Magazine - Year 1984 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
गर्मी और रोशनी से दूर न भागें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
इन दिनों तथाकथित बड़े लोगों अमीरों को गर्मी से बचने की धुन सवार रहती है। प्रयत्न यह करते हैं कि ठण्डक में रहें और तेज धूप से बचें। घर के हर कमरे में पंखा लगा होता है। वातानुकूलित कमरों में ठण्डक बनाये रहने वाले उपकरण लगाये जाते हैं। गर्मी का मौसम आया नहीं कि बर्फ की खपत आसमान चूमने लगती है। इसके बिना आतिथ्य ही नहीं बनता। खाद्य पदार्थों को फ्रिज में जमा रखा जाता है। बच्चों तक को खाने चाटने की जेब खर्च मिलते ही वे चुस्की की बर्फ वाले की तलाश करते हैं।
यह बुरी आदत है। गर्मी हमारी जीवन संगिनी है। उसकी अति मात्रा से सीमित बचाव करने की बात समझ में आती है पर उसे विपत्ति मान बैठना गलत है। गर्मी के बिना कोई वस्तु पकी नहीं। पेट में बच्चे गर्मी के वातावरण में रहकर ही विकसित होते हैं। अण्डे को पक्षी छाती की गर्मी से ही सेते और पकाते हैं। कुम्हार यदि आँवा न लगाये तो उसका एक भी बर्तन काम में न आ सके।
गर्मी और रोशनी प्रायः दोनों ही साथ-साथ जुड़े रहते हैं। प्रकाश भी कम लाभदायक नहीं। जो गर्मी से बचते हैं वे प्रकाश के लाभों से भी वंचित रहते हैं फलतः शारीरिक और मानसिक दृष्टि से दुहरे घाटे में रहते हैं। खुली धूप एवं हवा में रहने वाले उनकी अपेक्षा अधिक स्वस्थ रहते हैं जो ठण्डक ही तलाशते रहते हैं और धूप में रहने की अपेक्षा अँधेरे तहखानों को पसन्द करते हैं।
श्रुति उद्गाता अन्तरात्मा ने परमेश्वर से प्रार्थना की है- “अन्धकार से प्रकाश” की ओर ले चल। उसका अभिप्राय ज्ञान, उल्लास, पराक्रम, उत्साह से है। इन उमंगों को प्रकाश का प्रतीक माना गया है। निष्क्रियता, निराशा को अन्धकार का।
यह दिव्य प्रकाश की विवेचना हुई। देखना यह है कि प्रत्यक्ष प्रकाश में से भी इन प्रवृत्तियों का कुछ सम्बन्ध है क्या? क्या दृश्यमान परिस्थितियों के साथ भी इसकी संगति बैठती है। रात्रि का अन्धकार होते ही सभी को निद्रा आ घेरती है। चिड़ियाँ घोंसलों में घुस जाती हैं पशु समुदाय आश्रय खोजते हैं जिनके नियत स्थान हैं, वे उनमें बैठकर सुस्ताने लगते हैं। पौधों तक का यही हाल है। उनकी अभिवृद्धि रुक जाती है। मनःक्षेत्र में उदासी छाने लगती है। उत्साह ठंडा पड़ जाता है और इसी प्रकार समय गुजारने की विधा अपनाई जाती है।
इसके विपरीत प्रकाश का प्रत्यक्ष प्रभाव सूर्योदय होते ही दृष्टिगोचर होने लगता है। सोतों की नींद खुल जाती है। उठने, बिस्तर समेटने और नित्यकर्म से निबटने की इच्छा होती है। भूख जागती है और चूल्हे गरम होने लगते हैं। अपने-अपने कामों पर जाने की तैयारी करते हर किसी को देखा जा सकता है।
चिड़ियाँ घोंसले छोड़कर जमीन पर उतरती और चहचहाती-फुदकती दीखती हैं। वन्य पशुओं को आहार की तलाश में जिधर-तिधर चल पड़ते देखा जाता है। कलियाँ खिलने लगती हैं और पौधों में बढ़ोत्तरी का क्रम चल पड़ता है। यह प्रकाश के विस्तार का प्रभाव है। उससे गर्मी और रोशनी दोनों का ही समन्वय रहता है। दोनों का अपना-अपना महत्व है। साथ ही उनका समन्वय भी। जहाँ एक है वहाँ न्यूनाधिक मात्रा में दूसरे को भी जुड़ा रहना पड़ेगा।
