिष्ट में (9) अब तक के जीवनक्रम में घटना क्रम का वर्णन (10) पत्र व्यवहार का पूरा पता। जिनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति उपयुक्त न हो उन्हें नहीं आना चाहिए। पत्नी बच्चों समेत भी नहीं आना हैं, व्यसनी, क्रोधी, सनकी, आवेशग्रस्त, क्रूर अहंकारी तथा अनुशासनहीन प्रकृति के लोग भी न आवें। वानप्रस्थ में प्रवेश करना उन्हीं के लिए उपयुक्त है जिनमें दूसरों के लिए मार्ग-दर्शक बनने की क्षमता है। शान्त-एकान्त में रहने और भजन-ध्यान करते हुए मौत के दिन पूरे करने के इच्छुकों के लिए यह योजना उपयुक्त न पड़ेगी। इसी प्रकार तुर्त-फुर्त चमत्कारी जादू-मन्त्रों की सिद्धियाँ सीखने के लिए लालायित लोगों को भी निराश होना पड़ेगा। इसमें तो भावनाशील, कर्मठ, सौम्य स्वभाव एवं क्रान्तिकारी ही खपेंगे। अस्तु उन्हीं के आवेदन-पत्र आने चाहिए। प्रार्थना पत्रों पर विचार करके ही यह बताया जा सकेगा। कि किन्हें किस महीने के प्रशिक्षण में आना है, बिना स्वीकृति पत्र पाये किसी को भी नहीं आना चाहिए।
अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक परिजन को इस योजना में अपने को पूरी तरह सम्बद्ध रखना चाहिए, उसे यह मान कर चलना चाहिए कि संचालकों एवं संरक्षकों में से ही एक वह भी है। इस अंक को बहुत ध्यान से दो बार पढ़ना चाहिए और यह देखना चाहिये कि योजना में कहाँ त्रुटि है, उसमें सुधार की—परिवर्तन, परिवर्धन की कहाँ क्या गुंजाइश है। ऐसे परामर्श, विस्तार पूर्वक भेजने चाहिए और सम्भव हो तो यह भी लिखना चाहिए कि मिशन के इस अत्यन्त महत्वपूर्ण कदम में उसका अपना क्या योग−दान होगा, इसे सफल बनाने के लिए वह किस प्रकार क्या प्रयत्न करेगा।
ऐसे परामर्श प्रत्येक परिजन से माँगे जा रहे हैं। उनके आधार पर कार्य−पद्धति को और भी अधिक परिष्कृत एवं सुव्यवस्थित बनाने में योग−दर्शन मिलेगा। अस्तु फरवरी में अपनी प्रतिक्रिया सभी पाठकों को शांति−कुंज सप्तसरोवर हरिद्वार के पथ पर भेज देनी चाहिए