Magazine - Year 1984 - Version 2
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Language: HINDI
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शेख सादी ने फूलों के सहारे विकसित होने वाली कलादृष्टि की चर्चा करते हुए एक बार कहा था- ‘मेरे पास दो रोटी हों और पास में फूल बिकने आयें तो मैं एक रोटी बेचकर फूल खरीदना पसन्द करूँगा। पेट खाली रखकर भी यदि कलादृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता होगा, तो उसे गँवाऊँगा नहीं।
अमेरिका के ‘नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हैल्थ’ के मनोविज्ञान विभाग का प्रतिपादन है कि ठण्डक वाले क्षेत्रों पर दिनों में उदासी का अनुपात अधिक रहता है। प्रकाश की मात्रा बढ़ने पर उस अवसाद से अनायास ही छुटकारा मिल जाता है। काम करने को जी चाहता है, उमंगें उठने और आँखें चमकने लगती हैं।
असह्य ताप से सीमित बचाव करना एक बात है और गर्मी को देखते ही घबराना दूसरी। हमें ऊर्जा की आवश्यकता पग-पग पर पड़ती है इसलिए गर्मी और रोशनी के सम्पर्क में रहना ही हितकर है। अध्यात्म उपचारों में अग्निहोत्र, धूप, दीपक इत्यादि की, पारसियों में अग्नि की एक थियॉसॉफी वालों में भी अग्निदेव के पूजन-सम्पन्न किए जाने का विधान सम्भवतः इसी कारण है।