Magazine - Year 1984 - Version 2
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Language: HINDI
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मुस्कान- एक औषधि एवं समग्र उपचार
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स्वादिष्ट व्यंजन की कल्पना मात्र से मुँह में पानी भर आता है। शोक समाचार पाकर उदासी छा जाती है, चेहरा लटक जाता है। प्रफुल्ल मुखाकृति से आन्तरिक प्रसन्नता का पता चलता है। इस प्रकार अदृश्य होते हुए भी मन की हलचलों का भला और बुरा प्रभाव जीवन में पग-पग पर अनुभव होता है।
मनुष्य अपने मानस का प्रतिबिम्ब है। मानसिक दशा का स्वास्थ्य के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। नवीनतम शोधों के आधार पर तो यह भी कहा जाने लगा है कि रोग शरीर में नहीं, बल्कि मस्तिष्क में उत्पन्न होता है। यही कारण है कि उत्तम और समग्र स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना सबसे जरूरी है।
राबर्ट लुई स्टीवेन्सन ने अँग्रेजी में कई साहसिक उपन्यास लिखे हैं। उन्हें पढ़ने वाले सोचते थे कि लेखक भी योद्धा जैसा दिखने वाला कोई भारी भरकम कद्दावर होगा। जबकि वास्तविकता यह थी कि उनने अपनी अधिकाँश प्रसिद्ध कृतियाँ रुग्णावस्था में चारपाई पर पड़े हुए लिखीं। शंकराचार्य अपने जीवन के उत्तरार्ध में भगन्दर के मरीज रहे। वैद्य ने उनकी स्थिति को देखते हुए शारीरिक श्रम करने तथा चलने-फिरने की मनाही की थी। परन्तु उस जर्जर काया को लेकर ही उनने चारों धामों की स्थापना, शास्त्रार्थ द्वारा दिग्विजय तथा प्रस्थानमयी के भाष्य आदि का गुत्तरुर कार्य सम्पन्न किया।
यहाँ शारीरिक स्वास्थ्य के नियमों की अवहेलना करने अथवा उन्हें नगण्य बताने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। कहने का आशय केवल इतना है कि स्वस्थ शरीर का सदुपयोग जिस मनस्विता के आधार पर सम्भव होता है उसके विकास भी भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए, मनःस्थिति हल्की-फुल्की रहनी चाहिए।
प्रसन्नचित्त रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है। उदासीन रहने वालों की अपेक्षा खुशमिज़ाज लोग अक्सर अधिक स्वास्थ्य, उत्साही और स्फूर्तिवान पाए जाते हैं। गीताकार ने प्रसन्नता को महत्व पूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना है और कहा है कि प्रसन्न चित्त लोगों को उद्विग्नता नहीं सताती एवं वे उन्हें जीवन में दुःख कभी सताते नहीं।
अकारण भय, आशंका, क्रोध, दुश्चिन्ता आदि की गणना मानसिक रोगों में की जाती है। जिस प्रकार शारीरिक रुग्णता का लक्षण मुख-मण्डल पर दृष्टिगोचर होता है उसी प्रकार मन की रुग्णता भी चेहरे पर झलकती है। मनोविज्ञानी डॉ. लिली एलन के अनुसार- “मुस्कान वह दवा है जो इन रोगों के निशान आपके चेहरे से ही नहीं उड़ा देगी, वरन् इन रोगों की जड़ भी आपके अन्तः से निकाल देगी।”