Magazine - Year 1984 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
उसने हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यह एक ऐसे ट्रैक्टर चालक की जीवन गाथा है जो लम्बे समय तक एक के बाद दूसरी दुर्घटनाओं का शिकार होता रहा। सभी को हिम्मत के साथ सहता रहा। बिना पिछली सुविधाओं और भावी संकटों का स्मरण किये हर परिस्थिति के साथ तालमेल बिठाता रहा और दैवी अनुग्रह ने ऐसे जीवट वाले को इस प्रकार उबारा कि वह पहले जैसी स्थिति में ही लौट आया।
ट्रैक्टर चालक एडीरोविनसन अपनी 19000 किलोग्राम भारी गाड़ी को लेकर राजमार्ग पर चला जा रहा था। 12 फरवरी 71 सवेरे की बात है सामने से आती हुई एक कार फिसली और सड़क पर लुढ़क गई। उसने ट्रैक्टर को रोका भी और बचाया भी, पर बैलेन्स सधा नहीं। वह पुल के जंगलों को तोड़ती हुई बारह मीटर नीचे गिरा और गाटरों में फँस गया। उसका सिर बुरी तरह फट गया। खून की धारा बह रही थी और माँस लटक रहा था तो भी वह घबराया नहीं, किसी प्रकार अपने को सम्भाला और निकाला। पंजों के सहारे रेंगता हुआ बाहर आया और पास के अस्पताल में ज्यों-त्यों करके जा पहुँचा। डाक्टरों ने अधिक ध्यान न दिया। ज्यों-त्यों मरहम पट्टी करके घर वापस भेज दिया। इतने पर भी उसका दर्द कम न हुआ।
अस्पताल से फिर बुलावा आया। दुबारा मुआयना हुआ। उसकी पसलियाँ टूटी मिलीं। खोपड़ी और कूल्हे की हड्डियों में भारी टूट फूट थी। इलाज चलता रहा। पर स्वास्थ्य दिनों-दिन गिरता ही गया वह घर लौट आया।
मस्तिष्क की गहराई तक में आघात पहुँचे थे। धीरे-धीरे उसकी नेत्र-ज्योति चली गई। अब वह क्या करे। सोचने लगा उसे अन्धों के स्कूल में भर्ती होना चाहिए। सो उसने स्पर्श लिपि के सहारे कुछ पढ़ना-लिखना भी सीख लिया। मन बहलने लगा।
अब नई मुसीबत खड़ी हुई। दाहिने हाथ ने भी जवाब दे दिया। उसे लकवा जैसा मार गया। बात यही समाप्त नहीं हुई उसके कान भी बहरे हो गये। अब उसने एक कान में लगने वाली मशीन का प्रबन्ध किया इससे बहुत जोर से बोलने पर वह मतलब की बात सुन लेता था। इन परिस्थितियों में घिरा रहने पर भी वह हताश नहीं हुआ। कुशल पूछने वालों से इतना ही कहता- “ईश्वर को धन्यवाद है, संसार में अनेक संकटग्रस्तों की अपेक्षा अभी भी मैं अच्छा हूँ।”
बेकार बैठा-बैठा क्या करे? काम के बिना चैन न पड़ता था। सो उसने पत्नी के घरेलू काम-काज में हाथ बटाना आरम्भ कर दिया। इससे पत्नी का समय बचा और वह उतनी देर में कुछ कमा लेने का प्रयत्न करती। सामने पार्क जैसा मैदान था उसमें घास काटने का काम उसने प्राप्त किया। उसके लिए उसने एक तरकीब निकाली। बीच-बीच में खूँटा गाड़ा उससे रस्सी लपेटी उसे थामने से यह पता चलता रहता कि कितने घेरे की घास कट रही है। एक घेरा साफ हो जाता तो रस्सी को कुछ और खोल कर घेरा बढ़ा लेता और उसमें घास काटने लगता। इस प्रकार पूरे पार्क की घास मशीन के सहारे काटने का अभ्यास उसे हो गया। सीढ़ी के सहारे छत पर चढ़कर टूटी खपरैलों को सम्भालने का अभ्यास भी उसे हो गया। काम से लगे रहने पर व्यर्थ की चिन्ताओं से बचा रहता और थक जाने पर गहरी नींद सोता।
