Magazine - Year 1984 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अन्य प्राणी सर्वथा पिछड़े हुए ही नहीं हैं।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मनुष्यों सृष्टि का मुकुट मणि कहलाता और प्रकृति का अधिष्ठाता होने का दम भरता है तो भी यह नहीं समझा जाना चाहिए कि अन्य प्राणियों को सृष्टा ने कोई विशेषताएँ नहीं दी हैं। वे अनेक प्रसंगों विशेषतया अतीन्द्रिय क्षमताओं के सम्बन्ध में मनुष्य से कहीं आगे हैं।
सूर्यग्रहण की जानकारी मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर वर्षों पूर्व पहले ही जानने में समर्थ हो गया है किन्तु दुष्प्रभावों को समझने में अभी तक असमर्थ रहा है, जबकि जंगल के पशु-पक्षी सूर्यग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए उसके चौबीस घण्टे पूर्व से ही शोर-गुल करना बन्द कर देते हैं। सबसे चंचल कहा जाने वाला बन्दर सूर्यग्रहण के पूर्व ही खाना-पीना त्यागकर एकान्तप्रिय संन्यासी की भूमिका अदा करने लगता है।
जापान में पायी जाने वाली एक चिड़िया जिसे चीवी कहते हैं भूकम्प आने के चौबीस घण्टे पूर्व ही वह स्थान त्यागकर दूरस्थ उड़ जाती है। इसी प्रकार चीन में अनेकों भूकम्पों के पूर्व देखा गया कि वहाँ के पालतू, गाय, बैल आदि अपनी-अपनी रस्सी तुड़ाकर घरों के बाहर हो जाते हैं। जबकि मानवीय बुद्धि भूकम्पीय झटकों को चौबीस घण्टे पूर्व भी जानने में असमर्थ है।
ऊँची पहाड़ियों पर बसने वाले पक्षी बर्फ पड़ने के ठीक एक माह पूर्व पहाड़ियाँ त्यागकर सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं जबकि मनुष्य अभी तक शत-प्रतिशत रूप से बर्फ गिरने की भविष्यवाणी करने में असमर्थ रहा है। अनेकों प्रयोगों के बाद पाया गया कि आकस्मिक रूप से पड़ने वाली बर्फ के भी ठीक एक माह पूर्व ये पक्षी स्थान खाली कर दूर दराज देशों में चला जाता है। इस प्रक्रिया को “माइग्रेशन” कहा जाता है।
तिब्बत और दार्जलिंग में पायी जाने वाली पहाड़ी सारस वर्षा के 10-15 मिनट पूर्व ही पर्वतों की गुफाओं अथवा चट्टानों की आड़ में चली जाती हैं जिसे देखकर तिब्बती लोग अपना माल असवाब बाँधकर वर्षा से बचने का प्रबन्ध करने लगते हैं। कभी-कभी तो देखा गया कि आकाश में एक भी बादल नहीं है और पानी बरसने के कोई आसार न होते हुए भी जब यह पक्षी छिपने लगें तो उसके कुछ ही समय बाद ही बादल संगठित होकर वर्षा होने लगती है।
जीव विज्ञानी मछलियों के इस भविष्य ज्ञान से हैरत में पड़ गए हैं कि मछलियाँ समुद्र तट पर ठीक तभी अण्डे देती हैं जब समुद्री लहरें उतर जाती हैं और दुबारा उठने की सम्भावना नहीं रहती। यदि मछलियों के इस भविष्य ज्ञान में एक मिनट का भी अन्तर पड़ जाये तो उनके सारे अण्डे गहरे समुद्र में जाकर नष्ट हो जायँ। मछलियों के इस भविष्य ज्ञान को सम्बन्धी शोध के तत्व वैज्ञानिकों ने मछलियों को झील, तालाब और प्रयोगशालाओं में रखकर बनावटी प्रकाश, अन्धकार और बनावटी चन्द्रमा तक का आकर्षण दिया किन्तु इन प्रकृति प्रेमी मछलियों को रंचमात्र भी भ्रम में नहीं डाला जा सका। इन सभी स्थानों पर रखी गई मछलियों ने ठीक उसी समय अण्डे दिए जब सागर में रहने वाली मछलियों ने दिए अर्थात् लहरों के उतरते ही इन मछलियों ने अपने भविष्य ज्ञान के आधार पर उक्त क्रिया की। इनकी इस विद्या की जानकारी में लाखों करोड़ों वर्षों से आज तक रंचमात्र का अन्तर नहीं आया अन्यथा इनका वंश ही नष्ट हो गया होता।
इन वैज्ञानिकों ने पक्षी राज मयूर की दिनचर्या का भी गहन अध्ययन किया और पाया कि मयूर बादलों की गड़गड़ाहट में प्रसन्नता व्यक्त करते और एक प्रकार की संगीत ध्वनि निकालने लगते हैं किन्तु यदि घनघोर वर्षा होने वाली हुई तो यही पक्षी एक प्रकार का करुण क्रन्दन करते हुए इधर-उधर बेतहाशा भागते रहते हैं। इनका यह भविष्य ज्ञान मनुष्य के लिए एक प्रकार की चुनौती है जो अभी तक शत-प्रतिशत रूप से मौसम की भविष्यवाणी तक करने में असमर्थ रहा है। कभी-कभी यह भविष्यवाणी की भी जाती है तो बहुधा उससे विपरीत ही घटता है।