शरीर जब तक गरम है तभी तक वह जीवित है। ठण्डा हो जाना मरण का प्रमुख चिन्ह है। ग्रह-नक्षत्रों में प्लूटो जैसों में निस्तब्धता इसीलिए है कि उनमें गर्मी नहीं के बराबर है। यों बुध जैसे अग्नि पिण्ड भी उसकी अति से निरर्थक बनकर रहते हैं पर ऊर्जा का सुसन्तुलन बनाये रहने पर पृथ्वी की शोभा, सुन्दरता असाधारण स्तर की बन पड़ी है। वनस्पतियों और प्राणियों का उत्पादन एवं निर्वाह क्रम भूलोक में इसीलिए उत्साहवर्धक रीति से चल रहा है कि उस पर प्रकाश की स्थिति सन्तुलित बनी हुई है।
प्रकाश यों आग जलाकर या बिजली की सहायता से भी उत्पन्न किया जाता है, पर उसका उद्गम स्रोत सूर्य ही है, उसकी किरणों में जिन सप्त वर्णों और प्रभाव किरणों का समावेश है, वे मात्र उजाला ही नहीं देती, समुचित परिपोषण भी प्रदान करती हैं। विटामिन ‘डी’ विशेषतया इसी आधार पर होने वाला उत्पादन है।
ऐसे-ऐसे अनेक कारण हैं जो बताते हैं कि जीवनी शक्ति अक्षुण्ण रखने एवं बढ़ाने के लिए हमें अधिकाधिक समय तक सूर्य प्रकाश में रहना चाहिए। इसके लिए धूप में बैठना आवश्यक नहीं, जहाँ खुला प्रकाश पहुँचता है और रोशनी रहती है वहाँ निवास करने से भी वह पोषण मिलता रहता है जो मनुष्य के शारीरिक और मानसिक आरोग्य के लिए आवश्यक है।
मस्तिष्क के एक छोटे से शिखा केन्द्र पर अवस्थित “पीनियल” ग्रन्थि प्रकाश तरंगों को अन्य अवयवों की अपेक्षा अधिक पकड़ती है। यों आँखों की संरचना ही प्रकाश में वस्तुओं का स्वरूप देखने के लिए हुई है, पर “पीनियल” ग्रन्थि तो अदृश्य प्रकाश तरंगों का अनुभव करती है इसलिए उसे तृतीय नेत्र या आज्ञाचक्र भी कहते हैं। उसे जागृत करने के लिए प्रकाश बिन्दु पर ध्यान एकाग्र रखने की त्राटक प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न किया जाता है। इस ग्रन्थि से एक विशेष प्रकार का हारमोन स्रवित होता है जिसे ‘मेलाटोनिन’ कहते हैं। इसकी सप्लाई प्रकाश के वातावरण में बढ़ती और अन्धेरा होते ही घट जाती है। जब यह स्राव ठीक मात्रा में रिसते हैं तो मस्तिष्क का ‘हाइपोथैलेमस’ क्षेत्र सक्रिय हो उठता है और उससे सम्बन्धित सभी प्रवृत्तियाँ अपना काम करने में उत्साहपूर्वक जुट जाती हैं। मानसिक विकास की दृष्टि से प्रकाशवान क्षेत्र में रहना आवश्यक माना गया है।
खुले प्रकाश के सम्पर्क में रहने वालों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सही रहता है, पर जिन्हें अन्धेरे में काम करना पड़ता है, जो धूप से जितना दूर रहते हैं, उन्हें उसी अनुपात में दुर्बलता एवं रुग्णता का शिकार बनना पड़ता है उदासी ही उन्हीं पर अधिक छाई रहती है और साथ ही निष्क्रियता भी। गर्मी के दिनों में अधिक काम धन्धा होता है जबकि जाड़े के दिनों में लोग सुकड़े-मुकड़े बैठे रहते हैं और ठण्डे हाथ-पैरों से कुछ करते-धरते नहीं बन पड़ता। शीत ऋतु और कुछ नहीं, प्रकाश की कमी से ही ठण्डक बढ़ने की प्रक्रिया है। सूर्य जब पृथ्वी से अधिक दूरी पर होता है तब उसकी गर्मी पृथ्वी तक स्वल्प मात्रा में ही पहुँच पाती है। फलतः स्थिति बदल जाती है। पौधे बढ़ना बन्द कर देते हैं। कितनों को ही पाला मार जाता है। शेष के पत्ते झड़ने लगते हैं। इस अभिशाप से पीछा तब छूटता है जब गर्मी का अनुपात बढ़ता है। बसन्त का आगमन यही है। बढ़ते प्रकाश का अभिनन्दन समूचे वनस्पति जगत में होता है। कोपलें फूलती हैं। फूल खिलते हैं और प्राणियों में उमंगें उफनती हैं। वे अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय होते हैं और वंश वृद्धि के विनोद में तत्परता प्रदर्शित करते हैं।