अब उसने एक नया शोक अपनाया। चिड़ियों की बोली की नकल करना। इस कारण कितने ही पक्षी उसके पास दौड़ आते और हाथ रखा भोजन निर्भय होकर खाते। एक अच्छा मनोरंजन हाथ लग गया।
एक दिन कोई मुर्गियों से लदा ट्रक पास में ही उलट गया। उसकी एक घायल मुर्गी रोत्रिन सन के घर में घुस गई। टाँगें कट जाने पर भी वह कुछ दिन में अच्छी हो गई और प्यार-दुलार के वातावरण में सहेली बन गई। बिना पैरों के भी किस तरह चला जा सकता है और कला सिखाई गई तो मुर्गी ने सीख भी ली। दोनों की खूब पटती। नाम रख लिया- “टुक-टुक” ऐसा ही कुछ वह बोलती जो थी। दर्द उसके सीने में अभी भी होता रहता था पर भगवान को यही धन्यवाद देता रहता कि “मैं जीवित तो हूँ।”
4 जून 1980 की बात है। शाम होते-होते घटा उठी और तेज वर्षा होने लगी। मुर्गी को पास न देखकर वह उसके किसी संकट में फँस जाने की आशंका से ढूँढ़ने घर से बाहर निकला और टुक-टुक की आवाज लगाकर उसे खोजने का प्रयत्न करने लगा। इस प्रयास में वह भीगता भी जा रहा था।
अचानक आसमान में बिजली गिरी। दिल दहलाने वाली भयंकर गर्जना हुई। चौधियाने वाले प्रकाश से वह सारा क्षेत्र भर गया। रोबिनसन को भयानक झटका लगा। वह धड़ाम से गिरा और बेहोश हो गया। आधा घण्टे में होश आया तो प्यास से गला सूख रहा था। सारा शरीर काँप रहा था। पड़ौसी का घर सामने था वह उसी में घुस गया और माँगकर कितने ही गिलास पानी पीता चला गया। प्यास अभी भी शान्त नहीं हो रही थी। पड़ौसियों ने उसे घर पहुँचा दिया।
आश्चर्य यह कि उसकी दृष्टि लौट आई। सामने दीवार पर टंगे पोस्टरों को वह पड़कर सुनाने लगा। पत्नी ने घड़ी का समय बताने को कहा तो उसने देखकर वह भी सही बता दिया।
कान में लगने वाली मशीन भी इस झटके में कहीं गिर गई थी। पर अब वह बिना उसके ही सुनने लगा। पत्नी से सामान्य काल की तरह वार्तालाप करते हुए उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न था। सीने का दर्द भी बन्द था और लँगड़ाकर चलने में सहायता करने वाली छड़ी की भी आवश्यकता नहीं रह गई थी।
दूसरे दिन रविवार था वह गिरजाघर बिना किसी सहायता के पत्नी के साथ पहुँचा और सामान्य लोगों की तरह बैठा तो उपस्थित लोगों को आश्चर्य से चकित रह जाना पड़ा।
चर्चा दूर-दूर तक पहुँची। टेलीविजन पर उसने अपना विवरण सुनाया और कहा- मुसीबत के दिनों में मैंने उतना जाना और जितना कि पिछली पूरी जिन्दगी में भी नहीं सीख पाया था। मैंने कभी भी हिम्मत और उम्मीद नहीं छोड़ी।’ सर्वोत्तम पत्रिका में छपी यह घटना मानव की अपराजेय सामर्थ्य- उसकी संकल्प शक्ति का ही सत्यापन करती है और सिद्ध करती है कि कोई भी व्यक्ति प्रतिकूलताओं से जूझकर परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना सकता है।